Independence Day 2021: : देश स्वतंत्रता दिवस की 75वीं वर्षगांठ मना रहे हैं. तमाम क्रांतिकारी ने अपना बलिदान देकर अंग्रेजों से हमे मुक्त कराया. आज हम एक ऐसे ही नायक से आपको रूबरू कराते हैं, जिन्होंने भारत देश को स्वतंत्रत कराने में अपना योगदान दिया. इस स्वतंत्रता संग्राम सेनानी ने 103 साल की उम्र में भी युवाओं जैसा जोश व जज्बा है.
18 साल की उम्र में गढ़वाल राइफल्स में हुए थे भर्ती
10 अक्तूबर, 1919 को पौड़ी के मल्ला ढांगू (वर्तमान में द्वारीखाल ब्लाक) के खैंडूड़ी गांव में जन्मे मुरली सिंह रावत बताते हैं कि, 18 वर्ष की आयु में 1937 में वह आर्मी ट्रेनिंग स्कूल लैंसडौन में गढ़वाल राइफल्स में भर्ती हो गए. तीन साल बटालियन में रहने के बाद लॉस नायक के पद पर प्रोन्नत हुए.
कोटद्वार भाबर के मवाकोट गांव में स्थित उनके आवास पर उनसे मुलाकात हुई तो उनका जज्बा और जोश देखने लायक था. शतकवीर स्वतंत्रता सेनानी से जैसे ही उनके संघर्ष पर बात हुई, वह जोश से भर गए. उनका कहना था कि, देश को आजादी कोई आसानी से हासिल नहीं हुई. हजारों बलिदान और कड़े संघर्ष से आजादी मिली है.
आजाद हिंद फौज की कहानी
इसके बाद उन्हें सिंगापुर जाने का आदेश मिला. वहां दिसंबर, 1941 में रहे. यहां जापान ने अंग्रेजी फौज पर अचानक हमला कर दिया था, जिसके कारण अंग्रेजी फौज को आत्मसमर्पण करना पड़ा. इसके बाद कैप्टन मोहन सिंह के नेतृत्व में आजाद हिंद फौज (आईएनए) का गठन हुआ.
मोहन सिंह और रासबिहारी बोस में मतभेद पनपने लगे तो इसी बीच नेताजी सुभाष चंद्र बोस आईएनए को संभालने के लिए जर्मनी से सिंगापुर पहुंचे. इसके बाद नेताजी के नेतृत्व में संघर्ष शुरू हुआ. उन्हें कई दिन रंगून जेल में भी रहना पड़ा.
सुभाष चंद्र बोस की याद
अंग्रेजों की उनपर कड़ी निगरानी रही, लेकिन जेल से छूटने के बाद वह पानी के जहाज से कलकत्ता पहुंच गए. यहां भी अंग्रेजों की नजर से नहीं बचे तो फिर से जेल जाना पड़ा. इस पूरी समयावधि में घर वालों को उनके जीने मरने की कोई खबर नहीं रही. सात साल बाद जब घर लौटे तो घरवालों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. वर्तमान में वह अपने दो बेटों के भरे पूरे परिवार के साथ जीवन जी रहे हैं.
मुरली सिंह रावत ने कहा-देश से बड़ा कुछ नहीं है
स्वतंत्रता सेनानी मुरली सिंह रावत कहते हैं कि, केंद्र और राज्य सरकार से अच्छी पेंशन मिल रही है. कोई गिला शिकवा नहीं है. वह युवाओं को संदेश देते हुए कहते हैं कि, जब भी देश को जरूरत पड़े, देश के काम आएं. देश से बड़ा कुछ नहीं है.
डाक्टरों की सलाह पर उन्हें होम आइसोलेट रखा गया. 103 साल की उम्र में उन्होंने कोरोना को भी मात दे दी. आईएनए के संघर्ष से जुड़े दस्तावेज भी उन्होंने संभालकर रखे हुए हैं, जो भी उनसे मिलने घर पहुंचता है वह बड़े स्नेह से सभी से मिलते हैं.