Udaipur News: आपने अकसर गांव में या नगर निकायों या नगर परिषदों में सुना होगा सरपंच पति, अध्यक्ष पति, जो हमेशा हर सरकारी आदेश हो या फिर विकास के कार्य में महिला जनप्रतिनिधि की जगह एक्टिव मोड पर रहते हैं. यहां तक कि लोगों को कुछ भी अपना काम करवाना हो तो भी महिला जनप्रतिनिधियों की जगह उनके पति या रिश्तेदार पर संपर्क करते हैं.


लेकिन अब ऐसा नहीं होगा क्योंकि उनके पति या रिश्तेदारों पर सरकार की गाज गिर गई है. सरकार ने उनके खिलाफ एक ऐसा फैसला दिया है जिस पर उनके हाथ बंध जाएंगे. वह ना तो कोई फैसले में शामिल हो पाएंगे ना किसी बैठक में अपनी उपस्थिति दर्ज करवा पाएंगे. 


अब इन लोगों को नहीं मिलेगी हिस्सेदारी


स्वायत शासन विभाग के संयुक्त सचिव हृदेश कुमार शर्मा ने आदेश जारी किया है कि जिन नगर निगमों, परिषदों, पालिकाओं में महिला जन प्रतिनिधि निर्वाचित हुई है उन निगमों, परिषदों, पालिकाओं के क्रियाकलापों, बैठको इत्यादि में उनके पति या अन्य नजदीकी रिश्तेदार इसका हिस्सा नहीं होंगे. इससे पहले भी स्वायत्त शासन विभाग द्वारा समस्त नगरीय निकायों को निर्देशित किया गया था. ऐसी नगर निगम, परिषद, पालिकाओं में जहाँ महिला प्रतिनिधि निर्वाचित हुई है.


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उनके पति एवं रिश्तेदारों को इन निकायों के क्रियाकलापों एवं बैठकों में भाग लेने की अनुमति नहीं दी जाए और न ही बैठकों के क्रियाकलापों में दखलअन्दाजी करने की अनुमति दी जाए. इस आदेश का सख्ती से पालन होना चाहिए तथा उल्लघंन होने की स्थिति में सम्बन्धित दोषी अधिकारी-कर्मचारी के विरूद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही अमल में लाई जाएगी.


गांव में दी जाती है ज्यादा तवज्जोह


जानकारों का मानना है कि महिला जनप्रतिनिधियों के पति या रिश्तेदार का दबदबा होने की ज्यादा परेशानी सरपंच पद पर सामने आती है. सरपंच पद पर यह स्थिति बन जाती है कि जितने भी सरपंच पद के जरिए गांव में विकास के कार्य होने वाले हैं उन सब में सरपंच पति की दखलअंदाजी रहती है. यहां तक कि गांव में इसे ही सरपंच का दर्जा दिया जाता है. 


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