चौथा लोकसभा चुनाव: जब पीएम इंदिरा गांधी को ही दिखा दिया था कांग्रेस ने बाहर का रास्ता
चौथे लोकसभा में कांग्रेस का ग्राफ तेजी से गिरा था। कांग्रेस केवल 283 सीटें जीत सकी थी, ये पहली बार था जब पार्टी 300 से कम सीटों पर सिमट कर रह गई थी। इसके बाद ही इंदिरा को पार्टी से निकाल दिया गया था और कांग्रेस ने बंटवारा देखा INC(O) और INC(R) के रूप में।
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चुनावी यादों से जुड़ा ये किस्सा देश के चौथे लोकसभा चुनाव से जुड़ा है। देश के चौथे लोकसभा चुनाव (1967) में कांग्रेस के ग्राफ में तेजी से गिरावट देखने को मिली। 1962 के आम चुनाव की तुलना में कांग्रेस को 70 सीटें कम हासिल हुईं। ये पहला मौका था जब चुनाव में कांग्रेस 300 के अंदर ही सिमट कर रह गई। इसके साथ ही, ये भी पहला मौका था जब कांग्रेस ने इंदिरा गांधी की सरपरस्ती में चुनाव लड़ा था।
नेहरू-शास्त्री नहीं रहे, इंदिरा-मोरारजी के बीच दिखी वर्चस्व की जंग
ये वो दौर था जब भारतीय राजनीति में अहम भूमिका अदा करने वाले देश के दो बड़े नेता और पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और लाल बहादुर शास्त्री का निधन हो चुका था। कांग्रेस के अंदर तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और उप प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के बीच वर्चस्व की जंग छिड़ी हुई थी। शास्त्री के निधन के बाद नेतृत्व को लेकर संषर्घ हुआ। हालांकि, सत्ता की बागडोर इंदिरा को सौंप दी गई। इस संघर्ष का परिणाम चुनाव के बाद पार्टी के विभाजन के रूप में देखने को मिला। आगे बढ़ने से पहले एक नजर डालते हैं, देश के चौथी लोकसभा चुनाव के स्वरूप पर...
चौथा लोकसभा चुनाव- कुल सीटें 520
बहुमत का आंकड़ा– 261 मतदाता संख्या- 25 करोड़ मतदान फीसदी- 61 % कुल महिला प्रत्याशी- 67 विजयी महिला प्रत्याशी- 29
चुनाव तारीख 17 फरवरी, 1967 से शुरू हुआ चुनाव 21 फरवरी, 1967 के बीच संपन्न हुए चुनाव
1967 चुनाव में किस-पार्टी का कैसा प्रदर्शन रहा
कांग्रेस- 282 सीटें स्वतंत्र पार्टी – 44 सीटें जनसंघ- 35 सीटें वामपंथी और समाजवादी पार्टी- 83 सीटें द्रमुक और अकाली दल- 28 सीटें संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी- 23 सीटें
कांग्रेस की लोकप्रियता घटी, ऐसे गिरा ग्राफ आजादी के बाद देश में जहां कांग्रेस की लहर थी, वही लहर चौथे लोकसभा चुनाव आते-आते थमती नजर आई। कांग्रेस की लोकप्रियता घटती दिखी। 1952 में हुए पहले लोकसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत हासिल कर कांग्रेस दिल्ली की गद्दी पर विराजमान हुई, लेकिन चौथे लोकसभा चुनाव में कांग्रेस केवल 40.78 फीसद मत हासिल कर सकी और महज 283 सीटों पर कब्जा जमाने में कामयाब रही।
- 1967 के आम चुनाव में (चौथे लोकसभा चुनाव) कांगेस को 1962 में हुए तीसरे चुनाव के मुकाबले 78 सीटें कम मिलीं।
- 1967 में छह राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में भी कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा।
- ये पहला मौका था जब कांग्रेस 300 से कम सीटें में सिमट कर रह गई।
जब कांग्रेस का हुआ बंटवारा 1967 के आम चुनाव में कांग्रेस को मिले मामूली बहुमत का नतीजा ये निकला कि इंदिरा को पार्टी से निकाल दिया गया और कांग्रेस को बंटवारे का दर्द झेलना पड़ा। दरअहस हुआ यूं, चौथे लोकसभा चुनाव में कांग्रेस महज 282 सीटें हासिल कर सकी, जो कि उस कांग्रेस के लिए बेहद साधारण सी जीत थी, जो पूर्ण बहुमत से जीतती आई थी। नतीजतन इंदिरा गांधी ने उस वक्त पार्टी के विपरीत कई ऐसे फैसले लिए, जिसके बाद माहौल ऐसा बन गया कि नवंबर 1969 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को ही पार्टी से निकाल दिया गया और पार्टी का विभाजन हो गया।
कांग्रेस (ओ) बनाम कांग्रेस (आर) पार्टी के विभाजन के बाद मोरारजी देसाई के नेतृत्व में कांग्रेस (ओ) और इंदिरा के नेतृत्व में कांग्रेस (आर) का गठन हुआ। हालांकि, कम्यूनिस्ट पार्टी के समर्थन से इंदिरा अल्पमत की सरकार चलाती रहीं और समय से एक साल पहले ही 1971 में नए चुनावों की घोषणा हो गई।
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