Sheetala Ashtami 2023: राजस्थान को यूं ही नहीं कहा जाता है, रंगीलो राजस्थान. इसके पीछे भी कई राज हैं. राजस्थान में सबके प्रति सम्मान दर्शाने की परंपरा रही है. चाहे इंसान हो या जानवर, गरीब हो या अमीर, यहां सबको सम्मान मिलता है.और तो और यहां गधहे भी पूजे जाते हैं. महिलाएं गधे के माथे पर हल्दी-रोली का तिलक लगाकर उसके पांव पूजती हैं. उन्हें पकवान खिलाने की कोशिश करती हैं.


कब होती है शीतला माता की पूजा


हिंदू वैदिक ज्योतिष के अनुसार चैत्र महीना की कृष्ण पक्ष की अष्टमी और होली के सात दिन बाद शीतलाष्टमी आती है. मान्यता के अनुसार शीतलाष्टमी के दिन शीतला माता की पूजा-अर्चना की जाती है. शीतलाष्टमी की पूजा को बासोड़ा भी कहते हैं. इस दिन रात को पकवान बनाकर सुबह शीतला माता की पूजा-अर्चना कर उनको बासे भोजन का भोग लगाया जाता है. परिवार के सभी लोग बासा भोजन ही करते हैं. 


जब शीतला माता की पूजा करने महिलाएं जाती हैं तो शीतला माता के मंदिर में गधे की पूजा भी करती हैं. महिलाएं गधे की हल्दी रोली का तिलक लगाकर उसको पकवान भी खिलाने की कोशिश करती हैं. ऐसी मान्यता है कि गधा, शीतला माता की सवारी है. इसलिए शीतला माता की पूजा के साथ उनकी सवारी की भी पूजा की जाती है.


शीतला माता की महिमा


उत्तर भारत में शीतलाष्टमी का विशेष महत्व है.गांव और शहर में शीतला माता का मंदिर होता है. वहां शीतलाष्टमी पर पूजा की जाती है. कई जगह तो लड़के की शादी के बाद नई दुल्हन को लेकर शीतला माता के मंदिर भी जाते हैं.वहां पर पूजा करने के बाद ही नई दुल्हन घर के किसी काम को हाथ लगाती है.


इस बार भरतपुर और आसपास के क्षेत्र में 15 मार्च को शीतलाष्टमी का पर्व मनाया जाएगा. सप्तमी की रात को अपनी श्रद्धा के अनुसार हलुआ,पूड़ी, मीठे चावल,मीठी पूड़ी जैसे पकवान बनाकर अष्टमी के दिन सुबह से ही शीतला माता के मंदिर में पूजा के लिए भीड़ उमड़ती है. महिलाएं शीतला माता की पूजा करती हैं और कहानी सुनाती हैं कि क्यों पूजा की जाती है शीतला माता की. 


क्यों जलने से बच गया था बुढिया का घर


शीतला माता की कहानी यह है कि एक बार एक नगर में सभी ने शीतला माता की पूजा-अर्चना के लिए गर्म और गरिष्ठ पकवान बनाकर भोग लगाया. इससे शीतला माता का मुंह जल गया. इससे शीतला माता नाराज हो गईं.माता के प्रकोप से नगर में आग लग गई. सभी के घर जलकर राख हो गए. पूरे नगर में एक बुढ़िया का ही घर ऐसा था जो जलने से बच गया. नगरवासियों ने जब उस बुढ़िया से पूछा की तुम्हारा घर क्यों नहीं जला तो बुढ़िया ने बताया की उसने रात को शीतला माता का प्रसाद बनाकर रखा था और सुबह शीतला माता को बासी प्रसाद का भोग लगाया. इससे शीतला माता ने मेरे घर को जलने से बचा लिया. इसके बाद सभी नगरवासियों ने शीतला माता से क्षमा मांगी और आने वाले सप्तमी और अष्टमी तिथि पर शीतला माता का बासोड़ा पूजन करने का निर्णय लिया.तभी से होली के बाद आने वाली सप्तमी अष्टमी को शीतला माता की पूजा कर बासोड़ा मनाया जाता है. 


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