आदि गुरु शंकराचार्य को अद्वैत परंपरा का प्रवर्तक माना जाता है। सनातन धर्म में मठ परंपरा को लाने का श्रेय आदि शंकराचार्य को जाता है। आदि शंकराचार्य नें चरों दिशाओं में अलग-अलग चार मठ की स्थापना की थी। ये चारों मठ आज भी चार शंकराचार्यों के नेतृत्व में सनातन परम्परा का प्रचार व प्रसार कर रहे हैं।


सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार में आदि गुरु शंकराचार्य का विशेष योगदान है। चारों मठों की स्थापना ईसा पूर्व आठवीं शताब्दी में की गई थी। पूर्व दिशा में गोवर्धन, जगन्नाथपुरी (ओड़िशा), पश्चिम दिशा में शारदामठ (गुजरात), उत्तर दिशा में ज्योतिर्मठ, बद्रीधाम (उत्तराखंड) और दक्षिण दिशा में शृंगेरी मठ, रामेश्वरम (तमिलनाडु) में स्थापित हैं।



आदि शंकराचार्य ने मठों में सबसे योग्य शिष्य को मठाधीश बनाने की परंपरा शुरु की थी, जो आज भी प्रचलित है, जो भी इन मठों का मठाधीश बनता है वह शंकराचार्य कहलाता है और अपने जीवनकाल में ही अपने सबसे योग्य शिष्य को उत्तराधिकारी बना देता है।


खास बात यह है कि संन्यास लेने के बाद दीक्षा लेने वालों के नाम के साथ दीक्षित विशेषण भी लगाने की परंपरा है, जिससे यह पता चलता हैं कि उक्त संन्यासी किस मठ से है और वेद की किस परम्परा का वाहक है। मठों में गुरु शिष्य परंपरा का निर्वहन होता है, पूरे भारत के संन्यासी जो अलग-अलग मठ से जुड़े होते हैं, वे इन्हीं मठों जाकर संन्यास की दीक्षा लेते हैं।



यहां विशेष नियमों, संकल्पों के निर्धारण के बाद योग्य संन्यासी को शंकराचार्य की पदवी दी जाती हैं, और शंकराचार्यों की पदवी लेन के बाद नवनियुकत शंकराचार्य सनातन धर्म के प्रचार प्रसार के लिए पूरी देव भूमि भारत का भ्रमण कर जनजागरण का अलख जगाते हैं तो चलिए आपको आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित मठों के बारे में बताते हैं।


ज्योतिर्मठ
ज्योतिर्मठ उत्तराखण्ड के बद्रिकाश्रम में है। ऐतिहासिक तौर पर ज्योतिर्मठ सदियों से वैदिक शिक्षा तथा ज्ञान का एक ऐसा केन्द्र रहा है जिसकी स्थापना 8वीं सदी में आदी शंकराचार्य ने की थी। ज्योतिर्मठ के तहत दीक्षा लेने वाले संन्यासियों के नाम के बाद 'गिरि', 'पर्वत' और 'सागर' विशेषण लगाया जाता है जिससे उन्हें उस संप्रदाय का संन्यासी माना जाता है। इसका महावाक्य 'अयमात्मा ब्रह्म' है। मठ के अंतर्गत अथर्व वेद को रखा गया है। इसके पहले मठाधीश आचार्य तोटक थे।



द्वारका मठ
द्वारका मठ को शारदा मठ के नाम से भी जाना जाता है। यह मठ गुजरात में द्वारका धाम में है। इसके तहत दीक्षा लेने वाले संन्यासियों के नाम के बाद 'तीर्थ' और 'आश्रम' सम्प्रदाय नाम विशेषण लगाया जाता है जिससे उन्हें उस संप्रदाय का संन्यासी माना जाता है। इस मठ का महावाक्य है 'तत्त्वमसि' और इसमें 'सामवेद' को रखा गया है। शारदा मठ के पहले मठाधीश हस्तामलक (पृथ्वीधर) थे। हस्तामलक आदि शंकराचार्य के प्रमुख चार शिष्यों में से एक थे।



गोवर्धन मठ
गोवर्धन मठ ओड़िशा के पुरी में है। गोवर्धन मठ का संबंध भगवान जगन्नाथ मंदिर से है। बिहार से लेकर राजमुंद्री तक और उड़ीसा से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक का भाग इस मठ के अंतर्गत आता है। गोवर्द्धन मठ के तहत दीक्षा लेने वाले संन्यासियों के नाम के बाद 'आरण्य' सम्प्रदाय नाम विशेषण लगाया जाता है जिससे उन्हें उस संप्रदाय का संन्यासी माना जाता है। इस मठ का महावाक्य है 'प्रज्ञानं ब्रह्म' और इस मठ के तहत 'ऋग्वेद' को रखा गया है। इस मठ के पहले मठाधीश आदि शंकराचार्य के पहले शिष्य पद्मपाद हुए थे।



श्रृंगेरी मठ
श्रृंगेरी शारदा पीठ भारत के दक्षिण में रामेश्वरम में स्थित है। श्रृंगेरी मठ कर्नाटक के सबसे प्रसिद्ध मठों में से एक है। इसके अलावा कर्नाटक में रामचन्द्रपुर मठ भी प्रसिद्ध है। इसके तहत दीक्षा लेने वाले संन्यासियों के नाम के बाद सरस्वती, भारती, पुरी सम्प्रदाय नाम विशेषण लगाया जाता है जिससे उन्हें उस संप्रदाय का संन्यासी माना जाता है। इस मठ का महावाक्य 'अहं ब्रह्मास्मि' है, मठ के तहत 'यजुर्वेद' को रखा गया है। इसके पहले मठाधीश आचार्य सुरेश्वर थे।