Karni Sena: कौन हैं राजूपत युवाओं में स्वर्णिम इतिहास संजोने वाले 'रोल मॉडल' लोकेंद्र सिंह कालवी?
Who is Lokendra Singh Kalvi: लोकेंद्र सिंह कालवी 'करणी सेना' के संस्थापक थे. वर्ष 2006 में उन्होंने करणी सेना के गठन की नींव रखी थी. इसी संगठन की मदद से कालवी राजपूतों के 'रोल मॉडल' बन गए थे.
Lokendra Singh Kalvi Passed Away: करणी सेना के संस्थापक लोकेंद्र सिंह कालवी (Lokendra Singh Kalvi) का सोमवार देर रात करीब 2 बजे जयपुर के एसएमएस अस्पताल (SMS Hospital) में हार्ट अर्टैक (Heart Attack) आने की वजह से निधन हो गया. 80 साल की उम्र में उन्होंने आखिरी सांस ली. आज दोपहर करीब 2:30 बजे नागौर जिले में स्थित पैतृक गांव कालवी का अंतिम संस्कार किया जाएगा. इससे पहले अंतिम दर्शन के लिए राजपूत सभा भवन जयपुर में उनका पार्थिव शरीर रखा जाएगा.
कौन हैं लोकेंद्र सिंह कालवी?
लोकेंद्र सिंह कालवी करणी सेना (Karnin Sena) के संस्थापक थे. आज से करीब साढ़े 18 साल पहले वर्ष 2006 में उन्होंने करणी सेना के गठन की नींव रखी थी. बीकानेर जिले में स्थित देशनोक कस्बे के करणी माता मंदिर (Shree Karni Mataji Temple) के नाम पर इस संगठन का नाम रखा गया था. इसमें अधिकतर 40 साल से कम उम्र के युवाओं को शामिल किया गया. करणी सेना का गठन करने के बाद कालवी एक बार फिर से स्वयंभू नेता हो गए थे. भड़काऊ मुद्दों पर विवाद और बॉलीवूड मूवी 'पद्मावत', 'वीर', 'जोधा अकबर' जैसी फिल्मों पर विरोध की वजह से करणी सेना और लोकेंद्र सिंह कालवी को अलग पहचान मिली. इसके बाद से करणी सेना का संगठन देश के कई हिस्सों में फैल गया. 'पद्मावत' विवाद के बाद से राजपूतों से जुड़े कई विवादित मुद्दों पर करणी सेना ने आक्रामक रुख अपनाया और जमकर चर्चा बटोरी. इसके बाद से ही कालवी राजूपत युवाओं में स्वर्णिम इतिहास को संजोने वाले 'रोल मॉडल' बन गए.
राजनीति में भी आजमाया हाथ
मध्य राजस्थान के नागौर जिले में जन्म लोकेंद्र सिंह कालवी को राजनीति विरासत में मिली. उनके पिता कल्याण सिंह कालवी राज्य और केंद्र सरकार में कुछ समय में लिए मंत्री भी रहे. वे चंद्रशेखर के काफी करीबी थे. इसीलिए उनके असमय चले जाने पर लोकेंद्र को पीएम के समर्थकों ने सहारा दिया. खुद को किसान नेता कहने वाले लोकेंद्र ने राजनीति में सफलता पाने के कई प्रयास किए लेकिन सफल न हो सके. वर्ष 1993 में नागौर तो 1998 के लोकसभा चुनावों में उन्होंने बाड़मेर-जैसलमेर सीट से भाजपा के टिकट पर भाग्य आजमाया, लेकिन वे चुनाव हार गए. जानकार कहते हें कि उस वक्त वह जाति की राजनीति नहीं कर रहे थे.
वसुंधरा राजे से रहा 36 का आंकड़ा
वसुंधरा राजे (Vasundhara Raje) का भी कालवी का हमेशा से 36 का आंकड़ा रहा. राजे के राजस्थान के मुख्यमंत्री के पहले कार्यकाल के दौरान कई बार कालवी ने करणी सेना की रैलियां कीं और आरक्षण की मांग की. उस वक्त जयपुर में एक बड़ी सभा का आयोजन भी किया गया था. लेकिन राजपूत नेताओं में बिखराव के चलते यह असफल हो गया था. कालवी ने फिर आरक्षण के मुद्दे पर राजपूतों को एक होने की आवाज बुलंद की. उन्होंने जाटों को 1999 के दौर में आरक्षण का लाभ मिलने के बाद अपने समुदाय को कोटे के नाम पर एकजुट करने के प्रयास शुरू किया. देवी सिंह भाटी और सर्व ब्राह्मण महासभा के अध्यक्ष सुरेश मिश्रा के साथ उन्होंने सोशल जस्टिस फ्रंट का गठन किया, जिसकी मांग थी कि उच्च वर्ग के गरीबों को भी आरक्षण का लाभ मिले. लेकिन 2003 के विधानसभा चुनाव में यह फ्रंट राजस्थान सामाजिक न्याय मंच के नाम से राजनीतिक पार्टी की शक्ल ले चुका था. इस राजनीतिक दल के चुनाव में 60 उम्मीदवार थे. लेकिन सिर्फ एक उम्मीदवार देवी सिंह भाटी ही जीत सके. इसके बाद कालवी ने भाटी से अपनी राह अलग कर ली और वापस भाजपा में आ गए. लेकिन करणी सेना ने ही उन्हें एक अलग पहचान दिलाई.
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