Rajasthan News: देश की आजादी के लिए कई लोगों ने अपनी जान गंवाई और लड़ाई लड़ी, लेकिन कई ऐसे स्वतंत्रता सेनानी (Freedom Fighters) रहे जिन्हें सिर्फ पुस्तकों और इतिहास के पन्नो में दर्ज होने के बाद भी आज लोग जानते नहीं है. यहां तक कि उन्हें स्कूल की पुस्तकों में भी नहीं पढ़ाया जाता है. उन्हें जानना है तो कई पुस्तकों का सहारा लेने की जरूरत होती है, लेकिन उदयपुर (Udaipur) के मनोज आंचलिया और सीमा वैद्य ऐसे गुमनाम आजादी के सेनानियों को एक जगह लेकर आए हैं. उन्होंने 21 हजार फीट लंबे कपड़े पर सैकड़ों सेनानियों का नाम लिखा है. बड़ी बात यह है कि उन्हें अब तक 13 राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय अवॉर्ड मिल चुके हैं.


15 साल किताबें पढ़ी तब यह सामने आए
मनोज आंचलिया ने बताया कि मैं स्पोर्ट्स का काम करता हूं. कई बार पत्र-पत्रिकाओं में ऐसे सेनानियों के बारे में पढ़ा जिन्हें कोई नहीं जानता है, तो सोचा कि और भी होंगे जिनके नाम इतिहास के पन्नों पर हैं, लेकिन लोग जानते नहीं हैं. फिर अलग-अलग जगह गया और पुस्तकालयों में कई किताबें पढ़ी. 15 साल किताबें पढ़ता रहा और एक डायरी बनाई, जिसमें उनके किस्से और नाम लिखता गया. इसके बाद सामने आया कि ऐसे देश के कई शहीद और स्वतंत्रता सेनानी रहे जिन्हें कोई जानता ही नहीं है. मैंने उनको एक जगह लाने की सोची और इसमें मेरा साथ सीमा वैद्य ने दिया जो मित्र की पत्नी हैं. 


90 साल के इतिहास के शहीदों को लिखा
मनोज आंचलिया ने बताया कि, अभी कोई विद्वान होंगे जो ज्यादा से ज्यादा 2 हजार ऐसे सेनानियों का नाम गिना सकते हैं, लेकिन इससे कई ज्यादा हुए हैं. मैंने डायरी में लिखे हुए सभी शहीदों और उनके किस्सों को एक कपड़े पर लिखना शुरू किया. 21 हजार फीट से भी ज्यादा लंबे कपड़े पर इनके नाम लिखे, जैसे सुभाष चंद्र बोस के दाहिने हाथ रासबिहारी, 12 साल का बच्चा शहीद हुआ, हिमालय के काशीराम जिन्होंने आजादी तक काले कपड़े पहनने का प्रण लिया सहित सैकड़ों नाम और किस्से लिखे. सभी जो 1857 से लेकर 1947 तक के इतिहास में दर्ज हैं उन्हें एक जगह लाए. 


मेवाड़ के युवराज के हाथों मिला अवार्ड
मनोज आंचलिया ने बताया कि, कपड़े पर लिखने के बाद गूगल पर सर्च किया कि अब तक ऐसा किसी ने किया है या नहीं, लेकिन कुछ नहीं मिला. इसके बाद अब तक 13 राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय अवार्ड मिल चुके हैं और भी आने वाले हैं. इन अवार्ड को शनिवार को मेवाड़ के युवराज डॉक्टर लक्ष्यराज सिंह के हाथों ग्रहण किया.


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