Udaipur News: सैकड़ों साल से सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल है उदयपुर, क्या बनाता है इस शहर को खास?
Rajasthan News: उदयपुर के जिस इलाके में मुहर्रम जुलूस के दौरान ताजिए में आग लगने की घटना हुई, यह वही इलाका है, जहां बीते 28 जून 2022 को टेलर कन्हैयालाल की निर्मम हत्या की गई थी.
Rajasthan News: राजस्थान (Rajasthan) के उदयपुर (Udaipur) में बीते दो दिन में 2 ऐसे मामले सामने आए हैं जो पूरे देश के लिए मिसाल है. यहां मुहर्रम (Muharram) जुलूस के दौरान एक ताजिए में आग लगी तो हिंदू परिवार के लोगों ने तत्परता दिखाते हुए आग बुझाई. इससे ठीक एक दिन पहले महाकाल की सवारी पर मुस्लिम कौम के लोगों ने फूल बरसाकर सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल पेश की. ऐसा पहली बार नहीं हुआ है. झीलों की नगरी में यह कौमी एकता मुगल काल से चली आ रही है.
उदयपुर के जिस इलाके में मुहर्रम जुलूस के दौरान ताजिए में आग लगने की घटना हुई, यह वही इलाका है, जहां बीते 28 जून 2022 को कन्हैयालाल की निर्मम हत्या की गई थी. वारदात के बाद कर्फ्यू लगा और हमेशा खुशियों से आबाद रहने वाले इस शहर में सन्नाटा पसर गया. कर्फ्यू के दौरान एबीपी न्यूज़ ने अलग-अलग इलाकों में सनातन और इस्लाम धर्म के अनुयायियों से संपर्क किया. हिंदू समाज और मुसलमान कौम के दर्जनों लोगों से बात की. सभी से यही सुना कि उदयपुर एक शांत शहर है. यहां सभी समाज के लोग साथ मिलकर रहते हैं. एक-दूसरे के दुख-सुख में भागीदार बनते हैं.
सैकड़ों साल पुराना सांप्रदायिक सौहार्द
उदयपुर के एक इलाके में मंदिर और मस्जिद पास-पास बने हैं. खास बात यह है कि दोनों धर्मों के पर्व-त्योहार का दोनों समाज के लोग सम्मान करते हैं. सभी कार्यक्रमों में उत्साह के साथ शरीक होते हैं. एबीपी न्यूज़ से बातचीत में महिला-पुरुषों ने इसी बात को लेकर चिंता जताई थी कि चंद लोगों की जाहिल सोच के कारण पूरा शहर समूचे संसार में बदनाम हो गया. अब एक बार फिर झीलों की नगरी ने कौमी एकता दिखाकर यह साबित कर दिया कि उदयपुर के सैकड़ों साल पुराने सांप्रदायिक सौहार्द को कोई ताकत खत्म नहीं कर सकती. उदयपुर पहले भी एकजुट था और आज भी एकजुट है.
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मुगल काल से कायम एकता की मिसाल
मुगल काल में मेवाड़ के हिंदू सम्राट महाराणा प्रताप की जंग किसी कौम के खिलाफ नहीं थी, बल्कि बाहरी आक्रांताओं के खिलाफ थी. 16वीं शताब्दी में विदेशी आक्रमणों का सबसे बड़ा विरोध मेवाड़ में हुआ था. उस वक्त पठानों को बेदखल कर मुगल सल्तनत सत्ता पर काबिज हुई थी. मुगलों ने युद्ध में बारूद का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया था. तब मेवाड़ सेनाओं को बारूद और तोप का ज्ञान नहीं था. ऐसे में महाराणा प्रताप ने हाकिम खां की योग्यता को पहचाना. हुमायूं को हराने वाले शेरशाह सूरी के वंशज हाकिम खां सूरी युद्ध नीति में पारंगत थे.
महाराणा के कहने पर हाकिम खां सूरी ने मेवाड़ को तोपची के रूप में सेवाएं दी. हाकिम ने हल्दीघाटी के युद्ध में हरावल दस्ते का नेतृत्व किया. पहली बार किसी मुस्लिम पठान को यह दायित्व सौंपा गया था. उस काल में कौमी एकता की मिसाल आज भी दी जाती है.
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