आसान नहीं बीजेपी की राह, सपा-बसपा गठजोड़ के बाद बदले हालात
2019 के लोकसभा चुनाव में कुछ सीटें बेहद खास होने वाली हैं, तो चलिए ऐसी ही कुछ सीटों पर नजर डालते हैं जो इस बार अहम साबित हो सकती हैं।
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लखनऊ, एबीपी गंगा। सियासत में न कोई स्थाई दोस्त होता है और न ही कोई स्थाई दुश्मन। लोकसभा चुनाव को लेकर यूपी की सियासत में सबसे बड़ा बदलाव देखने को मिला है। 2019 के चुनावी समर में उत्तर प्रदेश के दो मुख्य विपक्षी नेता अखिलेश यादव और मायावती साथ आ गए हैं। सपा-बसपा के गठबंधन से उत्तर प्रदेश की राजनीति में नया मोड़ आया है। 2019 के लोकसभा चुनाव में कुछ सीटें बेहद खास होने वाली हैं, तो चलिए ऐसी ही कुछ सीटों पर नजर डालते हैं जो इस बार अहम साबित हो सकती हैं।
वाराणसी
वाराणसी सीट भाजपा के लिहाज से बेहद खास है। पिछले कुछ लोकसभा चुनाव से यह सीट भाजपा की झोली में आती रही है। 1991 में पहली बार भाजपा के शिरीष चंद्र दीक्षित 41 फीसद वोटों के साथ यहां से जीते थे। उसके बाद अगले तीन लोकसभा चुनाव में भाजपा के शंकर प्रसाद जायसवाल बड़े अंतर से जीतते रहे हैं, लेकिन 2004 में कांग्रेस के राजेश कुमार मिश्रा ने शंकर प्रसाद जायसवाल को हरा दिया था। 2009 में भाजपा के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी यहां से सांसद बने। साल 2014 में भाजपा के पीएम प्रत्याशी नरेंद्र मोदी ने यहां से चुनाव लड़े और पांच लाख से भी आधिक वोट हासिल किए। सपा-बसपा गठबंधन ने इस बार वाराणसी सीट पर भाजपा को घेरने की तैयारी कर रखी है।
लखनऊ
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ 2019 में सियासी दलों के लिए बेहद अहम सीट साबित होने वाली है। मौजूदा गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने 2014 में यहीं से चुनाव लड़ा था और जीत दर्ज की थी। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी 1951 से लेकर 2004 तक 8 बार यहीं से चुनाव लड़ते रहे और 5 बार जीते। इस सीट पर सबसे बड़ी जीत भारतीय लोकदल पार्टी के हेमवती नंदन बहुगुणा को 1977 में मिली थी जब उन्होंने 72.99% वोट हासिल किए थे। 1991 से इस सीट पर बीजेपी का ही कब्जा रहा है।
आजमगढ़
आजमगढ़ लोकसभा सीट सपा-बसपा गठबंधन के लिए अहम सीट है। सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव बीजेपी प्रत्याशी रमाकांत यादव को इस सीट से 2014 में करीब 50 हजार वोटों से हरा चुके हैं। वोटिंग पैटर्न और गठबंधन को देखें तो सपा के लिए 2019 में आजमगढ़ सीट सुरक्षित लगती है। आजमगढ़ उन दो सीटों में से एक है जहां कांग्रेस का पत्ता साफ हो गया था। मुलायम सिंह यादव को 3.4 लाख वोट मिले थे और अगर इसमें पिछली बार के बसपा के वोट भी गिन लिए जाएं तो ये 6.06 लाख हो जाएगा। बसपा और बीजेपी के बीच का अंतर इस सीट से सिर्फ 10,574 वोटों का था। इस बार इस सीट से अखिलेश यादव चुनाव मैदान में हैं और बीजेपी ने दिनेश लाल यादव 'निरहुआ' को मैदान में उतारा है।
नगीना
नगीना में पहली बार 2009 में लोकसभा चुनाव हुए और ये अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व सीट है। 2009 में सपा के यशवीर सिंह भारती ने यहां से जीत दर्ज की थी। 2014 में इस सीट पर बीजेपी ने जीत दर्ज की थी। नगीना मुस्लिम बहुल क्षेत्र है और तकरीबन 21 फीसदी वोटर अनुसूचित जाति के हैं। इस क्षेत्र में पड़ने वाली विधानसभा सीटों का आकलन करें तो सभी 5 सीटों पर मुस्लिम वोटर 50 फीसदी से अधिक। इस बार सपा-बसपा का गठबंधन यहां भाजपा के लिए बड़ी चुनौती साबित होने वाला है।
बिजनौर
2019 के लोकसभा चुनाव में बिजनौर सीट बेहद अहम होगी। इस सीट से कई बड़े नेता चुनाव लड़ चुके हैं। 1985 में पूर्व लोकसभा स्पीकर मीरा कुमार यहां से उपचुनाव जीत चुकी हैं। 1989 में बसपा प्रमुख मायावती यहां ये चुनाव जीतकर पहली बार सांसद बनीं थीं। यहां से लोक जनशक्ति पार्टी के प्रमुख रामविलास पासवान भी चुनाव लड़े हैं। 2014 में राष्ट्रीय लोकदल से जयाप्रदा भी यहां से चुनाव लड़ चुकी हैं। 2014 लोकसभा चुनावों में भाजपा के कुंवर भारतेंद्र सिंह ने सपा के शाहनवाज राणा को दो लाख के भारी अंतर से हराया था। बसपा के मलूक नागर तीसरे नंबर पर रहे थे। इस सीट पर 2014 में अगर सपा और बसपा साथ लड़ते तो उनके मत बीजेपी से अधिक होते। बसपा ने 2019 लोकसभा के लिए पूर्व विधायक इकबाल ठेकेदार को यहां से मैदान में उतारा है। बिजनौर में गन्ना किसानों का मुद्दा हार और जीत का कारण बन सकता है।
रामपुर
इस सीट पर 50 फीसदी से अधिक मुस्लिम वोटर हैं। यह क्षेत्र सपा नेता आजम खान का गढ़ माना जाता है, लेकिन 2014 में बीजेपी के नेपाल सिंह यहां से सांसद बने। 1952 में इस सीट से कांग्रेस नेता डॉक्टर अबुल कलाम आजाद ने जीत दर्ज की थी। कांग्रेस के जुल्फिकार अली खान ने लगातार यहां से तीन बार चुनाव जीता और कुल पांच बार सांसद रहे। 2004 और 2009 में समाजवादी पार्टी की तरफ से जयाप्रदा यहां से सांसद चुनी गईं थीं। इस लोकसभा सीट पर सपा-बसपा का गठबंधन कमाल कर सकता है। फिलहाल बीजेपी ने यहां से जयाप्रदा को मैदान में उतार कर मुकाबले को दिलचस्प बना दिया है।
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