Udaipur Royal Family Controversy: राजे रजवाड़े खत्म हुए सालों बीत गए लेकिन राजशाही अभी तक जिंदा है.राजस्थान के सिरमौर राजघरानों की बात की जाए तो सबसे पहले तीन बड़े राजपरिवार जयपुर, जोधपुर और उदयपुर के नाम सामने आते है. इन घरानों के सदस्यों के बीच संपत्ति का विवाद तो आम बात है. 


राजस्थान के तीनों बड़े राजघरानों में एक कॉमन है. वो यह है कि तीनों राजस्थान की राजनीति में दखल रखते हैं. जोधपुर राजघराने के गज सिंह, जयपुर राज परिवार की दिया कुमारी और उदयपुर राज परिवार के विश्वराज सिंह और महिमा कुमारी जैसे तमाम लोग राजनीति में सक्रिय हैं, लेकिन पिछले दो दिनों से उदयपुर राजघराने में मचे भीषण संग्राम लोगों के बीच सुर्खियों में है. 


उदयपुर यानी मेवाड़ राजपरिवार की पहचान महाराणा प्रताप के वंशज होने के नाते है. इस परिवार के सदस्यों के बीच संपत्ति का विवाद करीब चार दशक से ज्यादा अरसे से जारी है. सोमवार को इस राजपरिवार का ये विवाद सड़कों पर आ गया और वंश के दो पक्ष पत्थरबाजी और उपद्रव से जुड़ गए. 


दरअसल, मेवाड़ राजपरिवार के आखिरी महाराणा थे भूपाल सिंह थे. भूपाल सिंह की अपनी कोई संतान नहीं थी, इसलिए उन्होंने भगवत सिंह को गोद लिया था. भगवत सिंह की तीन संताने हुए जिनमें महेंद्र सिंह बड़े बेटे और अरविंद सिंह छोटे बेटे थे. 


इनके अलावा, भगवत सिंह की एक बेटी योगेश्वरी भी थी. महाराणा भगवत सिंह ने 1963 से 1983 तक राजघराने की कई प्रॉपर्टी को लीज पर दे दिया, तो कुछ प्रॉपर्टी में हिस्सेदारी बेच दी. इनमें लेक पैलेस, जग निवास, जग मंदिर, फतह प्रकाश, शिव निवास, गार्डन होटल, सिटी पैलेस म्यूजियम जैसी बेशकीमती प्रॉपर्टीज शामिल थीं. 


ये सभी प्रॉपर्टी राजघराने द्वारा स्थापित एक कंपनी को ट्रांसफर हो गई थीं. यहीं से विवाद शुरू हुआ. महेंद्र सिंह अपने पिता भगवत सिंह के इस कृत्य से खासे नाराज हो गए और उन्होंने अपने पिता के खिलाफ कोर्ट केस दायर कर दिया. महेंद्र सिंह ने कानून का हवाला देकर दावा किया कि परिवार का बड़ा बेटा ही संपूर्ण संपत्ति का हकदार होता है. 


महेंद्र सिंह की इस हरकत से पिता भगवत सिंह खासे नाराज हो गए और कोर्ट में जवाब दिया कि हर संपत्ति का हिस्सा नहीं हो सकता. साल 1984 में भगवत सिंह का निधन हो गया, लेकिन अपनी मौत से पहले वसीयत के जरिए उन्होंने महेंद्र सिंह को अपनी तमाम संपत्तियों और महाराण मेवाड़ ट्रस्ट से बेदखल करते हुए अपने छोटे बेटे अरविंद सिंह को सभी संपत्तियों का हकदार घोषित कर दिया. तभी से भगवत सिंह के बड़े बेटे महेंद्र सिंह और छोटे बेटे अरविंद सिंह के परिवारों के बीच संपत्ति की ये जंग अब तक जारी है.


ये है उदयपुर राजघराने में विवाद की पूरी कहानी 


ताजा विवाद तब उपजा जब महेंद्र सिंह की हाल में हुई मृत्यु के बाद उनके बेटे विश्वराज के राजतिलक की तैयारी शुरू हुई. सोमवार को चित्तौड़ में तमाम शाही परिवारों के सरदारों और ठिकानेदारों की मौजूदगी में विश्वराज का राज तिलक हुआ. मेवाड़ राजपरिवार की पुरानी रस्म है कि राजतिलक के बाद राजा अपनी इष्टदेव की चौखट और एकलिंग जी के मंदिर में दर्शन के लिया जाता है. 


विश्वराज अभी बीजेपी के विधायक भी हैं, उनके राजतिलक और धूनी दर्शन की सूचना से दूसरे पक्ष यानी उनके चाचा अरविंद सिंह के परिवार में खलबली मच गई. इसकी वजह है धूनी दर्शन वाली जगह और एकलिंग मंदिर का कब्जा अरविंद सिंह के परिवार के पास होना. अरविंद सिंह खुद तो अभी उम्र अधिक होने की वजह से सक्रिय नहीं हैं, लेकिन विश्वराज के चचेरे भाई और अरविंद सिंह के बेटे लक्ष्यराज सिंह ने अपने भाई को सिटी पैलेस में घुसने नहीं देने की तैयारी कर ली.


सोमवार की सुबह सभी प्रमुख अखबारों में इस आशय के बड़े—बड़े विज्ञापन छप गए कि सिटी पैलेस और एकलिंग मंदिर अरविंद सिंह और उनकी परिवार की संपत्ति है और इसमें किसी भी अनाधिकृत व्यक्ति का प्रवेश नहीं हो सकता. इधर, राजतिलक के बाद विश्व राज धूनी दर्शन की तैयारी में थे. इस बीच पुलिस ने भी मौके की नजाकत भांप ली थी और सिटी पैलेस के बाहर पुलिस फोर्स तैनात कर दी गई. 


खुद एसपी और कलेक्टर ने मौके पर खड़े रहकर दोनों पक्षों के बीच समझौते के प्रयास किए लेकिन ना विश्वराज माने ना लक्ष्यराज सिंह. शाम को विश्वराज अपने समर्थकों के साथ सिटी पैलेस के नजदीक जगदीश चौक तक पहुंच गए. इसके लिए उन्होंने पुलिस की बैरिकेडिंग को भी तोड़ डाला, लेकिन दूसरी तरफ लक्ष्यराज ने सिटी पैलेस के दरवाजे बंद कर दिए, जिसकी वजह से विश्वराज और उनके समर्थक भीतर नहीं जा सके.


रात तक विश्वराज सिटी पैलेस के बाहर रहे और इसी दौरान दोनों पक्षों के बीच पथराव शुरू हो गया. इस पथराव में कई लोग घायल भी हुए लेकिन विश्वराज धूनी दर्शन नहीं कर सके. विश्वराज का तर्क है कि वो टकराव नहीं चाहते थे इसलिए मौके से चले गए. मामला बिगड़ता देख प्रशासन हरकत में आया और आधी रात के बाद विवादित जगह को कुर्क करके उस पर रिसीवर तैनात कर दिया गया.


अभी इलाके में शांति कायम है लेकिन सैंकड़ों साल पुराने मेवाड़ राज परिवार की सड़क पर आ चुकी इस लड़ाई को दुनिया भर ने देख लिया.


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