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Rajasthan Election 2023: यह बांध है मावली विधानसभा क्षेत्र की जनता का सबसे बड़ा मुद्दा, ये नेता हैं इस बार चुनाव में टिकट के दावेदार

Rajasthan News: राजस्थान में विधानसभा चुनाव आने वाले है ऐसे में क्षेत्रों की मांग उठने लगी है. वहीं उदयपुर जिले की मावली विधानसभा की बात करे तो यहां बागोलिया बांध में पानी लाना यहां का बड़ा मुद्दा है.

Udaipur Politics: हर विधानसभा चुनाव के अलग-अलग मुद्दे होते हैं. अगर पानी-बिजली-सड़क की समस्या को छोड़ दिया जाए तो उस प्रमुख मुद्दे की मांग चुनाव से पहले ही उठने लगती है. चुनावी घोषणा पत्र में भी उसी वांड को पूरा करना दोहराया जाता है. आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति शुरू हो जाती है. ऐसा ही हाल उदयपुर से 40 किलोमीटर दूर मावली विधानसभा की है. यह हर साल राजस्थान में किसी ना किसी कारण चर्चाओं में रहती है. खास बात यह है कि यह विधानसभा है तो ग्रामीण क्षेत्र लेकिन यहां से राजस्थान के दिग्गज नेता निकले हैं, इसमें मावली के पहले विधायक जर्नादन राय नागर, निरजंन नाथ आचार्य, हनुमान प्रसाद प्रभाकर और शांतिलाल चपलोत हैं. बड़ी बात यह है कि इस विधानसभा का एक ही सबसे बड़ा मुद्दा है जो कई सालों से बना हुआ है, बागोलिया बांध.आइये सबसे पहले जानते हैं क्यों यहां के लिए अहम है बागोलिया बांध.

1956 में बना बांध, 16 साल से नहीं आया पानी

मावली विधानसभा की बात करें तो बडियार पंचायत में मावली-नाथद्वारा रोड पर बागोलिया बांध है. बागोलिया बांध 1956 में बना था. इससे पूरे मावली क्षेत्रभर में पेयजल और सिंचाई होती थी. लेकिन बारिश कम होने और यह भी बताते हैं कि आवक के रास्ते एनीकट बनने से बांध में पानी नहीं आने से क्षेत्र में बड़ा संकट हो गया है. मावली विधानसभा क्षेत्र की प्यास बुझाने और सिंचाई को लेकर खेतों तक पानी पहुंचाने के लिए सबसे बड़ा यह बागोलिया बांध है,जो करीब 16 साल से पानी की आवक का इतंजार कर रहा है. हर चुनाव में यह बड़ा मुद्दा होता है.मांग उठती है कि राजसमंद जिले के बाघेरी नाका और उदयपुर की उदयसागर झील से पानी यहां नहर के माध्यम से लाया जाए.पिछली बीजेपी सरकार में डीपीआर भी बनी लेकिन उसके आगे कुछ नहीं हुआ.  

आकड़ों में मावली विधानसभा

उदयपुर में आठ विधानसभा सीटें हैं, इसमें मावली एक है जो सामान्य विधानसभा सीट है. पिछले विधानसभा चुनाव के आकड़ों पर नजर डालें तो  विधानसभा सीट में वोटरों की कुल संख्या 206869 थी.इसके साथ ही 2011 की जनगणना के अनुसार मावली विधानसभा की जनसंख्या 3,20,997 है. इसका 86.89 फीसदी हिस्सा ग्रामीण और 13.11 फीसदी हिस्सा शहरी है.आबादी का 23.11 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति और 10.23 प्रतिशत अनुसूचित जाति है.आदिवासी आबादी के बाद इस सीट पर पाटीदार और ब्राह्मण समाज का दबदबा है. 

कैसा है राजनीतिक समीकरण

बीजेपी और कांग्रेस के इस सीट पर दबदबे की बात करें तो यहां कभी बीजेपी तो कभी कांग्रेस का राज रहा है.लेकिन पिछले 10 साल से यहां बीजेपी है. अभी मौजूद विधायक बीजेपी के धर्मनारायण जोशी हैं. वो पिछली बार रिकॉर्ड तोड़ वोट से जीते थे.वहीं इनके सामने कांग्रेस के सबसे बड़े पुष्करलाल डांगी थे. वे दो बार चुनाव हार चुके हैं और अभी प्रधान है.वहीं 2013 में भी बीजेपी के दली चंद डांगी बीजेपी के उम्मीदवार थे. इससे पहले 2008 में कांग्रेस के पुष्करलाल डांगी, 2003 बीजेपी से शांतिलाल चपलोत, 1998 में कांग्रेस के शिवसिंह माले. यानी राजस्थान सरकार की तरह यहां भी पार्टी विधायक बदलते रहे है. 

कौन कौन बना है विधायक

राजनीतिक विश्लेषक डॉक्टर कुंजन आचार्य ने बताया कि मावली विधानसभा क्षेत्र प्रदेश में हर चुनाव में सुर्खियों में रहा है. यहां से निर्वाचित दो-दो विधायक विधानसभा के अध्यक्ष व प्रदेश में मंत्री रहे हैं. एक बार निर्दलीय प्रत्याशी निरंजननाथ आचार्य ने सत्ताधारी दल कांग्रेस के प्रत्याशी की जमानत तक जब्त करवाकर जीत हासिल की थी.यहां कांग्रेस के सबसे मजबूत चेहरे पूर्व विधायक पुष्कर लाल डांगी दो बार चुनाव हार चुके हैं, हालांकि वे अभी मावली के प्रधान हैं.ऐसी स्थिति में उनका विरोधी खेमा टिकट बदलकर जगदीशराज श्रीमाली, जीतसिंह चुंडावत या गोवर्धन सिंह चौहान को देने की मांग कर रहा है.साल 2018 में संभाग में सर्वाधिक 28 हजार वोटों से चुनाव जीते विधायक धर्मनारायण जोशी इस बार भी बीजेपी की ओर से टिकट के सशक्त दावेदार हैं. उदयपुर से गुलाबचंद कटारिया के राज्यपाल बनने के बाद जोशी के उदयपुर से लड़ने की भी चर्चा जोरो से है. बीजेपी में चन्द्रगुप्त सिंह चौहान, दिनेश कावडिया, दलीचंद डांगी, कुलदीप सिंह के नाम की भी चर्चा है.

मावली का एक बड़ा चुनावी मुद्दा बागोलिया बांध रहा है, जो कि अभी तक जस का तस है.वहीं फतहनगर में 87.2 बीघा जमीन के पट्टे का मामला विधायक जोशी के विधानसभा में मामला उठाने और बीजेपी बोर्ड द्वारा पट्टे जारी किए जाने से बीजेपी को लाभ हुआ है.वहीं कांग्रेस भी इसका श्रेय लेने में पीछे नहीं रही. कुल मिलाकर लगता है कि यहां चुनाव मुद्दों पर कम व प्रत्याशियों की छवि पर अधिक केंद्रित होगा.

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