2014 में बदायूं लोकसभा सीट पर बेअसर थी बीजेपी की लहर, आसान नहीं है सपा के गढ़ में सेंधमारी
बदायूं लोकसभा क्षेत्र से 9 उम्मीदवार मैदान में हैं। मुख्य मुकाबला सपा के उम्मीदवार धर्मेंद्र यादव और बीजेपी की संघमित्रा मौर्य के बीच है।
बदायूं, एबीपी गंगा। पश्चिमी उत्तर प्रदेश की बदायूं लोकसभा सीट समाजवादी पार्टी का गढ़ मानी जाती है। पिछले 6 लोकसभा चुनाव से समाजवादी पार्टी इस सीट पर अजेय है। 2019 में एक बार फिर सपा यहां से फतह हासिल करना चाहेगी तो भारतीय जनता पार्टी ने भी दमदार उम्मीदवार उतारकर कड़ी चुनौती देने की कोशिश की है, अब देखना होगा कि इस बार सपा अपना दुर्ग बचाने में कामयाब होती है या फिर बीजेपी यहां सेंध लगाने में सफल हो पाती है। बदायूं लोकसभा क्षेत्र से 9 उम्मीदवार मैदान में हैं। मुख्य मुकाबला सपा के उम्मीदवार धर्मेंद्र यादव और बीजेपी की संघमित्रा मौर्य के बीच है। कांग्रेस ने सलीम इकबाल शेरवानी को मैदान में उतारा है। 4 उम्मीदवार बतौर निर्दलीय अपनी किस्मत आजमा रहे हैं।
एक नजर में बदायूं लोकसभा सीट
बीते करीब दो दशक में समाजवादी पार्टी का गढ़ बन चुकी बदायूं लोकसभा सीट पर शुरुआती दौर में कांग्रेस का प्रभाव नजर आया था। शुरुआती दो चुनाव में यहां कांग्रेस के उम्मीदवार जीते, लेकिन 1962 और 1967 में यहां भारतीय जनसंघ ने चुनाव बड़े अंतर से जीता। 1977 चुनाव को छोड़ दें तो कांग्रेस ने 1971, 1980 और 1984 का चुनाव इस सीट से जीता। 1989 का चुनाव जनता दल के खाते में गया और 1991 में भारतीय जनता पार्टी ने इस सीट पर कब्जा जमाया। 1996 में समाजवादी पार्टी के सलीम इकबाल ने यहां पर चुनाव जीता, जिसके बाद यहां सपा का एक छत्र राज शुरू हुआ। सलीम इकबाल ने लगातार चार बार यहां से चुनावी परचम लहराया। 2009 में इस सीट पर यादव परिवार की एंट्री हुई और मुलायम सिंह के भतीजे धर्मेंद्र यादव ने जीत दर्ज की। पिछले चुनाव में भी उन्होंने आसानी से बीजेपी के प्रत्याशी को मात दी थी।
बदायूं लोकसभा सीट का समीकरण
बदायूं लोकसभा सीट में यादव और मुस्लिम मतदाताओं का वर्चस्व है। यहां दोनों ही मतदाता करीब 15-15 फीसदी हैं। 2014 के आंकड़ों के अनुसार यहां करीब 18 लाख मतदाता हैं, इसमें 9.7 लाख पुरुष और 7.9 लाख महिला मतदाता हैं।
विधानसभा सीटें
बदायूं लोकसभा क्षेत्र में कुल 5 विधानसभा सीटें आती हैं। इनमें गुन्नौर, बिसौली, सहसवान, बिल्सी और बदायूं शामिल हैं। 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में इसमें से सिर्फ सहसवान सीट पर ही समाजवादी पार्टी जीत पाई थी, जबकि बाकी सभी सीटों पर भारतीय जनता पार्टी ने बाजी मारी थी।
2014 में कैसा रहा जनादेश
2014 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के धर्मेंद्र यादव ने यहां एक तरफा जीत हासिल की, उन्हें करीब 48 फीसदी वोट मिले थे। 2014 में मोदी लहर के भरोसे चुनाव में उतरी बीजेपी का जादू यहां नहीं चला और उनके उम्मीदवार को सिर्फ 32 फीसदी ही वोट मिले थे। 2014 के चुनाव में इस सीट पर कुल 58 फीसदी मतदान हुआ था, जिसमें से करीब 6200 वोट NOTA में गए थे।