Farm Laws Repeal: तीन कृषि कानूनों को वापस लेने के बाद एक डेड लॉक टूटा है और एक विरोध का अध्याय समाप्त हुआ है. लेकिन इस अध्याय के आगे एक और भी अध्याय है, जो पहले से बड़ी चुनौती है, जिसमें बीजेपी नेताओं को किसानों को ऐसा कुछ समझाना होगा जिससे किसान 2017 के विधानसभा चुनाव की तर्ज़ पर बीजेपी के साथ खड़ा हो जाये और फिर वहीं प्रचंड जनादेश देकर बीजेपी की यूपी और उत्तराखंड में सरकार बनवा दे. लेकिन ये काम इतना सहज है नहीं, जितना कहने सुनने में लगता है.
पंजाब, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में अगले वर्ष जनवरी फरवरी में विधानसभा चुनाव है. जानकार लोगों का मानना है कि केंद्र ने फैसला देर से लिया और ऐसे समय में लिया जब तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव सिर पर है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वो तीन कृषि कानून वापस लेने की घोषणा की है, जो कि एक साल से केंद्र समेत सभी बीजेपी सरकारों की नींद उड़ा दी थी. लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं हुई. असल चुनौती तो आगे है. किसानों का भरोसा जीतना, एक साल में आई कड़वाहट दूर करना, किसान और बीजेपी के बीच बनी खाई को पाटना और चुनाव में उनका समर्थन प्राप्त करना ही बीजेपी का अब असली इम्तिहान है. उत्तराखंड में बीजेपी संगठन और सरकार को एक ऐसी ठोस कार्य योजना तैयार करनी होगी, जिससे प्रधानमंत्री द्वारा कानून वापस लिए जाने के फैसले का चुनाव में फायदा उठाया जा सके.
उत्तराखंड में किसानों को कहां कहां साधना होगा?
देहरादून जिले की विकासनगर, सहसपुर, डोईवाला और ऋषिकेश, हरिद्वार जिले की 11 में से 10 (केवल हरिद्वार शहर छोड़कर), उधमसिंह नगर की नौ, नैनीताल जिले की रामनगर, कालाढूंगी, लालकुआं और हल्द्वानी विधानसभा को किसान प्रभावित करते हैं. इन सीटों की कुल संख्या 27 के आसपास बैठती है और सत्तर सीटों के प्रदेश में 27 सीटें प्रभावित होना मायने रखता है. बीजेपी को खासतौर पर देहरादून और नैनीताल के आधे आधे विधानसभा क्षेत्रों के अलावा हरिद्वार और उधमसिंह नगर जनपद के किसानों को साधना होगा. चूंकि कानून वापस होने के बावजूद किसान पत्ते खोलने की जल्दबाजी में नहीं दिख रहे हैं. इसलिए किसान कोई निर्णय ले इससे पहले बीजेपी संगठन को अपने ऐसे नेताओं को किसानों के बीच उतारना होगा जो उन्हीं के बीच से आते हैं. एक साल के आंदोलन के बाद किसानों का भरोसा जीतना और इतने कम समय में जीतना जिससे विधानसभा चुनाव में फायदा मिल जाए. यह बहुत मुश्किल काम लगता है.
क्या बोले मदन कौशिक
ये तीनों कानून किसानों की खुशहाली के लिए थे, लेकिन किसान तैयार नहीं हुए तो प्रधानमंत्री ने बड़ा दिल दिखाया और वापस ले लिए. अब हम किसानों के बीच जाएंगे और भाजपा ने हमेशा किसानों के हित का काम किया है और आज भी किसान भाजपा के साथ है इसके लिए अलग से कोई कार्य योजना बनाने की आवश्यकता नहीं है.
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