प्रयागराज, एबीपी गंगा। यूपी की योगी सरकार इन दिनों सूबे के सफेदपोश माफियाओं पर शिकंजा कसने के दावे कर रही है. कई माफियाओं के खिलाफ लगातार कार्रवाई भी हो रही है, लेकिन इसके बावजूद सरकार के एक्शन प्लान को लेकर सवाल उठ रहे हैं. कम से कम पूर्व बाहुबली सांसद अतीक अहमद के मामले में तो ऐसा ही है. अतीक के खिलाफ अभी तक कोई ऐसा एक्शन नहीं हुआ है, जिसमें सरकार के सख्त रवैये की धमक की गूंज आम जनता तक उस तरह पहुंची हो. जैसी कि मायावती राज में देखने को मिलती थी. हकीकत में देखा जाए तो कार्रवाई सिर्फ कागजों, बयानबाजी और सरकारी प्रेस नोट तक ही सीमित है.


पिछले करीब दो महीने की कार्रवाई में सरकारी अमले ने न तो अतीक गैंग के लोगों पर कोई सख्ती की है और न ही बाहुबली के आर्थिक स्रोतों पर कोई चोट पहुंचाई है. न परिवार और करीबियों पर कोई शिकंजा कसा है और न ही अतीक के मुकदमों में तेजी लाने की कोई कवायद की गई है. कई मामलों में महीनों बीतने के बावजूद पुलिस जांच पूरी नहीं हो सकी है तो मुकदमों का ट्रायल पूरा कराकर बाहुबली को सजा दिलाने में भी सरकारी अमले ने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई है. किसी अवैध संपत्ति पर न तो सरकारी बुलडोजर चला है और न ही हथौड़ा. सात सम्पत्तियों को जब्त करने की कार्यवाही भी इतने चुपके से की गई कि पड़ोस के लोगों को भी प्रेस नोट के आधार पर मीडिया में आई ख़बरों के ज़रिये हुई है. अतीक पर बयानबाजी करने से सरकारी अमला कतराता रहता है तो साथ ही पुलिस हिरासत में उसके भाई की खातिरदारी की तस्वीरों ने खाकी की हनक पर ही सवालिया निशान खड़े कर दिए थे.


गैंग पर कार्रवाई में देरी
बाहुबली के गैंग में तकरीबन सवा सौ मेंबर हैं, लेकिन प्रशासन ने सिर्फ आधा दर्जन असलहों का ही लाइसेंस निरस्त या निलंबित किया है. इनमें से भी ज़्यादातर की प्रक्रिया महीनों पहले से चल रही थी. अतीक को यूपी से गुजरात की अहमदाबाद जेल शिफ्ट हुए सवा साल का वक़्त बीत गया है, लेकिन उसके खिलाफ दर्ज मुकदमों में पुलिस अभी तक उसका बयान लेने का वक्त नहीं निकाल सकी है. यह अलग बात है कि गुजरात की जेल से प्रॉपर्टी डीलर को धमकी भरा फोन करने का उसका आडियो ज़रूर सामने आ चुका है. कहा जा सकता है कि पूर्व बाहुबली सांसद अतीक अहमद के खिलाफ सरकारी अमले की ज़्यादातर कार्रवाई सिर्फ कागजी है. एक्शन सिर्फ उतना ही हो रहा है, जिसमें कार्रवाई होने की रस्म अदायगी तो हो रही है, लेकिन हकीकत में इसे ऐसी कछुआ चाल से अंजाम दिया जा रहा है, जिससे बाहुबली और उसके गैंग के सदस्यों को टेंशन में न रहना पड़े.


बाहुबली अतीक के खिलाफ हो रही दिखावे वाली कार्रवाई को लेकर सवाल उठ रहे हैं. कोई इसे बीजेपी सरकार की मेहरबानी बता रहा है तो कोई 2018 के फूलपुर लोकसभा सीट के उपचुनाव और 2019 के आम चुनाव में वाराणसी सीट से पीएम मोदी के खिलाफ अतीक द्वारा नामांकन कर बीजेपी को फायदा पहुंचाने की सियासी गणित का एहसान. अतीक के मामले में सरकारी अमला खुद ही सुस्ती व लापरवाही बरत रहा है या फिर यह नरमी सत्ता के इशारे पर बरती जा रही है. इसे वक्त का तकाजा समझा जाए या फिर भविष्य की राजनीति का कोई संकेत. वजह कुछ भी हो, लेकिन कार्रवाई का यह कागजी दिखावा तमाम लोगों को हजम नहीं हो रहा है और इसे लेकर कानाफूसी अपने शबाब पर है.


अतीक पर मेहरबानी क्यों ?
दरअसल पिछले कुछ महीनों में यूपी सरकार ने सूबे के सफेदपोश माफियाओं की ऐसी सूची तैयार उनके खिलाफ कार्रवाई किये जाने और उन पर शिकंजा कसे जाने का दावा किया था. कानपुर के बिकरू कांड के बाद सरकार के इस मिशन में तेजी लाते हुए इसे अंजाम तक पहुंचाने के दावे किये गए. पांच बार के विधायक और एक बार फूलपुर सीट से सांसद रह चुके अतीक अहमद के खिलाफ योगी राज में कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई. कार्रवाई तो छोड़िये, सरकारी अमला तो बाहुबली अतीक पर इस कदर मेहरबान था कि देवरिया जेल कांड होने और उस मामले में हाईकोर्ट के सख्त रवैये के बावजूद पिछले साल उसे बरेली से उसके अपने गृहनगर प्रयागराज की नैनी सेंट्रल जेल में शिफ्ट कर दिया गया था. हालांकि बाद में इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने दखल देते हुए अतीक को यूपी से बाहर की किसी जेल में शिफ्ट करने के आदेश दिए थे.


बाहुबली अतीक का गैंग प्रयागराज के खुल्दाबाद थाने में आईएस -227 नंबर से दर्ज हैं. उसके गैंग में 121 मेंबर हैं. हैरत की बात यह है कि साढ़े तीन साल के योगी राज में उसके गैंग को रिव्यू तक नहीं किया गया है. पिछले कुछ महीनों में पांच सात मेम्बर्स के खिलाफ छोटे मोटे मामलों में केस ज़रूर दर्ज हुआ, लेकिन सरकारी अमले ने अपनी तरफ से किसी मेंबर के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की है. किसी भी गैंग मेंबर या मददगार की न तो कोई संपत्ति जब्त हुई है और न ही उसकी कमाई पर कोई चोट की गई है. कागजी खानापूर्ति ज़रूर की जा रही है.


मायावती का दौर आया याद 
मायावती राज में गैंग मेंबर और मददगार छोड़िये, अतीक का नाम लेने वाले भी सरकारी अमले के नाम पर थर- थर कांपते थे. तीन जुलाई की सुबह बाहुबली के छोटे भाई अशरफ की कथित गिरफ्तारी के बाद उसे थाने पर कुर्सी पर बिठाने और मूंछों पर ताव देते हुए मुस्कुराने की उसकी जो तस्वीरें सामने आईं थीं, उसने प्रयागराज पुलिस की खूब फजीहत कराई थी. चर्चा तो इस बात की भी है कि अतीक ने सेटिंग से अपने भाई को सरेंडर कराकर गिरफ्तारी का ड्रामा किया है. अतीक की सात प्रॉपर्टीज को पुलिस ने सीज किया है. हालांकि ये सम्पत्तियां मायावती राज में भी दो बार जब्त की जा चुकी थीं, लेकिन दोनों बार कोर्ट के दखल के बाद रिलीज हो गईं थीं. इसी तरह की छह अन्य सम्पत्तियों को भी कार्रवाई का इंतजार है. जब माया राज के सख्त रवैये के बावजूद ये प्रापर्टियां दो बार कोर्ट से रिलीज हो चुकी हैं तो इस बार लचर रवैये में कोर्ट में यह मामला कितनी देर टिकेगा, इसका अंदाजा लगाना कतई मुश्किल नहीं है.


सरकारी अमले की सक्रियता का अंदाज़ा इससे भी लगाया जा सकता कि ईडी को अतीक की जिन कंपनीज के आर्थिक लेन देन की जांच की सिफारिश की गई, उन सभी का ब्यौरा चुनावी हलफनामे से निकाला गया था. हलफनामे में दी गई जानकारी के अलावा एक भी कंपनी का नाम सिफारिश में नहीं जोड़ा गया है. ऐसे में कार्रवाइयों पर सवाल उठना लाजिमी है. कहा जा सकता है कि अतीक के खिलाफ कागजी कार्रवाई कर सरकार के सख्त होने का दिखावा तो किया जा रहा है, लेकिन हकीकत में सरकारी अमले का रुख इस बाहुबली को लेकर नरम है. हालांकि अफसरान इन दावों को सही नहीं मानते.


प्रयागराज के एसएसपी अभिषेक दीक्षित का कहना है कि सरकारी कामों की एक प्रक्रिया होती है. तमाम औपचारिताएं की जानी होती हैं. गिरोह के खिलाफ लगातार कार्रवाई हो रही है. अभी होम वर्क किया जा रहा है, जिसके पूरे होने के बाद एक्शन में और तेजी आएगी. कांग्रेस नेता बाबा अभय अवस्थी का कहना है कि अतीक के खिलाफ एक्शन सर्कस के जोकर को पड़ने वाले चांटे की तरह है, जिसमें आवाज़ तो होती है, लेकिन कलाकार को कोई तकलीफ नहीं होती. सपा नेता योगेश यादव के मुताबिक़ अगर हकीकत में कार्रवाई होती तो उसका असर दिखता और असर कहीं देखने को नहीं मिल रहा है. हालांकि बीजेपी नेता आशीष गुप्ता इन आरोपों से इंकार करते हैं. उनका कहना है कि योगी सरकार ने कहा था, वह करके दिखा रही है.


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