पंडित शशिशेखर त्रिपाठी


शनिदेव मकर राशि में पधार चुके हैं। शनि के इस राशि में आने से कुंभ राशि वालों की साढ़ेसाती शुरू हो रही है। धनु और मकर राशि के लोग पहले से ही इसके प्रभाव में हैं। इनके अलावा भी कई राशियों के लोग शनि के गोचर से विपरीत प्रभाव का सामना कर सकते हैं। हम लोगों ने शनि की साढ़ेसाती को बहुत विस्तार से समझा है। आज हम लोग बात करेंगे ढय्या की।


जब भी कुंडली में चंद्रमा की जो पोजीशन होती है वहां से चतुर्थ या अष्टम शनि अंतरिक्ष में गुजरता है तो उस राशि वाले की शनि की ढय्या प्रारंभ हो जाती है। मकर राशि में शनि के आने से मिथुन राशि और तुला राशि वालों की ढय्या प्रारंभ हो गई है।



चलिए अब बात करते हैं कि मिथुन राशि वालों की शनि की ढय्या की। यहां एक चीज समझनी है मिथुन राशि जिसकी भी है यानी उसका चंद्रमा मिथुन राशि है। मिथुन का जो स्वभाव वह द्विस्वभाव है। मिथुन का जो स्वभाव है वह क्रिएटिव है लेकिन शनि का स्वभाव क्रिएटिव नहीं है कर्मठ है और अभ्यास पूर्ण है। जिसका मन मिथुन है यानी कम्युनिकेशन है प्लानर है और चंद्रमा चूंकि चंचल है वह अब शनि के प्रभाव में आने से कर्मठ भरे वातावरण से जूझना पड़ेगा, इसलिए मिथुन राशि वालों को अलर्ट रहना होगा।



श्रीकृष्ण हैं पीपल -गीता के विभूति योग में भगवान कृष्ण का उद्घोष है


अश्वत्थः सर्ववृक्षाणां देवर्षीणाञ्य नारदः


अर्थात सभी वनस्पतियों में मैं पीपल हूं और देवऋषियों में मैं नारद हूं। पीपल ही एक मात्र ऐसा वृक्ष है जो सबसे ज्यादा ऑक्सीजन छोड़ता है। जिनकी शनि की साढ़ेसाती चल रही हो उन्हें पीपल वृक्ष के नीचे तिल के तेल का दीप जलाना चाहिए, ऐसा करना लाभकारी होगा। एक बात गांठ बांध लेने वाली है कि तेल, दीप व बाती घर से ही लेकर जाएं। शनिवार के दिन तेल खरीदना वर्जित है। शनि के मूर्ति दर्शन के बजाय इनकी प्रतीकात्मक पूजा करना ही श्रेष्ठ है।