Acharya Pramod Krishnam News: कांग्रेस की पार्टी लाइन से हटकर बात करने वाले आचार्य प्रमोद कृष्णम कभी प्रियंका गांधी को बतौर प्रधानमंत्री प्रोजेक्ट करने तो कभी सचिन पायलट को राजस्थान का मुख्यमंत्री बनाने की पैरवी करने के लिए सुर्खियों में बने ही रहते हैं. ऐसा ही नहीं मौका मिलते दिल्ली के सीएम से लेकर यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ और पीएम मोदी की भी प्रशंसा करते नजर आए. सत्ता पर काबिज होने के लिए हिंदू धर्म के साथ चलने की वकालत करने वाले आचार्य प्रमोद कृष्णम से एबीपी लाइव ने खास बातचीत की. पढ़िए पूरी बातचीत, जिसमें मोदी से लेकर राजस्थान के सीएम गहलोत, यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ, दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल से लेकर पीएम मोदी और प्रियंका गांधी तक के बारे में अपनी राय रखी.
1. सभी लोग प्रधानमंत्री के लिए राहुल गांधी की वकालत करते हैं, लेकिन आप प्रियंका गांधी की वकालत क्यों करते हैं?
जवाब- प्रियंका गांधी में सभी वह गुण विद्यमान हैं, जो एक प्रधानमंत्री में होने चाहिए.
2. क्या आप कोई गुण बताएंगे?
जवाब- देश के प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार वह होना चाहिए, जो लोकप्रिय व्यक्ति हो. जिसकी स्वीकार्यता हो, जिसकी विश्वसनीयता हो. मुझे लगता है कि पूरे विपक्ष में प्रियंका गांधी से ज्यादा लोकप्रिय नेता कोई नहीं है. उनकी स्वीकार्यता है, तो प्रधानमंत्री के पद का उम्मीदवार लोकप्रियता के आधार पर प्रियंका गांधी ही होनी चाहिए. मुझे देश में बहुत से लोग मिलते हैं. मैं संत समाज के लोगों से भी मिलता हूं. कुछ लोगों का मत है कि प्रियंका गांधी की वाणी में इंदिरा गांधी जैसी झलक है. किसी का विचार है कि वह महिलाओं के लिए बहुत ज्यादा संघर्ष करती हैं. किसी का विचार है कि वे बेटियों की लड़ाई लड़ते हैं. किसी को उनमें बहन नजर आती है, तो किसी को मां. किसी को उनमें बेटी भी नजर आती है. कुल-मिलाकर उनकी लोकप्रियता और स्वीकार्यता के आधार पर देश के प्रधानमंत्री के पद पर प्रियंका गांधी ही सर्वाधिक लोकप्रिय हैं.
क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शक्तिशाली और लोकप्रिय नेता हैं. नरेंद्र मोदी जनसाधारण के हृदय को छूने का काम करते हैं और वे जनता के मन की बात के लिए ही सब कुछ करते हैं. यह अलग बात है कि वो बीजेपी के नेता हैं हमारे विरोधी हैं, लेकिन देश के प्रधानमंत्री हैं और देश के प्रधानमंत्री के रूप में जो वह करते हैं पहला और अंतिम ध्येय जनता तक पहुंचना है.
3. आप कह रहे हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जनता की नब्ज को समझते हैं?
जवाब- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश की जनता की नब्ज को समझते हैं. वह जनसाधारण के दिल को स्पर्श करना जानते हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जैसे लोकप्रिय नेता के सामने ऐसे नेता को खड़ा नहीं किया जा सकता. जिसकी लोकप्रियता और स्वीकार्यता न हो.
4. उत्तर प्रदेश में प्रियंका गांधी के प्रभारी रहते हुए कांग्रेस की ऐतिहासिक हार हुई. बावजूद इसके आप उन्हें प्रधानमंत्री का उम्मीदवार बता रहे हैं?
जवाब- मत आप से भिन्न है. प्रभारी को वोट नहीं पड़ता.
5. लेकिन, प्रभारी रणनीति तो तैयार करता है?
जवाब- प्रभारी बनना केवल मैनेजमेंट का विषय है.
6. तो क्या आप मानते हैं कि मैनेजमेंट की दृष्टि से प्रियंका गांधी फेल हैं?
जवाब- प्रियंका गांधी ने चुनाव का प्रबंधन अच्छा किया. प्रबंधन में दो चीजें शामिल है. एक बूथ और एक वोट. बूथ का मैनेजमेंट आप अच्छा कर सकते हैं. बूथ पर 5-10 लोग बिठा सकते हैं, लेकिन वोट कहां से पैदा करेंगे? वोट तो चेहरा पैदा करता है. प्रियंका गांधी उस चुनाव में चेहरा नहीं थी. समाजवादी पार्टी का चेहरा अखिलेश यादव थे. भारतीय जनता पार्टी का चेहरा योगी आदित्यनाथ थे. बसपा का चेहरा मायावती थी. उत्तर प्रदेश में तो कांग्रेस का चेहरा अजय कुमार लल्लू थे.
7. क्या आपको लगता है कि कांग्रेस उत्तर प्रदेश में चेहरा देने में विफल रही है? कांग्रेस के पास उत्तर प्रदेश में कोई चेहरा नहीं बचा.
जवाब- हां, यहां मैं स्वीकार करता हूं. हमारे पास स्टेट लीडरशिप में नेतृत्व का अभाव है.
8. 80 लोकसभा सीट वाले उत्तर प्रदेश में अगर आपको एक भी सीट नहीं मिलेगी, तो आप प्रियंका गांधी को प्रधानमंत्री कैसे बनाएंगे?
जवाब- मैं इसे सिरे से खारिज करता हूं. इसके पीछे एक लॉजिक है. अगर प्रियंका गांधी उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री का चेहरा होती और तब सीट नहीं आती, तो मैं इसे उनका फैलियर मानता. उत्तर प्रदेश में अमित शाह बीजेपी के प्रभारी थे, लेकिन वोट तो मोदी को पड़े. प्रभारियों का काम मैनेजमेंट करना होता है. अगर प्रभारियों के नाम पर वोट पड़ते, तो प्रभारी ही राज्यों के मुख्यमंत्री बन जाते.
9. चुनाव में मैनेजमेंट की भूमिका तो होती ही है?
जवाब- मैनेजमेंट की छोटी सी भूमिका होती है. प्रभारी के नाम पर जीरो से 25% तक वोट नहीं पड़ सकता.
10. साल 2014 में उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार थी. उस चुनाव में अमित शाह ने प्रभारी की भूमिका निभाई और भाजपा को जीत मिली?
जवाब- इसमें अमित शाह की कोई भूमिका नहीं थी. वोट नरेंद्र मोदी के नाम पर पड़ा. प्रभारी की छोटी सी भूमिका रहती है. जब ओम माथुर प्रभारी थे, तब भी वोट पड़े. पहले गुलाम नबी आजाद प्रभारी होते थे, तब वह गांधी परिवार के नाम पर पड़ता था. उस वक्त गुलाम नबी आजाद को मुख्यमंत्री नहीं बना दिया गया. पिछले विधानसभा चुनाव में राजस्थान में सचिन पायलट के नाम पर वोट पड़ा. क्योंकि वह राजस्थान कांग्रेस के अध्यक्ष थे. वहां प्रभारी अविनाश पांडे थे, तब तो उन्हें मुख्यमंत्री बना देना चाहिए.
11. साल 2024 में जब लोकसभा के चुनाव होंगे, उसे लेकर आप का क्या अनुमान है? कांग्रेस को कितनी सीटें मिल सकती हैं?
जवाब- कांग्रेस को इस बात का फैसला लेना होगा कि प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार कौन होगा? संयुक्त विपक्ष को यह फैसला लेना होगा कि मोदी के सामने कौन सा ऐसा चेहरा होगा, जिसे आगे लाया जाए. चेहरा भी ऐसा होना चाहिए, जो देश की जनता को स्वीकार हो. देश की जनता के बीच अगर किसी चेहरे की स्वीकार्यता ही नहीं है, तो फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को टक्कर नहीं दी जा सकती.
12. विपक्ष में तो अरविंद केजरीवाल और नीतीश कुमार भी प्रधानमंत्री के चेहरे हैं. क्या आप इन्हें सशक्त मानते हैं?
जवाब- क्षेत्रीय दल नरेंद्र मोदी को नहीं रोक सकते. बीजेपी को सत्ता से बाहर नहीं कर सकते. जब राज्य का चुनाव होता है, तो राज्य की जनता की सोच अलग होती है. राष्ट्र के चुनाव में जनता की राष्ट्र उम्मीद होती है. क्योंकि हर देश का सवाल होता है. नरेंद्र मोदी के सामने क्षेत्रीय दल का कोई नेता आगे आए, तो ठीक नहीं होगा. इससे शिकस्त मिलेगी.
13. क्या आपको लगता है नीतीश कुमार के प्रयास सफल होंगे? क्या उनके प्रयास सही दिशा में जा रहे हैं?
जवाब- नीतीश जी एक वरिष्ठ नेता हैं. राष्ट्रीय राजनीति में उनका उनकी भूमिका रही है, लेकिन उनकी विश्वसनीयता पर सवाल है. वे कई बार नरेंद्र मोदी के साथ दे. वे कभी नरेंद्र मोदी के खिलाफ है. कभी लालू प्रसाद यादव के साथ रहे, तो कभी लालू प्रसाद के खिलाफ. नरेंद्र मोदी के सामने प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने के लिए हर पार्टी चाहती है कि उनके नेता को भी उम्मीदवार बनाया जाए. समाजवादी पार्टी चाहेगी अखिलेश यादव को पीएम उम्मीदवार बनाया जाए. टीएमसी चाहेगी कि ममता बनर्जी को पीएम उम्मीदवार बनाया जाए. क्षेत्रीय दल अपने नेता को प्रधानमंत्री बनाना चाहते हैं. लोकतंत्र में उनका यह अधिकार है, लेकिन प्रधानमंत्री पार्टियां नहीं बनाती. देश की जनता बनाती है. इसलिए जनता को जो चेहरा अच्छा लगता है, जनता उसे वोट देती है. ऐसे में नीतीश कुमार की जो बात है, उनकी विश्वसनीयता पर सवाल है. वे छोटे नेता नहीं हैं, लेकिन उन पर लोगों को यकीन नहीं है. अगर ऐसा व्यक्ति प्रधानमंत्री उम्मीदवार बने, जिसकी विश्वसनीयता पर सवाल हो वह नरेंद्र मोदी को शिकस्त कैसे देगा?
14. क्या आपको लगता है कि वे यह कैंपेन बेवजह चला रहे हैं?
जवाब- यह विपक्ष की बेवकूफी है. विपक्ष के नेताओं को यह समझाना चाहिए कि नरेंद्र मोदी लोकप्रिय नेता हैं. मुझे तो नरेंद्र मोदी के सामने सिर्फ और सिर्फ प्रियंका गांधी का ही चेहरा नजर आता है.
15. पूरी कांग्रेस राहुल गांधी का नाम लेती है और आप एक अलग दिशा में प्रियंका गांधी का नाम ले रहे हैं?
जवाब- प्रियंका गांधी राहुल गांधी और प्रियंका गांधी में कोई प्रतिस्पर्धा नहीं है. राहुल गांधी साल 2019 में कांग्रेस के चेहरे थे. उसके बाद राहुल गांधी ने खुद ही कहा कि वह किसी पद की लालसा नहीं रखते. राहुल गांधी तपस्वी की भूमिका में हैं. उन्हें पदों की लालसा नहीं है. अगर वह प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार होते, तो वे कांग्रेस की अध्यक्षता भी संभाल लेते. जब राहुल गांधी कांग्रेस का अध्यक्ष बनने के लिए तैयार नहीं हुए, तो वे प्रधानमंत्री का चेहरा बनने के लिए कैसे तैयार होंगे? वह एक विशाल हृदय वाले व्यक्ति हैं. राहुल गांधी पर हमले हो रहे हैं. उनकी सदस्यता चली गई है. कानूनी पेंच भी है, तो राहुल गांधी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नहीं हैं. मैं सिर्फ अपना मत व्यक्त कर रहा हूं. कांग्रेस पार्टी और विपक्ष को मिलकर प्रियंका गांधी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाना चाहिए. ऐसा मैं चाहता हूं. देश की जनता भी यही चाहती है. कांग्रेस के करोड़ों कार्यकर्ता भी यही चाहते हैं, लेकिन यह फैसला लेना कांग्रेस आलाकमान और संयुक्त विपक्ष का काम है.
16. क्या आपको प्रियंका गांधी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाना संभव लग रहा है?
जवाब- राजनीति में कुछ भी असंभव नहीं होता.
17. प्रियंका गांधी के लिए आचार्य प्रमोद कृष्णम के अलावा और कोई पैरवी क्यों नहीं करता? क्या आप सलाहकार होने की वजह से ऐसा करते हैं?
जवाब- सवाल यह नहीं है. मैं सच बोलने की हिम्मत करता हूं. बाकी लोग डरते हैं.
18. चर्चा थी कि उदयपुर चिंतन शिविर में आप को फटकार लगी. क्या यह सत्य है?
जवाब- यह बेकार की बात है. इसमें कोई सच्चाई नहीं. यह अशोक गहलोत जी की तरफ से चलाई गई बातें हैं. (मुस्कुराते हुए)
19. आप अशोक गहलोत से इतना प्रेम क्यों करते हैं?
जवाब- क्योंकि वे प्रेम करने के लायक हैं.
20. आप लगातार उन पर हमला पर नजर आते हैं.
जवाब- मैं हमला नहीं करता.
21. वे ट्वीट करते हैं- खेला होबे!
जवाब- यह कोई हमला नहीं है. यह तो खेल हो रहा है.
22. आप कांग्रेस के ही नेता हैं और अशोक गहलोत को हटाने की बात करते हैं. अशोक गहलोत अच्छा तो काम कर रहे हैं और साल 2030 की बात कर रहे हैं.
जवाब- अशोक जी सम्मानित व्यक्ति हैं. मेरे लिए आदरणीय हैं. लेकिन, एक होता है और उनका दौर खत्म हो चुका है. अब सचिन पायलट का दौर है.
23. लेकिन, कांग्रेस तो यह मानने के लिए तैयार ही नहीं है.
जवाब- यह कांग्रेस पार्टी का फैसला हैं. मैं जबरदस्ती कांग्रेस के सिर पर लाठी नहीं मार सकता. मुझे लगता है कि सचिन पायलट के साथ नाइंसाफी हुई. साल 2018 में जब चुनाव हुए, तो सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाना चाहिए था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. यह पार्टी हाईकमान का फैसला था. अब जब नेतृत्व परिवर्तन की बात आई, तो अशोक गहलोत को भी पार्टी का फैसला मानना चाहिए. राजस्थान की जनता चाहती है कि सचिन पायलट उनके मुख्यमंत्री हो. मैं यह नहीं कहता कि अशोक गहलोत को बर्खास्त कर दिया जाए. अशोक गहलोत अब पिता की भूमिका में है. पिता अपने पुत्र को ही सत्ता देता है. उसका रास्ता प्रशस्त करता है. सचिन पायलट का मार्ग अशोक गहलोत को प्रशस्त करना चाहिए. सचिन पायलट का व्यक्तिगत रूप से नहीं बल्कि युवाओं के लिए मार्ग प्रशस्त किया जाना चाहिए. जो चेहरे बासी हो चुके हैं, उन्हें रास्ता छोड़ देना चाहिए.
24. आप अशोक गहलोत को बासी चेहरा कह रहे हैं?
जवाब- नहीं, मैं नहीं कह रहा. वे हो चुके हैं.
25. अशोक गहलोत साल 2030 तक के लिए प्लान तैयार कर रहे हैं?
जवाब- वे साल 2035 तक के लिए प्लान बनाएं. यह उनका विशेषाधिकार है. मैं तो जन भावनाओं की बात कर रहा हूं.
26. अब चुनाव में केवल 6 महीने का वक्त रह गया है. क्या आपको लगता है कि पार्टी कोई कड़ा फैसला ले सकेगी?
जवाब- यह तो कांग्रेस के नेता बताएंगे. मैं तो कांग्रेस का नेता नहीं हूं.
27. सितंबर महीने में जो घटना हुई, उसके बाद भी..?
जवाब- इसका जवाब तो मलिकार्जुन खरगे और अजय माकन दे सकेंगे. मलिकार्जुन खरगे बता सकेंगे कि अशोक गहलोत ने कांग्रेस आलाकमान का अपमान किया या नहीं? उस समय सोनिया गांधी कांग्रेस अध्यक्ष थी और वे ऑब्जर्वर और बन के गए थे. अजय माकन प्रभारी थे. जो अपमान अशोक गहलोत ने कांग्रेस आलाकमान का किया, वह तो आज तक के इतिहास में कभी हुआ ही नहीं. कांग्रेस नेतृत्व का इतना अपमान किसी दौर में नहीं हुआ. अब भी वह मुख्यमंत्री बने हुए हैं.
28. तो आपके अनुसार क्या कांग्रेस आलाकमान पूरी तरह खत्म हो गया है?
जवाब- ऐसा व्यवहार करने के बाद भी अशोक गहलोत मुख्यमंत्री बने हुए हैं. इससे लगता है कि कांग्रेस आलाकमान अब दिल्ली नहीं रहता, बल्कि जयपुर में रहता है.
29. जिस तरह पंजाब से कैप्टन साहब को हटाया गया, उसके बाद क्या ऐसा लगता है कि कांग्रेस आलाकमान खत्म हो चुका है?
जवाब- वह फैसला तो पंजाब के हालात देख कर लिया गया. लेकिन, जो फैसला राजस्थान में लेना चाहिए था वह पंजाब में लिया गया. जो पंजाब में फैसला लिया गया, वह गलत हुआ और जो राजस्थान में हो रहा है वह भी गलत.
30. क्या कांग्रेस आलाकमान पंजाब के घटनाक्रम के बाद डरी है?
जवाब- नेतृत्व को पार्टी के हित में फैसला लेना चाहिए. लीडर को पार्टी के हित में फैसला लेना चाहिए. लीडर को किसी से न तो डरने की जरूरत होती है. न ही किसी से मोह लगाने की.
31. आपने 1 साल पहले सचिन पायलट को मुख्यमंत्री भव: का आशीर्वाद दिया था. वह आशीर्वाद तो काम नहीं आया?
जवाब- मैंने यह नहीं कहा था कि कब तक बनेंगे? मैंने कहा है बनेंगे.
32. आपके अनुसार पायलट राजस्थान में कब तक सीएम बनेंगे?
जवाब- यह तो भगवान की इच्छा. राजस्थान की जनता का प्यार जब फलित होगा, तब बन जायेंगे.
33. हाल ही में सचिन पायलट धरने पर बैठे थे. उसे पार्टी विरोधी गतिविधि बताया गया. इस पर आपका क्या कहना है?
जवाब- बीजेपी के भ्रष्टाचार की जांच की जानी चाहिए. यह कहना पार्टी के खिलाफ नहीं हो सकता है? यह पार्टी विरोधी कैसे हो सकता है? अब राहुल गांधी पूरे देश में अडानी के भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं. क्या हम राजस्थान के भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई न लड़ें? सचिन पायलट यह कह रहे हैं कि वसुंधरा राजे की सरकार में जो भ्रष्टाचार हुआ, उसकी जांच की जाए. अगर हमारी सरकार जांच नहीं करेगी, तो यह माना जाएगा कि हम भाजपा के साथ मिले हुए हैं. यही सवाल सचिन पायलट उठा रहे हैं. हम जनता के सामने किस मुंह से वोट मांगने जाएंगे? हम 2018 में कहते थे कि भाजपा सरकार भ्रष्ट है. अब 5 साल हो गए, लेकिन हम जांच ही नहीं करवा रहे. जांच की मांग पार्टी विरोधी कैसे हुई?
34. राजस्थान कांग्रेस के प्रभारी सुखविंदर सिंह रंधावा लगातार सचिन पायलट पर हमलावर हैं. आप इस पर क्या कहेंगे?
जवाब- रंधावा जी पहलवान टाइप आदमी है. वह क्या कर रहे हैं? क्या करेंगे? मैं उस पर कुछ नहीं कहना चाहता. मैं इतना ही कहना चाहता हूं कि राजस्थान का विषय सुलझाना रंधावा जी के हाथ में नहीं है. यह लड़ाई सत्य और असत्य की लड़ाई है. इस विवाद को सुलझाने के लिए राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को आगे आना चाहिए. अगर कांग्रेस लड़ाई को नहीं सुलझा पाई, तो यह भारी क्षति होगी.
35. जब सचिन पायलट को लगेगा कि उनके लिए कुछ नहीं बचा. तो क्या वे अलग पार्टी बना सकते हैं?
जवाब- मुझे नहीं लगता कि सचिन पायलट निराश होने वाले व्यक्ति हैं. सचिन पायलट योद्धा हैं. वह महायोद्धा की तरह काम करेंगे.
36. लेकिन, पायलट समर्थक तो राजस्थान में निराश हो रहे हैं?
जवाब- योद्धा कभी निराश नहीं होता. पहाड़ खोदकर नदियां निकालते हैं योद्धा. बंजर भूमि में फूल खिलाने का सपना देखते हैं योद्धा. राजस्थान को जब सचिन पायलट को सौंपा गया था, तब सिर्फ 20-21 एमएलए आए थे. वहां से 100 एमएलए तक का सफर तय किया और यह सचिन पायलट ने ही किया. मुझे लगता है कि सचिन पायलट निराश होने वाले व्यक्ति नहीं है. हां, यह जरूर है कि इंसान को लगता है कि जब उसके हक में फैसले नहीं हो रहे हो. साजिश हो रही हो, तब थोड़ा कष्ट होता ही है.
37. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत तो कह रहे हैं कि साल 2013 से पहले उन्होंने जो योजनाएं बनाई थी, उसकी बदौलत साल 2018 में सरकार की वापसी हुई. इसमें सचिन पायलट की कोई भूमिका नहीं है.
जवाब- सचिन पायलट क्या कहते हैं और अशोक गहलोत क्या कहते हैं, मैं उनकी बात में नहीं जाता. मैं वह कह रहा हूं जो मुझे महसूस हो रहा है. साल 2013 में जब सुनाओ अशोक गहलोत मुख्यमंत्री थे. जब अशोक गहलोत मुख्यमंत्री बने थे तब कितना बड़ा प्रचंड बहुमत था. लेकिन, जब हारे तब क्या हुआ है. मात्र 20-21 एमएलए ही रह गए. सचिन पायलट के नेतृत्व में चुनाव हुआ, तो हमारी सरकार बनी. इससे आगे मैं कुछ नहीं कहना चाहता. प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती. इतिहास में जो लिखा हुआ है, उसे पढ़ना चाहिए.
38. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत तर्क देते हैं कि साल 2014 और साल 2019 में भी सचिन पायलट कांग्रेस अध्यक्ष थे, लेकिन उनके नेतृत्व में लोकसभा चुनाव के दौरान शून्य सीटें आई.
जवाब- लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री का चेहरा सचिन पायलट नहीं थे. यह तर्क नहीं कुतर्क है. इस तर्क में कोई दम नहीं है. यह विषय व्यर्थ है. शकुनी भी तर्क देता था कि दुर्योधन हक में है. विदुर कहते थे कि पांडव हक में है. कृष्ण कहते थे कि पांडव हक में है. भगवान कृष्ण ने कहा कि पांडवों को 5 गांव दे दीजिए, लेकिन शकुनि ने धृतराष्ट्र से कहा कि इससे कौरवों का हक मारा जाएगा. फिर सब ने देखा कि क्या हुआ? महाभारत हुआ.
39. जरा यह स्पष्ट कीजिए कि आप किसे शकुनी कह रहे हैं और किसे पांडव?
जवाब- मैंने तो सिर्फ वह बात कही, जो हमारे धर्म ग्रंथों में लिखी है. मैंने किसी को शकुनी नहीं कहा.
40. आप धर्म की बात कर रहे हैं. क्या आपको लगता नहीं कि कांग्रेस में कुछ ऐसे नेता है, जो धर्म के विरोध में बात करते हैं और इसका सीधा फायदा बीजेपी को होता है?
जवाब- सभी पार्टियों में ऐसे नेता है. बीजेपी में भी ऐसे नेता हैं, जो मुसलमानों के विरोधी हैं. कांग्रेस पार्टी न लेफ्ट के साथ चलती है और न ही राइट. हम सभी को साथ लेकर चलती हैं. लेकिन, इस दौर में कुछ ऐसे नेता आ गए हैं, जिन्हें धर्म से चिढ़ है. वे नास्तिक हैं. इसका खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ रहा है.
41. दिग्विजय सिंह कभी भगवा आतंकवाद पर बात करते हैं, तो कभी पुलवामा पर सवाल खड़े करते हैं. इस पर आप क्या कहेंगे?
जवाब- दिग्विजय सिंह महापुरुष हैं. वे क्या कहते हैं? उन्होंने क्या-क्या कहा है? इसका जवाब तो वे स्वयं दे सकते हैं, लेकिन मैं इतना जानता हूं कि दिग्विजय सिंह आरएसएस और बीजेपी के घोर विरोधी हैं. अगर उनके बयानों से कांग्रेस को नुकसान हो रहा है, तो कांग्रेस नेतृत्व को इस बारे में सोचना चाहिए.
42. क्या आपने पार्टी के मंच पर इस बात को रखा था?
जवाब- मैंने उदयपुर चिंतन शिविर में भी इस बात को रखा था. बीजेपी यह चाहती है कि कांग्रेस हिंदू विरोधी और राष्ट्र विरोधी साबित हो जाए. बीजेपी ने देश में छद्म राष्ट्रवाद फैला रखा है. हिंदू धर्म बेहद विराट है. कांग्रेस में कुछ नेता ऐसे हैं, जो वही काम कर रहे हैं जो भाजपा चाहती है. कुछ नेता ऐसे संदेश देते हैं जिससे ऐसा लगता है कि हम राम विरोधी और गाय विरोधी हैं.
43. आप मध्य प्रदेश के नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया के बारे में क्या कहेंगे? क्या आपको नहीं लगता कि उन्होंने बेहद विवश होकर कांग्रेश को छोड़ा होगा?
जवाब- नहीं, ज्योतिराज सिंधिया के साथ कुछ गलत नहीं हुआ. किसने कहा उनके साथ गलत हुआ? उन्हें तो सभी पदों से नवाजा गया. चुनाव के वक्त सिंधिया प्रदेश अध्यक्ष नहीं थे. कमल नाथ प्रदेश अध्यक्ष थे.
44. आप कह रहे हैं कि यंग ब्लड को आगे आना चाहिए. राजस्थान में अगर ऐसा होना चाहिए, तो मध्यप्रदेश में क्यों नहीं?
जवाब- साल 2018 के विधानसभा चुनाव के वक्त अगर ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस के अध्यक्ष होते, तो मैं सिंधिया के साथ भी खड़ा होता. लेकिन, चेहरे के रूप में महा कमलनाथ आगे थे. छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल थे और राजस्थान में सचिन पायलट थे. पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह थे. इससे पहले सभी प्रदेश अध्यक्ष को मुख्यमंत्री बनाया गया. सिर्फ राजस्थान में सचिन पायलट को ही मुख्यमंत्री नहीं बनाया गया. सिर्फ पायलट के साथ नाइंसाफी हुई. जिसके साथ नाइंसाफी होती है, मेरा फर्ज बनता है कि मैं उसके साथ खड़ा रहूं. घर में भी किसी के साथ नाइंसाफी होती है, तो घर के वरिष्ठ लोगों का या कर्तव्य होता है कि उसके हितों की रक्षा की जाए.
45. जब कमलनाथ मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री थे, तब उनसे सवाल किया गया कि सड़कों पर उतरने की बात कर रहे हैं. तो कमलनाथ ने कहा कि सड़कों पर उतर जाए, किसने रोका है? क्या किसी नेता के लिए ऐसा शब्दों का इस्तेमाल करना चाहिए?
जवाब- ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता माधवराव सिंधिया कमलनाथ के साथ थे. ज्योतिरादित्य सिंधिया तो कमलनाथ के लिए बच्चे की तरह है.
46. ऐसे तो अशोक गहलोत के लिए भी सचिन पायलट बच्चे की तरह हैं!
जवाब- सचिन पायलट तो अशोक गहलोत को पिता तुल्य मानते हैं, लेकिन अशोक गहलोत सचिन पायलट को कभी निकम्मा कभी नकारा कहते हैं. अशोक गहलोत को थोड़ा दिल बड़ा करना चाहिए. अशोक गहलोत अगर यह फैसला कर लें कि सचिन पायलट के लिए मार्ग प्रशस्त कर रहा हूं. राजस्थान का अगला मुख्यमंत्री सचिन पायलट होगा, तो गहलोत देश के सबसे बड़े नेता होंगे. क्योंकि देश त्यागी और तपस्वियों को मान देता है.
47. क्या आप अशोक गहलोत से कभी व्यक्तिगत तौर पर मिले हैं?
जवाब- हां, मैं उनसे मिला हूं. वह मुझे बड़ा प्यार करते हैं. जब मिलते हैं, तो गले लगा लेते हैं.
48. क्या आपने उन्हें व्यक्तिगत तौर पर कभी यह बात कही?
जवाब- कभी मुझे बुलाएंगे, तो मैं जरूर जाऊंगा. चाय-पानी पर मुझे कभी बुलाया नहीं. शायद डरते हैं कि साधु को बुलाएंगे, तो दक्षिणा देनी होगी.
49. कर्नाटक विधानसभा चुनाव में आप क्या स्थिति देख रहे हैं?
जवाब- कर्नाटक में सत्ता परिवर्तन होने जा रहा है. कर्नाटक में जो भ्रष्टाचार हुआ, लोग उसके खिलाफ वोट करेंगे.
50. विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान मलिकार्जुन खरगे ने प्रधानमंत्री के लिए सांप शब्द का इस्तेमाल कर दिया था.
जवाब- उस पर मलिकार्जुन खरगे ने खेद व्यक्त कर दिया है. यह चैप्टर क्लोज हो चुका है.
51. क्या आपको नहीं लगता कि कांग्रेस नेता बिना कुछ सोचे-समझे बयान दे देते हैं?
जवाब- प्रधानमंत्री के लिए अपशब्दों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए, लेकिन जिस तरह बीजेपी के नेता भी सोनिया गांधी के लिए अपशब्दों का उपयोग करते हैं क्या वह ठीक है? सोनिया गांधी को विश कन्या कहना क्या ठीक है? क्या राहुल गांधी को पप्पू कहना ठीक है? क्या राहुल गांधी को मंदबुद्धि कहना ठीक है? क्या गांधी परिवार को गद्दार कहना ठीक है? सोनिया गांधी तो वह महिला हैं, जिन्होंने भारत में शादी होने के बाद से भारतीय संस्कृति को ओढ़ लिया है. मर्यादित बेटी, बहू और मां की भूमिका निभा रहे हैं. जो प्रधानमंत्री जी के लिए शब्द इस्तेमाल किए जा रहे हैं, मैं उसका भी समर्थक नहीं हूं. राजनीति में ऐसे शब्दों की गुंजाइश नहीं है.
52. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ. इन दोनों में से आप किस पसंद करेंगे?
जवाब- दोनों ने अच्छा काम किया है, लेकिन दोनों ने कुछ गलतियां भी की हैं. योगी आदित्यनाथ बीजेपी के नेता है, लेकिन संत हैं. मैं उनका सम्मान करता हूं. लेकिन, जिस तरह उत्तर प्रदेश का माहौल है. वह एक नेता के लिए ठीक हो सकता है. प्रदेश के लिए ठीक नहीं है.
53. उत्तर प्रदेश की जनता तो कह रही है कि यहां कानून व्यवस्था ठीक है.
जवाब- कानून व्यवस्था कहां ठीक है? अगर कानून व्यवस्था ठीक होती तो क्या दिनदहाड़े उमेश पाल की हत्या होती? कस्टडी में अतीक अहमद का मर्डर हो गया. जिसकी रक्षा की जिम्मेदारी सरकार की थी. उसे बेखौफ बदमाशों ने मार दिया. कानून व्यवस्था ठीक उसे कहा जाएगा, जब बदमाशों को खौफ हो. अगर उमेश पाल की हत्या हुई, तो बदमाशों के बेखौफ होने का सबूत है. कहां है कानून व्यवस्था का डर?
54. लेकिन, उसके बाद एक्शन तो हुआ!
जवाब- कौन-सा एक्शन हुआ? अतीक अहमद और अशरफ अहमद की हत्या पुलिस की सुरक्षा के बीच हुई. इससे पता चलता है कि अपराधियों के हौसले कितने बुलंद हैं. यह कौन-सी कानून-व्यवस्था है? एक माफिया खत्म हुआ. दूसरा माफिया पैदा हो गया. यह कौन सी व्यवस्था हुई.
55. उत्तर प्रदेश में माफियाओं को लंबे समय से राजनीतिक संरक्षण मिलता रहा है. इस पर आप क्या कहेंगे?
जवाब- हां, यह तो स्पष्ट है माफिया पुलिस और सरकार के सरंक्षण से ही तो पैदा होते हैं. सरकार अपनी पसंद के माफिया को ताकतवर बनाती है. दूसरी सरकार आती है, तो वह अपने अनुसार काम करती है. माफिया खत्म नहीं हुए. माफिया का नाम और चेहरा ही बदलता है. माफिया राज तो बरकरार है. उमेश पाल की हत्या माफिया का उदाहरण है. अतीक अहमद की हत्या दूसरे माफिया का उदाहरण है.
56. सरकार तो माफिया को खत्म करने के लिए काम कर रही है. अदालत में भी अपराधी के खिलाफ सख्त पैरवी हो की जाती है. फिर भी आप लोग विरोध कर रहे हैं?
जवाब- मैं विरोध नहीं कर रहा हूं. मैं सच्चाई बता रहा हूं. क्या उमेश पाल की हत्या इस बात का सबूत नहीं है. दो पुलिस वालों की मौजूदगी में हत्या हुई दोनों पुलिसवालों को भी मार दिया गया. इससे पता चलता है कि अपराधियों के हौसले पस्त नहीं हुए हैं. अतीक अहमद 22 पुलिस वालों की सुरक्षा में था. उसे मार दिया गया यानी माफिया में हौसले बुलंद हैं.
57. समाजवादी पार्टी का आपको क्या राजनीतिक भविष्य नजर आता है?
जवाब- समाजवादी पार्टी कभी बीजेपी को नहीं हरा सकती. समाजवादी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के बीच जब चुनाव होता है, तो वह धर्म के बीच विभाजित हो जाता है. हिंदुओं का पोलराइजेशन हो जाता है. हिंदुओं के मन में भाव है कि समाजवादी पार्टी हिंदू विरोधी पार्टी है. भविष्य में क्या होगा, इस बारे में कुछ नहीं कह सकते. अभी तो सब अनुमान है.
58. साल 2024 के लिए आपको क्या लग रहा है?
जवाब- मैं एक बार फिर कह रहा हूं कि यदि संयुक्त विपक्ष की प्रधानमंत्री उम्मीदवार प्रियंका गांधी होंगी, तो विपक्ष की वापसी हो सकती है. अन्यथा नहीं.
59. तो क्या फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का प्रधानमंत्री बनना तय है?
जवाब- आप इस बारे में कुछ भी मान सकते हैं.
UP Politics: बृजभूषण शरण सिंह सपा में होंगे शामिल? अखिलेश यादव और शिवपाल के इस दांव ने बढ़ाई हलचल