बलिया. बैरिया तहसील क्षेत्र का दलनछपरा गांव में कोविड ने एक परिवार के ही चार बच्चे अनाथ कर दिये. अब सात साल की उम्र में खेलने व पढ़ने की उम्र में अंकुश पर जिम्मेदारी आ गई है. अंकुश को कोविड से शिकार बनी अपनी मां की तेरहवीं भी करनी है और अपने मासूम तीन भाई व बहनों की परवरिश भी.


कोविड के कहर ने जिले में बहुतेरे परिवार के हंसते खेलते माहौल को तबाह कर दिया है. बिहार की सरहद से सटे जिला मुख्यालय से तकरीबन 50 किलोमीटर दूर स्थित दलनछपरा गांव के अंकुश के पिता संतोष पासवान की तीन साल पहले कैंसर के चलते मौत हो गई थी. पिछले दिनों अंकुश की मां पूनम देवी भी कोविड की शिकार हो गयी.


मां की असामयिक मृत्यु के बाद परिवार के काजल, रूबी, रेनू उर्फ सुबी और अंकुश अनाथ हो गए हैं. सात साल के अंकुश पर खेलने की उम्र में ही अपनी मां के श्राद्ध कर्म से लेकर परिवार की परवरिश तक की बड़ी जिम्मेदारी निभाने का बोझ अचानक आ गया है. अंकुश अब पारिवारिक जिम्मेदारियों का बोझ उठाने को तैयार है. इतनी मासूम उम्र में भी उसके हौसले बुलंद हैं. उसका कहना है कि हम लोगों से चंदा मांगकर अपनी आगे की पढ़ाई करेंगे और पुलिस बनेंगे. हालांकि अंकुश की बहनों का कहना है कि अब सब कुछ भगवान भरोसे है. वह कहती हैं कि अब हम लोग दूसरे के खेतों में मजदूरी कर गुजर बसर करेंगे.


दादी की विधवा पेंशन से होता है गुजारा
जिलाधिकारी अदिति सिंह से इस मामले में जिला प्रशासन के कदम को लेकर पूछा गया , लेकिन उन्होंने कोई जबाब नही दिया. हालांकि जिला प्रशासन द्वारा शाम को जारी बयान में बताया गया है कि चारों अनाथ बच्चों की परवरिश उनकी दादी फुलेश्वरी देवी विधवा पेंशन से मिलने वाली धनराशि से करती हैं. गौरतलब है कि प्रदेश में पात्र महिलाओं को प्रतिमाह विधवा पेंशन के रूप में महज 500 रुपए प्राप्त होते हैं.


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