अयोध्या. अक्षय नवमी के शुभ मुहूर्त पर अयोध्या में 14 कोसी परिक्रमा शुरू हो गई है. 22 नवंबर की रात 2:16 बजे से शुरू हुई 14 कोसी परिक्रमा 24 नवंबर तक चलेगी. इसके बाद 25 नवंबर को एकादशी के दिन अयोध्या की 5 कोसी परिक्रमा शुरू होगी. अयोध्या की परिक्रमा करने के लिए देश के कोने-कोने से लोग आते हैं और राम की नगरी की परिधि में परिक्रमा करते हैं, लेकिन इस बार कोविड-19 को देखते हुए जिला प्रशासन ने अयोध्या की सीमाएं सील करते हुए बाहर से आने वाले श्रद्धालुओं के प्रवेश पर रोक लगा दी.


बाहरी लोगों से परिक्रमा मेले में आने के बजाय अपने घरों में ही धार्मिक अनुष्ठान और पूजन करने की अपील की गई है. यही कारण की इस बार अयोध्या की 14 कोसी परिक्रमा में श्रद्धालुओं की संख्या बहुत कम है. जो लोग परिक्रमा करते दिखाई दे रहे हैं वह या तो अयोध्या के स्थानीय निवासी हैं या फिर वह कल्पवासी जो 1 महीने पहले ही कल्पवास करने अयोध्या आए हुए है.


सदियों पुरानी है परंपरा
बता दें कि राम नगरी की परिक्रमा की परंपरा सदियों पुरानी है. अयोध्या में 84 कोस, 14 कोस और 5 कोस की परिधि में परिक्रमा की जाती है. मान्यता है कि मृत्यु के उपरांत जीवात्मा को 84 लाख योनियों में भटकना न पड़े इसीलिए अयोध्या की 84 कोस परिधि में परिक्रमा की जाती है. इसी प्रकार जीवात्मा जो 14 लोक है उसमें भ्रमण ना करें इसीलिए 14 कोस की परिक्रमा की जाती है.


ऐसी मान्यता है कि इस तरह की परिक्रमा करने से श्रद्धालुओं को परमधाम की प्राप्ति होती है और दोबारा संसार में भ्रमण करने से मुक्ति मिल जाती है. इसीलिए अयोध्या में चैत्र पूर्णिमा को 84 कोसी परिक्रमा यानि अयोध्या की 84 कोस परिधि में परिक्रमा और अक्षय नवमी को 14 कोसी परिक्रमा यानि अयोध्या की सांस्कृतिक सीमा की परिक्रमा और अंत में देवोत्थानी एकादशी को पंचकोसी परिक्रमा यानि राम जन्मभूमि मंदिर की 5 कोस परिधि में परिक्रमा की जाती है.


तीन प्रकार की होती है परिक्रमा
राम जन्मभूमि के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास ने कहा कि अयोध्या में तीन प्रकार की परिक्रमा होती है. 5 कोसी, 14 कोसी और 84 कोसी. यह वैज्ञानिक भी है व्यवहारिक भी है और अध्यात्मिक भी है. पंच कोस की परिक्रमा चलने से हमारे जो पंच भौतिक शरीर है मैं जो भी अच्छे बुरे कर्म किए हैं उसका विनाश हो जाता है और हमको मोक्ष की प्राप्ति होती है. 14 कोसी परिक्रमा 14 लोक हैं और जो 14 लोक में भ्रमण करता है यदि 14 कोस की परिक्रमा किसी भी तीर्थ स्थान में चाहे वह अयोध्या हो मथुरा हो काशी हो वृंदावन हो कहीं भी कर लेता है तो उसको 14 लोकों का भ्रमण नहीं करना पड़ता. 84 कोस परिक्रमा का मतलब 84,00,000 योनियों है. मनुष्य को 84 कोस परिक्रमा कर लेने से उनको इन 84,00,000 योनियों में भ्रमण नहीं करना पड़ता.


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