जानिये उस श्रृंगवेरपुर के बारे में, जिसकी वजह से हुआ था भगवान राम का जन्म, कहलाता है संतान तीर्थ
आज आपको श्रृंगवेरपुर के उस धाम की कहानी बताते हैं जिसकी वजह से भगवान राम का जन्म हुआ. इस तीर्थ की बहुत मान्यता है और कुछ लोग इसे संतान तीर्थ भी कहते हैं.
प्रयागराज, एबीपी गंगाः त्रेता युग के महानायक मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम का जन्म तीर्थराज प्रयाग में गंगा तट स्थित श्रंगवेरपुर धाम की वजह से ही हुआ था. रघुवंश के विस्तार के लिए संतान प्राप्ति की खातिर राजा दशरथ ने श्रंगवेरपुर में ही श्रृंगी ऋषि से पुत्रेष्टि यज्ञ कराया था. इस यज्ञ की हवि को ही दशरथ ने अपनी तीनों रानियों को खिलाया था. रामायण और पुराणों के मुताबिक श्रंगवेरपुर में हुए इस पुत्रेष्टि यज्ञ और इसके संकल्प की पूर्ति के लिए श्रृंगी ऋषि द्वारा किए गए त्याग की वजह से ही राजा दशरथ के यहां ब्रह्म रुपी भगवान श्री राम सहित चार पुत्रों का जन्म हुआ था. आज भी देश के कोने-कोने से हजारों लोग संतान प्राप्ति की कामना के लिए यहां पूजा-अर्चना कर रोट और खीर चढ़ाते हैं. राम के जन्म की वजह से श्रंगवेरपुर को संतान तीर्थ भी कहा जाता है.
श्रृंगवेरपुर धाम से ही भगवान राम ने मर्यादा पुरुषोत्तम बनकर सामाजिक समरसता का संदेश दिया था. यहीं वह अपने मित्र निषादराज से मिलने आते थे. यहीं से भगवान राम के वनवासी जीवन की शुरुआत हुई थी. मां सीता ने यहीं पर गंगा मइया की पूजा कर उनका आशीर्वाद लिया था. लंका दहन और रावण वध के बाद भगवान राम का पुष्पक विमान सबसे पहले यहीं उतरा था. केवट ने इसी जगह से राम -लक्ष्मण और सीता को अपनी नाव से गंगा नदी पार कराई थी. भगवान राम की बहन देवी शांता उर्फ़ आनंदी मैया का ब्याह यहीं श्रृंगी ऋषि के साथ हुआ था. श्रृंगी ऋषि और देवी शांता का यहां भव्य मंदिर भी है. कहा जा सकता है कि श्रृंगवेरपुर धाम से भगवान राम का गहरा नाता है. राम मंदिर के भूमि पूजन को लेकर श्रृंगवेरपुर के लोग खासे उत्साहित हैं. यहां पांच अगस्त को भव्य उत्सव और दीपावली मनाए जाने की तैयार ज़ोर शोर से चल रही है.
धर्म ग्रंथों के मुताबिक़ त्रेता युग में पिता से मिले अभिशाप की वजह से उम्र के चौथेपन में पहुचने के बाद भी अवध नरेश राजा दशरथ तीन-तीन विवाह के बावजूद संतान सुख से वंचित ही रहे. उन्हें रघुकुल के खात्मे की चिंता सताने लगी. तमाम उपाय व्यर्थ साबित हुए तो अवध नरेश ने वशिष्ठ मुनि की शरण ली. वशिष्ठ ने उन्हें बताया कि अभिशाप से बचने के लिए सिर्फ़ श्रंगवेरपुर ही इकलौती जगह है, जहां श्रृंगी ऋषि से पुत्रेष्टि यज्ञ कराकर रघुवंश को विस्तार दिया जा सकता है. यज्ञ की साधना बेहद कठिन थी. महीनों तक यज्ञ चलने के बाद इसके संकल्प को पूरा करने के लिए इसे संपन्न कराने वाले को अपना पूरा जीवन इसी जगह पर ही बिताना था. राजा दशरथ के अनुरोध पर दिव्य ज्ञानी और त्रिकालदर्शी श्रृंगी ऋषि पुत्रेष्टि यज्ञ के लिए तैयार हो गए क्योंकि अपने दिव्य ज्ञान से उन्होंने संतान के रूप में ब्रह्मरूपी भगवान् श्री राम के अवतरण को जान लिया था. श्रृंगी ऋषि ने मुनि वशिष्ठ की मौजूदगी में राजा दशरथ को साथ लेकर गंगा तट के इसी पेड़ के नीचे कई दिनों तक पुत्रेष्टि यज्ञ किया. इस यज्ञ से उत्पन्न हवि (यज्ञ की राख) को दशरथ ने अपनी तीनों रानियों को खिलाया तो जल्द ही उन्हें अभिशाप से मुक्ति मिली और उनके यहां धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष रुपी विष्णु के चार अवतारों राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न का जन्म हुआ.
रघुकुल में मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम के जन्म पर अयोध्या समेत समूचे अवध में कई दिनों तक उत्सव मनाया गया. उत्सव का यह दौर लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न के जन्म तक जारी रहा. श्रृंगी ऋषि के चमत्कार से प्रभावित होकर राजा दशरथ अपनी तीनों रानियों और चारों पुत्रों को आशीर्वाद दिलाने के लिए दोबारा श्रंगवेरपुर आए. उन्होंने यहीं पर अपनी पुत्री शांता का विवाह श्रृंगी ऋषि के साथ कराया. भगवान् राम की बहन शांता का विवाह जिस जगह श्रृंगी ऋषि के साथ हुआ. वहां अब भी एक हवन कुंड बना हुआ है. श्रृंगी ऋषि से विवाह के बाद शांता एक राजकुमारी से आनंदी माई हो गई थी. पुराणों के मुताबिक अपनी बहन शांता से मिलने और श्रृंगी ऋषि का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए भगवान राम कई बार श्रंगवेरपुर आए थे. जन्म का मूल कारण होने की वजह से ही वनवास काल की शुरुआत भी उन्होंने यही श्रृंगी ऋषि से आशीर्वाद प्राप्त करने के बाद ही की थी.
भगवान् राम के जन्म के बाद त्रेता युग से ही श्रंगवेरपुर को संतान तीर्थ कहा जाने लगा. यहां गंगा तट पर श्रृंगी ऋषि और आनंदी माई के नाम से मशहूर शांता जी का भव्य मन्दिर है. मन्दिर पर फहराती पताकाएं इस संतान तीर्थ के महत्त्व को दर्शाती हैं. आज भी यहां देश के कोने-कोने से हजारों श्रद्धालु संतान प्राप्ति की कामना लेकर आते हैं. इस मन्दिर की एक-एक सीढ़ियों को नमन करते हैं. श्रृंगी ऋषि और शांता देवी की बेहद प्राचीन मूर्तियों के सामने शीश नवाते हैं. मान्यता है कि गंगा में स्नान के बाद जो भी स्त्री सच्चे मन से इस मन्दिर में पूजा-अर्चना कर खीर और रोट (विशेष पूड़ी) चढ़ाकर मूर्तियों के पास रंगीन धागे बांधती हैं, संतान प्राप्ति की उसकी कामना ज़रूर पूरी होती है. संतान प्राप्ति के लिए यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शन-पूजन के लिए आते हैं.
भगवान् राम का जन्म भले ही अयोध्या में हुआ हो लेकिन राजा दशरथ के घर उनके अवतरण की प्रक्रिया संतान तीर्थ श्रंगवेरपुर से ही हुई. शायद इस वजह से गोस्वामी तुलसीदास ने रामायण में इस संतान तीर्थ के महत्त्व पर लिखा है कि अगर श्रंगवेरपुर न होता तो दशरथ के घर राम का जन्म न होता. अगर राम का जन्म न होता तो रामायण न होती और राम व रामायण के बिना इस सृष्टि की कल्पना ही नहीं की जा सकती.
भगवान राम और उनके पिता जिस अवध प्रांत के राजा थे, उसकी सीमा श्रृंगवेरपुर तक थी. श्रृंगवेरपुर के राजकुमार निषादराज से भगवान राम की गहरी मित्रता थी. निषादराज के किले के अवशेष अब भी यहां खंडहर के रूप में मौजूद हैं. भगवान राम को जब चौदह बरस के वनवास का आदेश हुआ तो राजा दशरथ के महामंत्री सुमंत राम लक्ष्मण और सीता को रथ से यहां तक छोड़ने आए थे. रथ से छोड़ने का पत्थर का विशालकाय चित्र आज भी श्रृंगवेरपुर में बना हुआ है. तीनों ने इसी जगह से राजसी वेशभूषा त्याग कर अपने वनवासी जीवन की शुरुआत की थी. वनवास काल सकुशल पूरा हो जाए, इसके लिए सीता जी ने यहीं पर मां गंगा की आराधना कर उनसे मनौती मांगी थी. वनवास काल पूरा होने के बाद तीनों पुष्पक विमान से सबसे पहले यहीं आए थे. यहीं सीता माता ने गंगा मइया को चुनरी चढ़ाकर उनका आभार जताया था.
भगवान राम को अपनी नाव से नदी पार कराने वाले केवट का भी मंदिर यहां पर है. श्रृंगवेरपुर मेला आयोजन समिति के अध्यक्ष एडवोकेट बाल कृष्ण पांडेय और महामंत्री पत्रकार उमेश चंद्र द्विवेदी के मुताबिक़ श्रृंगवेरपुर के कण कण में भगवान राम विराजमान हैं. तीर्थ पुरोहित समाज के मुखिया काली सहाय त्रिपाठी का कहना है कि सच्चे मन से की गई सभी मनोकामनाएं यहां ज़रूर पूरी होती हैं. रिटायर्ड सूचना जे एन यादव और पूर्व विधायक प्रभा शंकर पांडेय के मुताबिक़ सामाजिक समरसता का संदेश देने वाले इस तीर्थ स्थल में इतना आकर्षण है कि जो भी एक बार यहां आता है, वह बार बार आने की इच्छा रखने लगता है.
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