Udaipur News: इस बार देश ने आजादी का 75 साल पूरे होने का जश्न मनाया. सालभर इस अमृत महोत्सव के लिए देशभर में कई कार्यक्रम आयोजित हुए, जिसमें एक खास था घर-घर तिरंगा अभियान. आंकड़ा यह भी कहता है कि सिर्फ उदयपुर शहर में 3 लाख से ज्यादा तिरंगे घरों-वाहनों सहित अन्य जगहों पर लगे. यह पिछले साल से 10 गुना ज्यादा बताया जा रहा है. लेकिन एक रोचक जानकारी यह भी है कि साल 1947 जो हमारे आजादी का साल था. आजादी के 3 महीने बाद भी एक घर-घर तिरंगा अभियान शुरू हुआ था. यह अभियान डाक विभाग ने शुरू किया था जिसकी जिसकी एक बेहद रोचक कहानी है.
सहेज रखे तिरंगा अभियान के अवशेष
करंसी मैन कहे जाने वाले उदयपुर के डॉ विनय भाणावत पुरानी वस्तुओं को सहेजने में माहिर हैं. उन्होंने दुनिया के पहले नोट से लेकर भारत के पहले नोट सहित कई ऐसी करेंसी को सहेज रखा है, जिससे गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड से लेकर कई अवार्ड मिल चुके हैं. साथ ही डाक विभाग के डाक टिकटों को भी सहेज रखा है. जिस अभियान की हम यहां बात कर रहे हैं वह डाक विभाग की तरफ से शुरू हुआ था. डाक विभाग ने तिरंगा टिकट, अशोक स्तंभ टिकट और प्लेन वाला टिकट जारी किया था. जिसकी संख्या करोड़ों में थी. तिरंगा टिकट में खासियत थी कि उस टिकट में लहराता हुआ तिरंगा छापा गया था जो घर घर तक पहुंचा था.
आजादी के 96 दिन बाद छापा था टिकट
डाक विभाग ने आजादी के 3 माह बाद ही तिरंगा घर-घर पहुंचाने की व्यवस्था कर दी थी. विभाग ने 15 अगस्त 1947 के 96 दिन बाद पहला डाक टिकट 21 नवंबर 1947 को लहराते हुए तिरंगे वाला प्रकाशित किया था. इसके बाद 15 दिसंबर 1947 को 2 टिकट और जारी किए एक पर अशोक स्तंभ था तो दूसरे पर उड़ता प्लेन तीनों पर 15 अगस्त 1947 की तारीख अंकित थी. तीनों टिकट इंडिया सिक्यूरिटी प्रेस नासिक में प्रिंट हुए.
डॉ. विनय भाणावत के पास ये तीनों डाक टिकट मौजूद हैं. भाणावत ने बताया कि टिकट को सहेजने के लिए एक विशेष एलबम बनवाया है. हल्की सी नमी से भी टिकट को नुकसान हो सकता है, इसलिए एलबम के हर पन्ने पर इनकी सुरक्षा के लिए एक पारदर्शी कागज भी लगा रहता है. टिकट को एलबम से निकालने के लिए दस्ताने चिमटी आदि का उपयोग करते हैं.
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