Udaipur: सीताफल से बदली आदिवासी महिलाओं की आर्थिक स्थिति, पल्प बनाकर कर रहीं कमाई
पेड़ों पर सड़ जानेवाले सीताफल से आदिवासी महिलाएं कमाई कर रही हैं. एग्रो कंपनी से ट्रेनिंग लेकर महिलाओं ने सीताफल पल्प बनाने का काम शुरू किया है. प्रोडक्ट बेचकर महिलाएं आर्थिक रूप से मजबूत हो रही हैं.
Udaipur News: जंगल में फल और वनस्पतियों का भंडार होता है. इनका सही तरीके से इस्तेमाल करने पर आर्थिक स्थिति मजबूत होती है. ऐसा ही कुछ उदयपुर की आदिवासी महिलाओं ने किया है. महिलाओं ने सीताफल पल्प बनाने का काम शुरू किया है. देश की कई नामी कंपनियां महिलाओं के प्रोडक्ट को खरीद रही हैं. पेड़ों पर लटके सड़ जानेवाले सीताफल का अब सही इस्तेमाल किया जा रहा है. उदयपुर में 10 हजार मीट्रिक टन से ज्यादा सीताफल होता है. पहले 60 फीसद खराब हो जाता था. गोगुन्दा तहसील के जंगलों में प्राकृतिक सीताफल के सैंकड़ों पेड़ लगे हुए हैं.
सीताफल पल्प बनाने का आदिवासी महिलाओं ने शुरू किया काम
पेड़ों पर हर साल अक्टूबर माह में सीताफल आते हैं. एक सीजन में 10 हजार मीट्रिक टन से भी ज्यादा की पैदावार होता है. 4-5 साल पहले आदिवासी क्षेत्र की महिलाएं सीताफल को पेड़ों से तोड़कर बाजार में बेचने जाती थीं. हाइवे पर भी कई जगह टोकरियां लेकर बैठी मिल जाती थीं. एक किलो सीताफल का दाम 10-12 रुपए मिलता था. सीताफल की पैदावार बड़ी मात्रा में होता है लेकिन बेचने के लिए 30-40 फीसद ही पेड़ों से तोड़ पाती थीं. बाकी सीताफल पेड़ों पर ही सड़ जाते थे.
वन विभाग के सहयोग से निजी एग्रो कंपनी ने बदली आर्थिक स्थिति
वर्ष 2017 में वन विभाग के सहयोग से एक निजी एग्रो कंपनी ने प्रोसेसिंग यूनिट की स्थापना की. यूनिट ने जंगलों में भरपूर सीताफल के पेड़ वाले 18 गांवों-ढाणियों का चयन किया. प्रत्येक गांव में 35 महिलाओं का ग्रुप बनाकर प्रशिक्षण दिया गया. महिलाओं को पेड़ों से सीताफल तोड़ने से लेकर सुरक्षित प्रोसेसिंग यूनिट तक लाने की जानकारी दी गई. यूनिट ने 6 अन्य गांवों का चयन कर प्रोसेंसिंग यूनिट लगाई और प्रत्येक गांव में 60 महिलाओं का ग्रुप बनाया. महिलाओं को सीताफल से पल्प निकालने का प्रशिक्षण दिया गया. करीब 1000 महिलाएं कारोबार से जुड़ गईं.
पहले 10-12 रुपए प्रति किलो सीताफल की बिक्री होने से महिलाओं की ज्यादा कमाई नहीं हो पाती थी. अब एग्रो कंपनी की प्रोसेसिंग यूनिट में 15-20 रुपए किलो सीताफल का दाम मिल जाता है. प्रोसेसिंग यूनिट में काम करने वाली महिलाओं को रोजाना 250 रुपए मिल रहे हैं. सीताफल के अलावा जामुन और अमरूद की भी प्रोसेसिंग होने से हर सीजन में आदिवासी महिलाओं की आर्थिक स्थिति बेहतर हो रही है.
एंटरप्रेन्योर राजेश ओझा ने बताया कि महिलाएं सीताफल से पल्प निकालती हैं. पल्प निकलने के बाद एक किलो की पैकेजिंग की जाती है. सुरक्षा के लिए पल्प को माइनस तापमान में रखा जाता है. सीताफल पल्प को खरीदने के लिए देश की कई बड़ी कंपनियों से आर्डर आए हैं. आइसक्रीम बनाने वाली मुंबई और अहमदाबाद की कंपनियां सीताफल पल्प को खरीद रही हैं. उन्होंने बताया कि पल्प आइसक्रीम बनाने, सीताफल का बीज पेस्टीसाइड और छिलका खाद बनाने के काम आ रहा है.