प्रयागराज. श्रृंगवेरपुर घाट पर दफनाए गए शवों की कब्रों से चुनरी व लकड़ियां हटाए जाने के मामले में गठित जांच कमेटी ने आज से अपना काम शुरू कर दिया है. कमेटी में शामिल दोनों अफसरों ने जांच के पहले दिन चुनरी और लकड़ियां हटाए जाने के मामले में सामने आए वीडियो व तस्वीरों की पड़ताल की. तस्वीरों के जरिए कब्रों से चुनरियां खींचते हुए लोगों की पहचान कर उनसे जानकारी जुटाने की कोशिश की जा रही है. जांच कमेटी में एडीएम प्रशासन और एसपी गंगापार को रखा गया है. दोनों अधिकारी मौके पर जाकर वहां का भी मुआयना करेंगे. उम्मीद जताई जा रही है कि जांच तीन से चार दिनों में पूरी हो जाएगी.


चुनरी हटाए जाने के बाद श्रृंगवेरपुर का शमशान घाट कब्रिस्तान में तब्दील होता दिख रहा है. आधे हिस्से में चुनरी व लकड़ियों के साथ दफन किए गए शवों की कब्रें नजर आ रही हैं. तो दूसरी तरफ कफन चोरों की वजह से सूनी हुई कब्रें दिखाई दे रही हैं. साफ कहा जा सकता है कि पहचान मिटाने की वजह से ही दफन किए गए शवों की कब्रों से चुनरियों को हटाया गया है. स्थानीय लोग बार-बार यह दावा कर रहे हैं शव दफनाने की परंपरा जरूर है, लेकिन पहली बार इतनी बड़ी संख्या में शवों को दफनाया गया है और इसके पीछे सबसे बड़ी वजह है आर्थिक समस्या है.


वहीं, श्रृंगवेरपुर घाट पर सरकारी अमले का खेल लगातार बरकरार हैं. पहले लापरवाही बरतते हुए बड़ी संख्या में शवों को दफनाने दिया गया और फिर कब्रों से चुनरी व लकड़ियां हटवा दी गई. अब श्रृंगवेरपुर घाट पर पक्की सड़क से गंगा के किनारे तक जाने वाले रास्ते पर बिछाई गई लोहे की चकर्ड प्लेट्स को हटा दिया जा रहा है. दरअसल, लोहे की चकर्ड प्लेट के जरिए तकरीबन 700 से 800 मीटर तक का सफर लोग किनारों तक लोग अपने वाहनों से तय कर लेते थे. पैदल आने वाले लोगों को भी सहूलियत होती थी, लेकिन अचानक चकर्ड प्लेट हटाए जाने का फैसला सवालों और विवादों के घेरे में है. 


प्रशासन की दलील
प्रशासन की तरफ से दलील यह दी जा रही है कि मानसून आने पर गंगा का जलस्तर बढ़ते ही पक्के घाट तक पानी आ जाता है. वहीं, स्थानीय लोगों का कहना है कि यहां बारिश का पानी जुलाई के दूसरे हफ्ते से पहले नहीं आता है. ऐसे में चकर्ड प्लेट को नहीं हटाया जाना चाहिए था और इससे इन्हें खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा.


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