World Schizophrenia Day 2024 in Kota: हर साल 24 मई को विश्व सिजोफ्रेनिया दिवस मनाया जाता है. सिजोफ्रेनिया की बीमारी भी उच्च रक्त चाप, मधुमेह, हृदय रोग और थायराइड जैसी बीमारियों की तरह एक रोग है. इस बीमारी की सही समय पर पहचान कर सही और लगातार इलाज से रोगी स्वस्थ होकर न केवल परिवार बल्कि पूरे देश के लिए प्रोडक्टिव सिटिजन बन सकता है.
अंतराष्ट्रीय स्तर पर कई अवार्ड जीत चुके और देश के जाने माने मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. एमएल अग्रवाल ने बताया कि अज्ञानता और अंधविश्वास के कारण परिजन उसको पहचान नहीं पाते या समय रहते सही ईलाज नहीं कराते, जिसका खामियाजा बाद में भुगतना पड़ता है. तब तक यह बीमारी बढ़ जाती है.
सिजोफ्रेनिया पर एक्सपर्ट की राय
डॉ. एमएल अग्रवाल ने बताया कि एक बच्चे को जिसमें आत्महत्या के विचार हावी हो चुके थे और पढ़ाई में पिछड़ता जा रहा था, उसके परीक्षण के दौरान मां से पूछा गया कि क्या इसको काल्पनिक आवाजें आती है? तो मां ने बताया कि उसके बच्चे को तीन साल से काल्पनिक आवाजें सुनाई देती है, जिसका उन्होंने कभी ईलाज नहीं कराया.
पैरेंट्स नहीं जानते थे कि यह भी कोई बीमारी होती है. इस तरह के एक नहीं अनेक उदहारण हैं, जिनकी जानकारी देकर मरीजों और उनके परिजनों की आर्थिक और सामाजिक पीड़ा कम कर सकते है. डॉ अग्रवाल ने कहा कि सिजोफ्रेनिया एक ऐसा रोग है जो मनुष्य के विचार, अनुभूति और व्यवहार पर गंभीर असर करता है.
'100 में से एक व्यक्ति को होती है यह बीमारी'
डॉ. अग्रवाल ने बताया कि मरीज काल्पनिक विचारों की आन्तरिक जिंदगी में जीता है और बाहरी दुनिया से अलग थलग रहता है. मरीज के कामकाज के तरीके और एकाग्रता दोनों पर असर पड़ता है. सिजोफ्रेनिया मुश्किल से पाया जाने वाला रोग नहीं है और यह आम रोग है. यह समाज के प्रत्येक 100 में से 1 व्यक्ति को कभी न कभी जीवनकाल में हो सकता है.
मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. एमएल अग्रवाल के मुताबिक भारत में 1.4 करोड़ से ज्यादा लोग इस बीमारी से पीड़ित हैं. उन्होंने बताया कि सिजोफ्रेनि होने का मुख्य कारण मस्तिष्क की चेतना तन्तुओं के बीच के रासायनिक तत्वों में होने वाले परिवर्तन से होता है.
'रोगी को सुनाई नहीं देती है काल्पनिक आवाजें'
सिजोफ्रेनिया के असर को लेकर डॉ. एमएल अग्रवाल ने कहा कि व्यक्ति के विचार, व्यवहार, भावनाएं और कार्यक्षमता पर असर करता है. इसके मुख्य कारणों में दूसरों को न सुनाई देने वाली काल्पनिक आवाज सुनाई देना. काल्पनिक व्यक्तियों से बातें करना, अजीब से विचार और गलत मान्यताएं जो कितना भी समझाने के बाद भी नहीं बदलती हैं.
इसके अलावा दूसरों को न सुनाई देने वाली काल्पनिक आवाजें सुनाई देना, सामाजिक और भावनात्मक उदासीनता, कई दिनों तक घर से बाहर भटकना और घर से बाहर निकलने के लिए मना करना, नहाना धोना, दाढी बनाना, खाना पीना, कपड़े बदल गए जैसे अनियमितता सहित कई कारण हैं.
कोटा में 15 हजार लोग सिजोफ्रेनिया से ग्रसित
रोगियों की संख्या को लेकर डॉ. अग्रवाल का कहना है कि यह बीमारी किसी को भी हो सकती है. कोटा शहर में भी करीब 15000 के आसपास लोगों को यह बीमारी होगी. इसमें पीड़ित व्यक्ति को अलग-अलग तरह की आवाजें सुनाई देती हैं.
उसे लोगों पर शक होने लगता है. स्टूडेंट पढ़ाई में कमजोर होने लगता है और उसे आत्महत्या के विचार आते हैं, अकेलापन अच्छा लगता है. यह बीमारी 16 से 24 साल की उम्र में भी हो सकती है. लड़कों में यह बीमारी 18 से 30 साल में होने की सबसे ज्यादा संभावना रहती है.
'दिमाग के केमिकल हो जाते हैं गड़बड़'
डॉ. अग्रवाल ने बताया कि हाल ही में एक रिसर्च में पता चला है कि इस बीमारी का सबसे बड़ा कारण ब्रेन के रसायन का गड़बड़ा हो जाना है. जिसे आम भाषा में केमिकल लोचा भी कहा जाता है. इस दौरान न्यूरोट्रांसमीटर में कुछ गड़बड़ी हो जाती है, जिसे अच्छी दवा के जरिए दुरुस्त किया जा सकता है. कोटा कोचिंग नगरी है, ऐसे में बच्चों में स्ट्रेस रहता है और वह इस बीमारी का शिकार हो सकता है.