इमरान मसूद का खेल बिगड़ा, नंदी को हैट्रिक की उम्मीद; पढ़िए यूपी निकाय चुनाव में दिग्गजों का सियासी गणित
निकाय चुनाव में मजबूत उपस्थिति दर्ज कराने के लिए सभी पार्टियों ने दिग्गजों को मोर्चाबंदी के लिए कहा है. बीजेपी ने दोनों डिप्टी सीएम समेत कई मंत्रियों को चुनावी रणनीति बनाने के लिए मैदान में उतारा है.
उत्तर प्रदेश नगर निकाय चुनाव की नई आरक्षित सूची ने कई दिग्गजों का खेल खराब कर दिया है. वहीं कई बड़े नेता सूची में हुए बदलाव से खुश भी नजर आ रहे हैं. हालांकि, सभी पार्टी के दिग्गज लखनऊ की ओर नजर गड़ाए हैं, जहां से टिकट का ऐलान होगा.
सुप्रीम कोर्ट से हरी झंडी मिलने के बाद नगर निगम की 17 सीटों के लिए पिछले हफ्ते यूपी सरकार ने आरक्षित सूची जारी कर दी है. इन सीटों पर जल्द ही राज्य निर्वाचन आयोग चुनाव की अधिसूचना जारी कर सकती है. यूपी में पिछली बार दिसंबर 2017 में निकाय चुनाव कराए गए थे.
निकाय चुनाव में मजबूत उपस्थिति दर्ज कराने के लिए सभी पार्टियों ने दिग्गजों को मोर्चाबंदी पर उतार दिया है. बीजेपी ने दोनों डिप्टी सीएम समेत कई मंत्रियों को चुनावी रणनीति बनाने के लिए मैदान में उतारा है. ऐसे में इस बार यूपी का निकाय चुनाव भी रोचक हो गया है.
यूपी में निकाय चुनाव में कई दिग्गज अपने परिवार के सहारे सियासी दबदबा बनाए रखने की कोशिश में लगे हैं. नई आरक्षित सूची ने कुछ के अरमानों पर पानी फेर दिया है तो कई के मन में लड्डू फूट पड़ा है. यूपी दिग्गजों के इसी सियासी गुना-गणित को विस्तार से जानते हैं...
1. गोपाल नंदी को हैट्रिक की उम्मीद जगी- यूपी सरकार में उद्योग मंत्री हैं गोपाल गुप्ता नंदी. उनकी पत्नी अभिलाषा गुप्ता प्रयागराज से दो बार मेयर रह चुकी हैं. दिसंबर में जब आरक्षित सूची आई थी तो प्रयागराज की सीट को ओबीसी यानी अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित कर दिया गया.
प्रयागराज सीट के ओबीसी होने पर अभिलाषा रेस से बाहर हो गई. दरअसल, शादी के पहले अभिलाषा ब्राह्मण थीं, इसलिए वह अभी भी सामान्य कैटेगरी में आती हैं, लेकिन कोर्ट जाने के बाद सब कुछ बदल गया. प्रयागराज सीट एक बार फिर अनारक्षित श्रेणी में आ गया है.
इसके बाद से ही गोपाल नंदी को हैट्रिक की उम्मीद है. उनके समर्थकों ने चुनाव की तैयारी भी शुरू कर दी है और अभिलाषा ने भी क्षेत्र में फिर से सक्रियता बढ़ा दी है. हालांकि, इस बार अभिलाषा की राह आसान नहीं है.
गैंगवार में मारे गए बीजेपी नेता उमेश पाल की पत्नी की दावेदारी की चर्चा भी क्षेत्र में जोर-शोर से हो रही है. कई जगहों पर उमेश पाल की पत्नी जया पाल के पोस्टर लगाए गए हैं.
2. इमरान मसूद की किस्मत में फिर इंतजार- कांग्रेस छोड़ सपा और फिर बीएसपी में शामिल होने वाले दिग्गज नेता इमरान मसूद को फिर इंतजार ही हाथ लगा है. दरअसल, बीएसपी में जब मसूद शामिल हुए तो निकाय के आरक्षण सूची में सहारनपुर सीट महिलाओं के लिए आरक्षित था.
नई सूची में बड़ा बदलाव हुआ है और सहारनपुर को ओबीसी के लिए आरक्षित कर दिया गया है, जिससे मसूद को बड़ा झटका लगा. दरअसल, सहारनपुर जब महिलाओं के लिए आरक्षित था तो बीएसपी ने इमरान की पत्नी को टिकट देने का ऐलान किया था, लेकिन अब ओबीसी सीट होने से इमरान का परिवार रेस से बाहर हो गया है.
साल 2022 में विधानसभा चुनाव से पहले इमरान मसूद कांग्रेस छोड़ सपा में शामिल हो गए थे, लेकिन उन्हें अखिलेश यादव ने टिकट नहीं दिया. चुनाव बाद मसूद समर्थकों के साथ मायावती की पार्टी के साथ चले गए.
3. प्रमिला पांडे फिर से मजबूत दावेदार- विधानसभा स्पीकर सतीश महाना खेमे से आने वाली निवर्तमान मेयर प्रमिला पांडेय बीजेपी से टिकट के लिए फिर से मजबूत दावेदार बन गई हैं. दिसंबर में आई सूची को कानपुर को अनारक्षित सूची में रखा गया था, लेकिन नई सूची में कानपुर महिलाओं के लिए रिजर्व किया गया है.
अनारक्षित सीट पर किसी पुरुष दावेदार को टिकट दिए जाने की बात कही जा रही थी, लेकिन अब फिर से महिला होने पर प्रमिला पाण्डेय कैंप ने सक्रियता बढ़ा दी है.
तेजतर्रार महिला नेता प्रमिला पाण्डेय अपने स्टंट की वजह से कई बार सुर्खियों में रह चुकी है. 2022 में जब बीजेपी ने सत्ता में वापसी की तो प्रमिला बुलडोजर पर चढ़कर जश्न मनाने पहुंच गई.
4. सपा के मनोज पांडेय का रायबरेली में गणित बिगड़ा- ऊंचाहार से विधायक और विधानसभा में सपा के मुख्य सचेतक मनोज पांडेय का भी गणित रायबरेली में गड़बड़ हो गया है. पांडेय अपने भाई के लिए टिकट की दावेदारी कर रहे थे, लेकिन रायबरेली नगर पालिका सीट अनुसूचित जातियों के लिए रिजर्व हो गई है.
दिसंबर में आई सूची में यह सीट अनारक्षित था, जिसके बाद पांडेय लगातार क्षेत्र में सक्रिय थे. अब नई सूची ने उनका खेल खराब कर दिया है. हालांकि, पिछले दिनों सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव के रायबरेली पहुंचने पर मनोज पांडेय ने एक कार्यक्रम का आयोजन किया था.
5. अलीगढ़ में नई आरक्षण से बीजेपी की टेंशन बढ़ी- पिछली बार अलीगढ़ सीट हार चुकी बीजेपी के लिए इस बार भी यहां मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है. दिसंबर में जारी सूची में अलीगढ़ को ओबीसी की महिलाओं के लिए रिजर्व किया गया था, लेकिन अब यह अनारक्षित हो गया है.
अनारक्षित होने के बाद से ही बीजेपी में दावेदारों की संख्या बढ़ गई है. लोधी समाज ने मेयर टिकट पर दावा किया है. इसके अलावा वार्ष्णेय और अग्रवाल समुदाय के लोगों ने भी दावेदारी ठोंक दी है. पिछली बार बीजेपी गुटबाजी की वजह से यह सीट हार गई और बीएसपी को यहां जीत मिली थी.
निकाय का चुनाव लोकसभा का सेमीफाइनल क्यों, 2 प्वॉइंट्स...
यूपी नगर निकाय चुनाव को लोकसभा का सेमीफाइनल भी माना जा रहा है, क्योंकि लोकसभा से पहले प्रदेश स्तर पर यह बड़ा चुनाव हो रहा है. नगर निगम, नगर पालिका और नगर पंचायत के कुल 14,684 पदों के लिए चुनाव होंगे.
1. शहरी इलाकों में मतदाता का मूड पता चलेगा- नगर निकाय चुनाव से शहरी सीटों पर क्या समीकरण रहेगा, इसकी जानकारी मिल सकेगी. पिछले चुनाव में बीजेपी ने एकतरफा जीत दर्ज करते हुए 16 में से 14 महापौर बनाए थे. 2 पर बीएसपी को जीत मिली थी और सपा को बड़ा झटका लगा था.
शहरी सीटों पर अब तक बीजेपा का दबदबा माना जाता रहा है. सपा इस बार एक-एक सीट के लिए अलग समीकरण तैयार कर रही है. पार्टी पश्चिमी यूपी की सीटों पर विशेष फोकस कर रही है, उसमें मथुरा, अलीगढ़, मेरठ और सहारनपुर सीट है.
सपा इस बार रालोद के साथ-साथ पश्चिमी यूपी में भीम आर्मी के चंद्रशेखर को भी जोड़ने की तैयारी कर रही है. पश्चिमी यूपी में अगर तीनों का गठबंधन हिट रहा तो लोकसभा चुनाव में कई सीटों का गणित बिगाड़ सकता है.
पूर्वांचल में भी सपा और बीजेपी हरेक सीटों पर नया समीकरण फिट करने की कोशिशों में जुटी है. चुनाव के बाद यूपी में शहरी इलाकों के समीकरण के बारे में पता चल सकेगा. हालांकि, नगर निकाय चुनाव में गंदगी और सीवेज बड़ा मुद्दा है.
2. यूपी में नया जातीय समीकरण बन सकता है- बीजेपी नगर निकाय चुनाव में पसमांदा को भारी संख्या में टिकट देने की तैयारी में है. सपा पिछड़े और दलित के सहारे नैया पार लगाने में लगी है. बीएसपी भी नए जातीय समीकरण के साथ मैदान में उतर रही है.
निकाय चुनाव में जिस दल का समीकरण सफल हो जाता है, वो पार्टी आगामी लोकसभा चुनाव में उसी समीकरण के साथ मैदान में उतर सकती है. बीजेपी रामपुर चुनाव के बाद से ही पसमांदा वोटरों पर फोकस कर रही है.
बीएसपी और कांग्रेस के लिए महत्वपूर्ण है चुनाव
सपा और बीएसपी से ज्यादा नगर निकाय का चुनाव बीएसपी और कांग्रेस के लिए महत्वपूर्ण है. 2019 के बाद से बीएसपी से नेताओं का पलायन जारी है. अब तक राम अचल राजभर, लालजी वर्मा, इंद्रजीत सरोज, विनय शंकर तिवारी और राकेश मिश्रा जैसे नेता पार्टी छोड़ चुके हैं.
2022 में बीएसपी के वोटबैंक भी बड़ा सेंध लगा और पार्टी सिर्फ 1 सीट पर सिमट गई थी. 2022 के चुनाव में बीएसपी के 290 उम्मीदवारों का जमानत जब्त हो गया था. वर्तमान में अलीगढ़ और मेरठ सीट बीएसपी के पास है.
बीएसपी क तरह कांग्रेस का भी हाल बुरा है. पार्टी 2019 में अपने गढ़ अमेठी से चुनाव हार गई थी. 2022 के चुनाव में भी पार्टी का प्रदर्शन बेहद ही खराब रहा. 2022 में कांग्रेस सिर्फ 2 सीटों पर जीत दर्ज की थी. कांग्रेस भी नगर निकाय का चुनाव अकेले लड़ने की तैयारी में है.
कांग्रेस और बीएसपी का निकाय चुनाव में अगर प्रदर्शन खराब रहता है तो 2024 में बीजेपी और सपा के बीच यूपी में सीधी लड़ाई होगी.
98 लाख नए मतदाता करेंगे वोट, मई में चुनाव संभावित
यूपी में मई में नगर निकाय के चुनाव कराए जा सकते हैं. अप्रैल के दूसरे हफ्ते में चुनाव आयोग इसकी अधिसूचना जारी कर सकती है. हाल ही में यूपी निर्वाचन आयोग के प्रमुख ने कहा था कि सरकार से आरक्षित सूची आने के बाद चुनाव की घोषणा की जाएगी.
राज्य निर्वाचन आयोग के मुताबिक साल 2023 में 96 लाख 36 हजार 280 नए मतदाता बने हैं. इसी के साथ नगरीय निकाय चुनाव 2023 के लिए राज्य में मतदाताओं की कुल संख्या 4,32,31,827 हो गई है. 2017 में हुए चुनाव में कुल मतदाताओं की संख्या 3,35,95,547 थी.