18वीं लोकसभा में आज यूपी दोहराएगा साढ़े 5 दशक पुराना इतिहास, जानें- क्या है खास
साल 1952 से लेकर आज तक के सियासी सफर में उत्तर प्रदेश सदैव एक अलग भूमिका में रहा है. यह कहना गलत नहीं है कि दिल्ली का रास्ता, यूपी से गुजरता है.
UP Politics: देश के मौजूदा परिदृश्य की कल्पना उत्तर प्रदेश के बिना नहीं की जा सकती है. चुनाव चाहे राज्य की विधानसभा का हो या देश की लोकसभा का. यहां के परिणाम का असर पूरे देश पर देखा जाता है. हाल में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव में भी कुछ ऐसा ही देखा गया. भारतीय जनता पार्टी को जिस राज्य पर सबसे ज्यादा उम्मीद और भरोसा था उस उत्तर प्रदेश में उसकी आकांक्षा पूरी नहीं हो पाई. वहीं समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने बाजी मार ली.
अब इसकी हनक लोकसभा सत्र में दिखेगी. 18वीं लोकसभा के पहले सत्र के तीसरे दिन ही यूपी अपना साढ़े पांच दशक पुराना इतिहास फिर दोहराने वाला है. देश के सियासी इतिहास में ऐसा तीसरी बार होगा जब देश के प्रधानमंत्री और नेता विपक्ष, का संसदीय क्षेत्र एक ही राज्य में होगा.
एक ओर जहां भारतीय जनता पार्टी नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी होंगे तो वहीं दूसरी ओर लीडर ऑफ अपोजिशन यानी नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी. पीएम नरेंद्र मोदी जहां वाराणसी से चुनाव जीत कर संसद पहुंचे वहीं राहुल गांधी ने दो सीटों- रायबरेली और वायनाड से चुनाव जीता. बाद में राहुल ने वायनाड से इस्तीफा दे दिया. अब राहुल रायबरेली से सांसद हैं.
इससे पहले जब दो बार ऐसा हुआ कि नेता विपक्ष और प्रधानमंत्री का संसदीय क्षेत्र एक ही हो, तब राहुल के पिता राजीव गांधी और उनकी मां सोनिया गांधी ने यह जिम्मेदारी संभाली.
तब राजीव और सोनिया थे LOP
साल 1989 में जब यूपी के फतेहपुर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से चुनकर संसद पहुंचे देश के पीएम विश्वनाथ प्रताप सिंह थे तब अमेठी सांसद राजीव गांधी नेता विपक्ष थे. इसके ठीक 10 साल बाद जब लखनऊ से चुनाव जीतकर संसद पहुंचे अटल बिहारी वाजपेयी पीएम बने तब अमेठी से चुनाव जीतने वाली सोनिया गांधी ने एलओपी का जिम्मा संभाला.
बता दें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने मंगलवार रात ऐलान किया कि राहुल गांधी नेता प्रतिपक्ष का जिम्मा संभालेंगे. अब राहुल का दर्जा एक कैबिनेट मंत्री के बराबर होगा और वह कई फैसलों में उनकी राय अहम होगी.