Rajasthan Water Crisis: रेगिस्तानी इलाकों में पानी की कमी हमेशा रहती है. इंसान से लेकर जानवरों तक को प्यास बुझाने के पानी लिए संघर्ष करना पड़ता है. सोशल मीडिया पर इन दिनों राजस्थान का एक वीडियो आकर्षण का केंद्र बना हुआ है. लोग कलाकारी के जरिए हलक तर कर रहे हैं. कुएं से पानी निकालने के लिए साधन ऊंट को बना लिया गया. पारंपरिक दृष्टि से सिंचाई के संसाधनों में रुड़की का विशेषता महत्व है.
70 के दशक तक रहट चरसा प्रमुख आवश्यकताओं में शामिल थी. रहट में बैलों और ऊंटों को जोतने की परंपरा रही है. रेगिस्तान का किसान हो या आम पानी की जरूरत रहट से ही पूरी करते थे. गहरे कुएं से पानी निकालने के लिए पारंपरिक साधन बेहद जरूरी हुआ करता था. इससे निकलनेवाले पानी को अलग-अलग नामों से जाना जाता है.
1. पालर पानी- : बरसात का पानी जिसे तालाब, झील या टांका में संचित किया जाता है
2. रेजाणी पानी-: वर्षा का पानी सूखने के बाद जमीन में खड़िया परत पर जमा हो जाता है, यह पाताली और पालर के बीच का पानी होता है
3. पाताली पानी-: बोरवेल या ट्यूबवेल का पानी
सिंचाई के लिए कुएं से पानी निकालने के लिए बनाए गए विशेष यंत्र को रहट, रहटा, अरहठ्ठ, चरखा, घंटियंत्र, अरहट, अरघटक, पिरिया, चरसा आदि नामों से जाना जाता था. वेदों में अरगराट शब्द का प्रयोग जल यंत्र के रूप में किया गया है. ऐसा कुआं जहां पर रहट से सिंचाई होती हो. प्राचीन समय में गहरे कुएं से पानी निकालने के लिए रहट और चरसा का इस्तेमाल सबसे ज्यादा किया जाता था.
इसमें चमड़े की बनी चड़स या जस्तेदार लोहे की चद्दर का बना हुआ यंत्र होता है. जिसे एक मजबूत चमड़े की रस्सी से एक सिरे से दूसरे सिरे को बांध देते हैं. यह रस्सी कुएं के सिरे पर लगी एक बिल्ली के ऊपर से जाती है और उसका दूसरा सिरा एक जोड़ी ऊंट और बैल से जोता जाता है. जब ऊंट का जोड़ा चलता है तो कुएं का पानी बाहर निकलता है.