यूपी में दम दिखा रही है आम आदमी पार्टी, 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव में बन सकते हैं ये समीकरण
उत्तर प्रदेश में चाहे ब्राह्मणों की हत्या से शुरू हुई ब्राह्मण प्रेम की राजनीति हो, कोरोना में उपकरणों की खरीद का मुद्दा हो या फिर लखीमपुर में पूर्व विधायक की हत्या. आप पार्टी ने ऐसा हंगामा खड़ा किया कि मानो वही सबसे बड़ा विपक्षी दल है.
लखनऊ: उत्तर प्रदेश की राजनीति में कांग्रेस, सपा और बसपा मिलकर जो बीते 3 सालों में नहीं कर पा रहे थे वो दिल्ली से आई आप पार्टी ने 3 महीने में कर दिया. जिस कमजोर विपक्ष की बात जानकार करते थे अब उस कमजोर विपक्ष का विकल्प आप पार्टी बनती जा रही है. उत्तर प्रदेश में चाहे ब्राह्मणों की हत्या से शुरू हुई ब्राह्मण प्रेम की राजनीति हो, कोरोना में उपकरणों की खरीद का मुद्दा हो या फिर लखीमपुर में पूर्व विधायक की हत्या. आप पार्टी ने ऐसा हंगामा खड़ा किया कि मानो वही सबसे बड़ा विपक्षी दल है. अचानक से सक्रिय हुई आप पार्टी और साल 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर क्या होगी सियासत. जानिए इस रिपोर्ट में.
पूरी तरह सक्रिय नहीं दिख रही कांग्रेस मार्च 2017 में प्रचंड बहुमत के साथ उत्तर प्रदेश में बीजेपी ने सत्ता पाई. उसके बाद 2019 के चुनाव में दिल्ली में भगवा फहराया. इन दो चुनाव से ऐसा लगा कि मानो उत्तर प्रदेश की सियासत से विपक्ष नाम का राजनैतिक घटक खत्म हो गया है. सपा, बसपा और कांग्रेस की सक्रियता सिर्फ सोशल मीडिया पर सिमट कर रह गई. कांग्रेस में जरूर कभी-कभी उत्तर प्रदेश प्रभारी और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी की लखनऊ में आमद से जोश भरता दिखाई पड़ा लेकिन जैसे ही पार्टी की दीदी दिल्ली रवाना होतीं कांग्रेस का जोश भी उसी तेजी से गायब हो जाता.
यूपी में जम गए संजय सिंह सोनभद्र का उम्भा कांड हो या फिर कोटा से बच्चों को यूपी लाने का मामला. कांग्रेस ने प्रियंका गांधी की अगुवाई में उत्तर प्रदेश सरकार को घेरने के लिए पूरी ताकत झोंकी. कांग्रेस काफी हद तक इस कोशिश में सफल भी रही. लेकिन कांग्रेस की सक्रियता के बीच आप पार्टी ने यूपी में सक्रियता बढ़ा दी. दिल्ली में प्रियंका गांधी का बंगला खाली होने के बाद लखनऊ में माहौल गरमाया कि अब प्रियंका गांधी लखनऊ में रहेंगी. यहीं डेरा जमाकर उत्तर प्रदेश की सियासत और कांग्रेस में जान फूंकेंगी. लेकिन डेरा जमाना था प्रियंका को, जम गए आप पार्टी वाले संजय सिंह.
आप ने नहीं छोड़े मौके संजय सिंह ने उत्तर प्रदेश में पार्टी की कमान संभाली तो ऐसा कोई मुद्दा नहीं छोड़ा जब सीएम और सरकार को निशाने पर न लिया हो. ब्राह्मणों की हत्या और एनकाउंटर का मुद्दा हो, कोरोना काल में किट और मेडिकल उपकरण खरीद का घोटाला हो, पत्रकारों की हत्या हो या फिर सरकार के कामकाज का जनता के बीच जातिगत आधार पर सर्वे. ये संजय सिंह की सक्रियता का ही नतीजा था सीएम योगी तक को विधानसभा में बिना नाम लिए कहना पड़ा कि दिल्ली के कुछ नमूने आजकल घूम रहे हैं.
विपक्ष पर दिखा आप का दबाव आप पार्टी किसी भी मुद्दे पर सड़कों पर उतरने से नहीं चूक रही. संख्या भले इनकी कम हो लेकिन प्रदर्शन में तीखापन किसी बड़ी पार्टी से कम नहीं रहता. लखीमपुर में पूर्व विधायक की हत्या हुई तो रातों-रात संजय सिंह लखीमपुर पहुंच गए. लौटते वक्त पुलिस ने संजय सिंह को सीतापुर में रोका तो सोशल मीडिया के सहारे संजय सिंह ने मामला इतना गरमा दिया कि अगले दिन समाजवादी पार्टी को अपने ब्राह्मण नेता अभिषेक मिश्रा को लखीमपुर भेजना पड़ा.
वोट बैंक में सेंधमारी उत्तर प्रदेश की सियासत को करीब से समझने वाले भी कह रहे हैं कि बीते 3 महीने से आप पार्टी ने जो हंगामा खड़ा किया है उसे विपक्ष की मौजूदगी का एहसास होने लगा है, जो साल 2022 में बीजेपी, सपा कांग्रेस या फिर बसपा हर पार्टी के लिए खतरा है. क्योंकि आप पार्टी खड़ी होगी तो वो वोट बैंक में सेंधमारी करेगी और वोट बैंक का घाटा होगा तो इन्हीं सियासी दलों को होगा.
बीजेपी की दूसरी विंग है आप आप पार्टी अगर मजबूत होती है तो जाहिर है कि बीजेपी और कांग्रेस का वोट बैंक कहा जाने वाला ब्राह्मण वोटर आप की झोली में खिसकेगा. शहरी इलाकों का पढ़ा-लिखा तबका भी दिल्ली सरकार को देखकर आप की तरफ दरक सकता है. हालांकि कांग्रेस आप को बीजेपी की दूसरी विंग बता रही है, बीजेपी और आप के बीच हो रही सियासी धींगा कुश्ती को प्रॉक्सी वॉर कह रही है.
आप ने गरमा दिया सियासी माहौल रही बात सपा और बसपा की तो बसपा का अपना वोट बैंक उससे पहले ही दरक चुका है. बड़ा तबका बीजेपी, कांग्रेस और सपा में है. सड़कों पर संघर्ष करने वाली सपा अब ट्विटर पर सिमट कर रह गई है. गाहे-बगाहे सपा की यूथ विंग कभी फोटो खिंचवाने के लिए सड़कों पर उतर आती है. ऐसे हालात में इतना जरूर है कि उत्तर प्रदेश की सियासत में बीते 3 सालों से जो विपक्ष की राजनीति ठंडी पड़ी थी उसे आप ने गरमा दिया है.
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