UP News: ₹2000 के नोट को सर्कुलेशन से बंद करने का आदेश रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) की तरफ से जारी हो चुका है. इससे पहले 2016 के नवंबर महीने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी की घोषणा की थी. 500 और 1000 रुपये के नोट को अवैध करार देते हुए चलन से बाहर कर दिया गया था. नोटबंदी के बाद बैंकों और एटीएम में भीड़ बढ़ गई. कई सारे लोगों ने करेंसी को ही जला दिया. आगरा में ब्रिटिशकालीन वैधानिक नोटों को जलाने के लिए चिमनी और भट्टी का अस्तित्व आज भी है.


 ब्रिटिशकालीन 15 फीट ऊंची चिमनी-भट्ठी सुरक्षित


एबीपी गंगा की टीम ने वैधानिक नोटों को जलाने के काम आनेवाली ऐतिहासिक चिमनी का मुआयना किया. आगरा के छीपीटोला इलाके में एसबीआई ब्रांच की जगह पर आजादी से पहले इंडियन इंपीरियल बैंक का दफ्तर हुआ करता था. उसके अहाते में चिमनी कटे फटे और पुराने नोटों को जलाने के काम आती रही है. करीब 15 फीट ऊंची चिमनी और भट्ठी आज भी पूरी तरह से सुरक्षित है. उसको देखते ही हर कोई इतिहास में खो जाता है. अंग्रेजों ने बाकायदा चलन से बाहर किए नोटों को ठिकाने लगाने के लिए चिमनी बनाई थी. चिमनी का काम कटे-फटे और पुराने नोटों को खाक में मिलाना था. चिमनी में उत्तर प्रदेश सरकार के पर्यटन विभाग का बोर्ड लगा हुआ है.


आजादी से पहले आगरा बैंकिंग क्षेत्र का रहा है गढ़


बोर्ड के मुताबिक साल 1934 तक यहां इंडियन इंपीरियल बैंक हुआ करता था. आजादी से पहले आगरा बैंकिंग क्षेत्र का गढ़ रहा है. चिमनी पर लगे सरकारी बोर्ड में साफ-साफ लिखा हुआ है कि साल 1934 तक अंग्रेज इसी चिमनी के जरिए करेंसी को पूरी तरह खाक किया करते थे. बाद में करेंसी को जलाने का काम जयपुर शिफ्ट कर दिया गया था क्योंकि मारवाड़ियों ने निजी बैंक स्थापित कर लिया था. प्रसिद्ध इतिहासकार राजकिशोर राजे की किताब 'तवारीख-ए-आगरा' में चिमनी का जिक्र मिलता है. एबीपी गंगा से बातचीत में उन्होंने कहा कि नोट जलाने की चिमनी अंग्रेज जमाने की बनी हुई है. कम लोगों को ही जानकारी है. साल 1883 में अंग्रेजों की गुम्मा ईटों से निर्मित चिमनी को सरकार ने संरक्षित कर लिया है. 


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