35 महीने से सचिन पायलट और अशोक गहलोत के बीच जारी सियासी युद्ध पर विराम लग गया है. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के आवास पर 4 घंटे तक चली मैराथन मीटिंग के बाद दोनों गुट ने सुलह पर रजामंदी दे दी. भविष्य में दोनों की क्या भूमिका होगी, हाईकमान तय करेगा. 


खरगे के सरकारी आवास 10 राजाजी मार्ग पर सोमवार को शाम 6 बजे मीटिंग शुरू हुई. सबसे पहले अशोक गहलोत का अपना पक्ष रखने का मौका मिला. खरगे के साथ बैठक में राहुल गांधी भी थे. गहलोत की दलीलें सुनने के बाद हाईकमान ने सचिन पायलट को बुलाया.


सूत्रों के मुताबकि पायलट ने मीटिंग में पुरानी मांगें दोहराई और अल्टीमेटम का भी जिक्र किया, लेकिन राहुल ने उन्हें सब कुछ ठीक होने का आश्वासन दिया. सचिन पायलट की भूमिका और चुनावी रणनीति तय करने के लिए खरगे के आवास पर एक और मीटिंग आगामी दिनों में हो सकती है. 


सचिन पायलट और अशोक गहलोत के बीच सियासी युद्ध-विराम के बीच पायलट की नई भूमिका को लेकर जहां सवाल उठ रहे हैं. वहीं चर्चा इस बात की भी हो रही है कि दोनों के बीच सुलह के बाद राजस्थान कांग्रेस के उन 5 नेताओं का क्या होगा, जो पायलट-गहलोत गुट के रडार पर थे.


आइए इस स्टोरी में इन्हीं 5 नेताओं के बारे में विस्तार से जानते हैं...


1. गोविंद सिंह डोटासरा- 2018 में जब राजस्थान में गहलोत सरकार बनी तो डोटासरा को कैबिनेट में शामिल किया गया. डोटासरा 2008 से ही सीकर के लक्ष्मणगढ़ से विधायक हैं. 2020 में जब पायलट गुट के नेता मानेसर गए, तो उन्हें हाईकमान ने प्रदेश अध्यक्ष की भूमिका सौंपी थी.


डोटासरा संगठन को एकजुट करने में अब तक विफल रहे हैं. उनसे पूछे बिना सचिन पायलट गुट के नेता और विधायक कार्यक्रम तय कर देते हैं. हाल ही में उनका एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें कांग्रेस विधायक राजेंद्र पारीख से उनका विवाद हो गया. 




विधायकों का आरोप है कि डोटासरा मुख्यमंत्री के कहने पर ही काम करते हैं, जिससे प्रदेश संगठन में भारी गुटबाजी है. इतना ही नहीं, अध्यक्ष बनने के बाद से डोटासरा खूब विवादों में रहे हैं. आरएएस परीक्षा में उनपर परिवार के लोगों को सेटल कराने का आरोप लगा था. 


वहीं डोटासरा ने एक मंच से महिला शिक्षकों को झगड़ालू बता दिया था. जिस पर खूब हंगामा बरपा था. अकबर-महाराणा प्रताप के विवाद में भी डोटासरा करणी सेना के रडार पर आ गए थे.


कांग्रेस में जिस फॉर्मूले की चर्चा हो रही है, उसमें कहा जा रहा है कि सचिन पायलट या उनके करीबी को अध्यक्ष की कुर्सी मिल सकती है. अगर गहलोत का वीटो भी लग गया तो डोटासरा की कुर्सी बचना लगभग नामुमकिन माना जा रहा है.


गहलोत के वीटो लगने के बाद हाईकमान किसी नए चेहरे को अध्यक्ष बना सकती है. 


2. प्रताप सिंह खाचरियावास- 2018 में प्रताप सिंह खाचरियावास सचिन पायलट कोटे से मंत्री बनाए गए. उन्हें उस वक्त परिवहन जैसा भारी-भरकम मंत्रालय भी मिला. खाचरियावास जयपुर के सिविल लाइन्स सीट से विधायक हैं. 2008 से 2013 तक वे इसी सीट से विधायक रह चुके हैं.


राजपूत बिरादरी से आने वाले प्रताप सिंह ने छात्र राजनीति के जरिए पॉलिटिक्स में एंट्री ली. 1992-93 में उन्होंने राजस्थान यूनिवर्सिटी छात्रसंघ का चुनाव जीता. इसके बाद कांग्रेस की राजनीति में आ गए.




2020 में जब सचिन पायलट गहलोत सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलने के लिए मानेसर गए, तो खाचरियावास गहलोत के साथ हो गए. इतना ही नहीं, गहलोत के पक्ष में सचिन पायलट गुट पर जमकर हमला किया. पायलट गुट की वापसी पर भी खाचरियावास ने सवाल उठाए.


2021 में जब कैबिनेट में फेरबदल होना था, तो खाचरियावास की कुर्सी पर संकट आ गया. वजह थी- खाचरियावास के नाम को किसी गुट ने तरजीह नहीं दी. हालांकि, हाईकमान ने उस वक्त उनकी कुर्सी बचा ली, लेकिन विभाग बंटवारे में उनका डिमोशन हो गया.


सूत्रों के मुताबिक सचिन पायलट और अशोक गहलोत के बीच समझौता फाइनल हो जाएगा, तो जल्द कैबिनेट विस्तार किया जा सकता है. कांग्रेस सरकार का यह आखिरी विस्तार होगा. कैबिनेट विस्तार में खाचरियावास की कुर्सी पर इस बार भी संकट आने की बात कही जा रही है. 


3. शांति धारीवाल- 25 सितंबर 2022 को अशोक गहलोत सरकार में वरिष्ठ मंत्री शांति धारीवाल देशभर में चर्चित हो गए. वजह था- कांग्रेस हाईकमान के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंकते हुए 80 विधायकों से इस्तीफा दिलवा देना.


दरअसल, सोनिया गांधी ने मल्लिकार्जुन खरगे और अजय माकन को राजस्थान कांग्रेस विधायक दल की मीटिंग कराकर एक लाइन का प्रस्ताव लाने के लिए दिल्ली से जयपुर भेजा. खरगे और माकन जब जयपुर पहुंचे तो कांग्रेस के 90 विधायक मीटिंग में आने से इनकार कर दिया.




कुछ देर बाद खबर आई कि सभी बागी विधायक मंत्री शांति धारीवाल के घर पर पहुंच गए हैं और वहां से अपना इस्तीफा विधानसभा स्पीकर को भेज दिया है. हाईकमान की ओर से गए ऑब्जर्वर ने मीटिंग रद्द कर कांग्रेस अध्यक्ष को पूरी रिपोर्ट सौंप दी. 


शांति धारीवाल, महेश जोशी समेत 4 लोगों के खिलाफ अनुशासनहीनता का मामला अभी भी पेंडिंग है. सचिन पायलट इन सभी पर कार्रवाई की मांग कर रहे हैं. धारीवाल अशोक गहलोत के काफी करीबी नेता माने जाते हैं और ओम बिरला के गढ़ कोटा से विधायक हैं.


धारीवाल के पास यूडीएच जैसा भारी-भरकम विभाग भी है, लेकिन अपने विवादित बयानों की वजह से सुर्खियों में भी रहते हैं. सियासी गलियारों में सचिन पायलट और अशोक गहलोत के समझौते में धारीवाल का पर कतरा जाना तय माना जा रहा है. 


4. रमेश मीणा- 2009 में बीएसपी से कांग्रेस में आए रमेश मीणा 2014 के बाद सचिन पायलट के करीबी बन गए. 2018 में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद मीणा को सचिन पायलट कोटे से मंत्री बनाया गया और खाद्य विभाग की जिम्मेदारी दी गई.


2020 में रमेश मीणा सचिन पायलट के साथ मानेसर गए. इसकी वजह से उनकी कुर्सी भी चली गई, लेकिन जब 2021 में कैबिनेट विस्तार हुआ तो रमेश मीणा का कद और अधिक बढ़ा दिया गया. मीणा को सचिन पायलट वाला पंचायती राज और ग्रामीण विकास की जिम्मेदारी मिली.


मंत्री बनने के कुछ महीनों बाद मीणा गहलोत खेमे में शामिल हो गए. उन्होंने खुद को पायलट से दूरी बनाने के लिए खूब बयानबाजी भी की. कई बार गहलोत की तारीफ में भी बयान दिए. पायलट ने इसके बाद मीणा से संपर्क खत्म कर दिया. 




ऐसे में अब सचिन पायलट और अशोक गहलोत के बीच समझौते के बाद कयास लगाए जा रहे हैं कि मीणा का भी पर कतरा जाएगा. कैबिनेट विस्तार में उनका डिमोशन भी हो सकता है. पायलट इस सरकार के अंतिम कैबिनेट विस्तार में अपने उन करीबियों को शामिल कराएंगे, जो अभी साथ हैं. अगर ऐसा होता है तो मीणा से कैबिनेट मंत्री का पद भी छीना जा सकता है.


5. विश्वेंद्र सिंह- सचिन पायलट जब मानेसर गए थे, तो उस वक्त उनकी ओर से तत्कालीन मंत्री विश्वेंद्र सिंह की बयान जारी करते थे. भरतपुर के डींग-कुम्हेर सीट से विधायक विश्वेंद्र सिंह राजपरिवार से आते हैं. विश्वेंद्र सिंह लोकसभा के सांसद भी रह चुके हैं.


2021 के कैबिनेट विस्तार में सचिन पायलट कोटे से सिंह को मंत्रिमंडल में शामिल किया गया. कुछ दिन तक सबकुछ ठीक-ठाक चलने के बाद सिंह ने भी पाला बदल लिया. सिंह गहलोत की तारीफ में जमकर कसीदे पढ़े और उन्हें 2023 तक मुख्यमंत्री रहने की बात कही.






गहलोत ने जब मानेसर गए विधायकों पर अमित शाह से पैसे लेने का आरोप लगाया, तब भी सिंह ने उनका विरोध नहीं किया. सूत्रों के मुताबिक सचिन पायलट इससे भी नाराज हैं.


सिंह के खिलाफ उनके बेटे अनिरुद्ध ने ही मोर्चा खोल रखा है. सोशल मीडिया पर अनिरुद्ध लगातार कांग्रेस हाईकमान, अपने पिता और अशोक गहलोत के खिलाफ ट्वीट करते रहते है. 


कैबिनेट विस्तार के नए समीकरण में सिंह गहलोत सरकार में से एग्जिट हो सकते हैं. हालांकि, अभी फॉर्मूला हाईकमान को निकालना है.


पायलट को मनाने का फॉर्मूला क्या हो सकता है?
सचिन पायलट और अशोक गहलोत दोनों ने फैसला हाईकमान पर छोड़ दिया है. माना जा रहा है कि जल्द ही मल्लिकार्जुन खरगे गहलोत और पायलट समेत राजस्थान के कुछ और नेताओं को नई जिम्मेदारी सौंपे. पायलट को लेकर सियासी गलियारों में 2 फॉर्मूले की चर्चा जोरों पर है.


1. राजस्थान में प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी- सचिन पायलट को लेकर सबसे बड़ी चर्चा यही है. सचिन पायलट को फिर से प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने की बात कही जा रही है. इस स्थिति में गहलोत भले मुख्यमंत्री रहे, लेकिन उनका राजनीतिक दायका सिमट जाएगा.


पायलट ने सीएम की कुर्सी त्याग किया है. ऐसे में टिकट बंटवारे से लेकर तमाम फैसलों में पायलट को तरजीह मिलेगी. हालांकि, इसमें पायलट की सहमति जरूरी है. पायलट गुट का कहना है कि पहले डिमांड को सरकार पूरी करे.


पायलट ने तीन मांगे गहलोत सरकार के सामने रखी है. इनमें सरकारी नौकरी के लिए परीक्षा आयोजित कराने वाली संस्था आरपीएससी को भंग करना और वसुंधरा राजे पर एक्शन लेना प्रमुख है.


2. 2024 तक केंद्र में रहे फिर राजस्थान का चेहरा- राजस्थान में सरकार बदलने की रिवाज है. माना जा रहा है कि सचिन पायलट ऐसी कोई जिम्मेदारी शायद ही ले, जिसमें चुनाव बाद हार का ठीकरा उन पर भी फूटे. 


इस स्थिति में कहा जा रहा है कि पायलट राष्ट्रीय महासचिव की भूमिका में आ सकते हैं और 2023 चुनाव तक दिल्ली की राजनीति करेंगे. इस दौरान उनके समर्थकों का ख्याल कांग्रेस पार्टी रखेगी. यानी उनके समर्थकों के टिकट नहीं काटे जाएंगे. 


हाल के दिनों में कमलनाथ ने उन्हें इस तरह का ऑफर दिया भी था, लेकिन उस वक्त पायलट ने इनकार कर दिया था.