गोरखपुरः गोरखपुर का ‘लीला चित्र मंदिर’ सैलानियों के लिए आकर्षण का केन्द्रु रहा है. इसिलए कहा जाता है कि जब गोरखपुर आइए तो गीता प्रेस के ‘लीला चित्र मंदिर’ जरूर जाइए. इसे दुनिया की सबसे अनोखी आर्ट गैलरी कहा जा सकता है. क्योंकि यहां दीवारों पर लगे संगमरमर पर लिखी संपूर्ण श्रीमद्भगवतगीता देश और विदेश से आने वाले सैलानियों के लिए आकर्षण का केन्द्र हैं.


इसके साथ ही यहां पर हाथ से फूलों के रस और वाटर कलर से बनाए गए सजीव से दिखने वाले 700 से अधिक दुर्लभ चित्र खुद-ब-खुद लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं. एक साथ सैकड़ों देवी-देवताओं के चित्र एक ही छत के नीचे दुनिया में कहीं और देखने को नहीं मिलेंगे. इनमें से कई 300 से 400 साल पुराने हैं.


18 अध्याय 700 श्लोेक लिखे हैं संगमरमर पर
गोरखपुर के गीता प्रेस का ‘लीला चित्र मंदिर’ की दीवारों पर श्रीमद्भागवत गीता के 18 अध्याय 700 श्लोरक के रूप में संगमरमर पर लिखे हुए हैं. यहां रखे गए चित्र भगवान श्रीराम और श्रीकृष्ण की लीलाओं से भरा हुआ है. इन चित्रों में भगवान श्रीराम और श्रीकृष्णआ की जीवनी की लीलाओं को चित्र के माध्यमम से बड़ी ही सजीवता के साथ बताया गया है.


सजीव से दिखने वाले ये चित्र खुद-ब-खुद लोगों को आकर्षित करते है. गीता प्रेस के लीला चित्र मंदिर में बीके मित्रा, जगन्नाथ और भगवानदास द्वारा बनाए गए सैकड़ों चित्र सुरक्षित और संरक्षित हैं.



यहां के न्यारसी देवी दयाल अग्रवाल बताते हैं कि रामायण का निर्माण करने के दौरान रामानन्दा सागर चार दिनों के लिए यहां पर प्रवास किए. उन्हों ने हस्तदनिर्मित भगवान श्रीराम के लीला चित्रों को काफी बारीकी से देखा और उनकी भगवान श्रीराम, माता सीता, लक्ष्म ण, भरत, शत्रुघ्न , हनुमान समेत अनेक पात्रों के रंग, वस्त्र , वेशभूषा, आभूषण और सेट को चित्रों के अनुरूप ही सीरियल में भी प्रयोग किया. सीरियल में उसी तरह के सेट लगाए गए, जैसे लीला चित्र मंदिर के चित्रों में दिखे. उन्होंने बताया कि भगवान श्रीराम और श्रीकृष्णर की लीलाओं के अलावा भी यहां पर 700 से अधिक चित्र हैं.


चित्रों में ऐसी सजीवता कहीं और देखने नहीं मिलती
देवी दयाल बताते हैं कि यहां के चित्रों में ऐसी सजीवता दिखाई देती है, जो कहीं और देखने को नहीं मिलेगी. उन्होंदने बताया कि संस्थारपक जय दयाल गोयनका और भाई हनुमान प्रसाद पोद्दार ने सामने बैठकर बनावाया है.


गीता प्रेस से प्रकाशित पुस्त कों में भी प्रमाणिक सजीव चित्र ही मिलेंगे. उन्हों ने बताया कि इसके अलावा पूरे हाल में 700 श्लोउक के रूप में संगमरमर के पत्थपरों पर संपूर्ण श्रीमद्भगवतगीता मिलेगी. आज के लोग इसे आर्ट गैलरी के नाम से बुला सकते हैं. देश-विदेश से लोग यहां पर आते रहते हैं.



डा. राजेन्द्र प्रसाद ने 1955 में किया था उद्घाटन
गीता प्रेस के ‘लीला चित्र मंदिर’ के उद्घाटन के साक्षी रहे न्या सी बैजनाथ अग्रवाल बताते हैं कि देश के प्रथम राष्ट्ररपति डा. राजेन्द्र प्रसाद ने 1955 में इसका उद्घाटन किया था. उन्होंने बताया कि भाईजी हनुमान प्रसाद पोद्दार ने उनसे आग्रह किया. उन्हों ने आग्रह को स्वीोकार किया. बैजनाथ अग्रवाल बताते हैं कि वे बग्घीह में गोरक्षपीठ के महंत दिग्विजनाथ के साथ आए. हालांकि उनके चिकित्स क ने उन्हें स्वास्थ्य कारणों  ने वहां नहीं जाने के लिए कहा. लेकिन, वे नहीं मानें और यहां पर आए. वे उस समय गीता प्रेस में काम कर रहे थे. उस ऐतिहासिक पल के वे साक्षी बने.


600 से अधिक पेंटिंग्स भी
गीता प्रेस के चित्रकार गोपाल गुप्तास ‘साधक’ बताते हैं कि यहां पर 700 चित्र हैं. लीला चित्र मंदिर में पूर्व की तरफ भगवान श्री कृष्ण के चित्र हैं. पश्चिम की तरफ श्रीराम के हस्त् निर्मित लीला-चित्र हैं. चित्रों में आकृति को खोजने वाले चार चित्र भी खास हैं. दक्षिण की तरफ दशावतार तथा इससे जुड़े चित्र हैं, तो उत्तर की ओर नवदुर्गा समेत अनेक देवियों के चित्र हैं. इन चित्रों में से अधिकतर बीके मित्रा, जगन्नाथ और भगवानदास ने बनाए हैं.


इसके अलावा वहां 600 से अधिक पेंटिंग्स भी हैं. इनमें मेवाड़ी शैली में भगवान कृष्ण की लीला दिखाई गई है. ये मेवाड़ से लाकर किसी ने भाईजी हनुमान प्रसाद पोद्दार को भेंट की थीं. इसी तरह जयपुर, मुगल, ओरिएंटल आर्ट की भी पेंटिंग्स हैं. यहां कई चित्र ऐसे हैं, जो 300 से 400 सालों से भी ज्यादा पुराना है. वहीं 17वीं शताब्दी की गोविंद गद्दी का चित्र यहां का विशेष आकर्षण है. संगमरमर पर श्रीमद्भगवतगीता के 700 श्लो.क के रूप में लिखी गई है.


लीला चित्र मंदिर में तमाम ऐसी चीजें हैं जिन्हें संरक्षित करके रखा गया है, इनमें महात्मा गांधी का एक पत्र भी है. इस पत्र को उन्होंने 1935 में लिखकर गीता प्रेस भेजा था. तभी से उस पत्र को सुरक्षित रखा गया है.

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