Rajasthan News: राजस्थान में इस बार रिकॉर्ड तोड़ गर्मी रही लेकिन तापमान ज्यादा बढ़ा नहीं फिर भी तपन और चुभन सी महसूस हुई. ऐसा क्यों हुआ इसके लिए चित्तौड़गढ़ में करीब 24 दिन तक मौसम विशेषज्ञ और बायलॉजिकल लेक्चरर मोहम्मद यासीन और उनकी टीम ने अपने उपकरणों से सर्वे किया. सर्वे में ओजोन परत से जुड़े चौकाने वाले तथ्य सामने आए जो मानव शरीर के लिए घातक हैं. 


अब टीम के सदस्यों ने भीलवाड़ा में रिसर्च कंप्लीट किया है और उनके डाटा को एनालिसिस किया जा रहा है. इसके बाद अब उदयपुर में भी इसी तरह से रिसर्च किया जाएगा. उन्होंने बताया कि आसमान से एक ओर जहां सूर्य की किरणें आग उगल रही हैं, वहीं दूसरी ओर अब अल्ट्रावायलेट किरणें (यूवी रेडिएशन) भी खतरनाक स्तर तक जा पहुंची है. इसका स्तर औसत से तीन गुणा अधिक बढ़ गया है, जो लोगों के लिए खतरनाक है. यूवी सूचकांक त्वचा को नुकसान पहुंचाने वाली पराबैंगनी विकिरण की मात्रा को दर्शाता है, जो उस समय पृथ्वी की सतह तक पहुंचती है, जब सूर्य अपने उच्चतम स्तर पर होता है. 


इतना पहुंच गया युवी रेडिएशन
चित्तौड़गढ़ में कई जगह में पिछले दो महीनों में दोपहर में यूवी रेडियेशन का स्तर 12 यूनिट तक रिकॉर्ड किया जिसे काफी उच्च माना जाता है. जबकि अन्य महीनों में यह औसतन 3-4 यूनिट होता है. इसके साथ ही यूवी तीव्रता का औसत स्तर बहुत अधिक है. खास बात ये है कि प्रकाश की तीव्रता में तो ज्यादा परिवर्तन नहीं हो रहा है पर यूवी तीव्रता औसत स्तर में तेजी से परिवर्तन के साथ जलन का कारण बन रहा है. ऐसे में कड़ी धूप में बाहर निकलने वालों की आंखों में जलन, मोतियाबिंद, स्किन कैंसर और त्वचा संबंधी अन्य बीमारियां होने का खतरा बढ़ गया है. यह यूवी रेडिएशन की उच्च श्रेणी है और यह स्तर 15 जून तक रहने की आशंका है.


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असहनीय ताप व जलने के पीछे ये कारण 
मोहम्मद यासीन ने बताया कि निश्चित रूप से बढ़ता मानव हस्तक्षेप, संसाधनों का अंधाधुंध दोहन इन बड़े मौसमी बदलावों के लिए उत्तरदायी है. लेकिन गौर करने की बात यह है कि गर्मी के मौसम में 42–45° सेल्सियस तापमान हमारे यहां आम है, लेकिन इस वर्ष का ताप कुछ अलग है. इस बदलाव का संभावित कारण पराबैंगनी किरणों की मात्रा हो सकती है, जिसे यूवी इंडेक्स द्वारा मापा जाता है. सूरज कितना यूवी विकिरण उत्सर्जित करता है, इसका वातावरण निर्णय करता है कि वास्तव में इसका कितना हिस्सा सतह तक पहुंचता है. इसमें कई कारक शामिल होते हैं. जैसे दिन और वर्ष का समय, अक्षांश, पृथ्वी और सूर्य के बीच की दूरी और जमीन की ऊंचाई.  


अन्य बदलते कारक जो हैं जिसमें समताप मंडल ओजोन की मात्रा (हमारी विशाल सूर्य छतरी कितनी मोटी है), बादलों की उपस्थिति (धूल या प्रदूषण) और जमीनी परावर्तन (जैसे, पानी, बर्फ, मिट्टी). दरअसल सूर्य की पराबैंगनी किरणों से पृथ्वी को सुरक्षित रखने का कार्य वायुमंडल में ओज़ोन की परत करती है, लेकिन बढ़ते प्रदूषण और घटते पेड़ पौधों के चलते यह परत क्षतिग्रस्त होती जा रही है और अपना काम ठीक से नहीं कर पा रही, जिसके चलते पृथ्वी पर पहुंचने वाली परबैंगनी विकिरणों की शक्ति बढ़ रही है.


कैसे करें बचाव
कोशिश करें कि सुबह 10 से दोपहर 2 बजे के बीच धूप से बचें. अगर बाहर निकालना आवश्यक है तो त्वचा को सूर्य की सीधी किरणों से बचाएं. सनस्क्रीन का प्रयोग करें (अपनी त्वचा के अनुसार कम से कम 20 एसपीएफ का सनस्क्रीन लगाएं. सूती कपड़े से शरीर को ढकें, अधिक पानी पीएं, हरी पत्तेदार सब्जियां और फल खाएं. एक साल से छोटे बच्चों को सीधे धूप में न लाएं, इससे त्वचा संबंधित परेशानियां हो सकती हैं. आंखों को धूप के सीधे संपर्क में आने से बचाएं या चश्मा लगाएं.


हरियाली करें तो होगा बचाव
इससे बचने के लिए हरियाली को बढ़ाना बहुत जरूरी है. हरियाली बढ़ाने के लिए स्थानिय पेड़ों की प्रजातियों का चयन सबसे ज्यादा लाभदायी होगा.


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