आगरा, नितिन उपाध्याय। आगरा के फतेहपुर सीकरी स्मारक भारतीय पुरातत्व विभाग की उपेक्षा की वजह से अपना वैभव खो रहा है। साल के पहले दिन फतेहपुर सीकरी स्मारक स्थित हजरत शेख सलीम चिश्ती की मजार की प्राचीन पेटिंग प्लास्टर समेत गिर पड़ी। इससे दरगाह के अंदर मौजूद जायरीनों और पर्यटकों में अफरा-तफरी मच गयी। आनन-फानन में पर्यटकों और जायरीनों को बाहर निकाला गया।


दोपहर में जैसे ही पेटिंग का हिस्सा गिरा इसकी जानकारी अधिकारियों को दी गई। अधिकारियों ने मलबे को हटवाकर सफाई कराई। बताया जा रहा है कि मजार की छत पिछले छह महीने से बीम बदले जाने के लिए खुली पड़ी है। एएसआई द्वारा पुनर्निर्माण के काम में बरती जा रही लापरवाही से इस बरसात में खुली छत से पानी दीवारों के अंदर भरता गया। 2019 के शुरुआत में मजार में चटके हुये मार्बल के दो बीमों को बदले जाने व छत की मरम्मत के लिये लगभग 76 लाख रुपये का एस्टीमेट बनाया गया। काम के लिए पूना की उत्तरा देवी चेरिटेबल ट्रस्ट ने धनराशि दी। जब तक ट्रस्ट द्वारा धनराशि मिलती रही, तब तक काम चलता रहा, अब काम ठप पड़ा हुआ है।



उसको लेकर शेख सलीम चिश्ती की मजार से जुडे सैफ मियां चिश्ती का कहना है कि पिछले 6 महीने से काम बंद पड़ा हुआ है। पानी और सीलन से यूनेस्को द्वारा संरक्षित फतेहपुर सीकरी स्मारक स्थित मज़ार अपना महत्व खो रही है। मजार के अंदर की पेंटिंग अब काफी भद्दी नजर आ रही है।



सैफ मियां चिश्ती आगे कहते हैं कि हमने ASI से कहा है कि आप अगर काम नहीं करवा रहे हैं, तो आप हमें अनुमति दे दें, तो वो काम हम लोग करवा देते हैं। ना वो अनुमति दे रहे हैं और ना ही काम पूरा करवा रहे हैं।


सज्जादानशीं रहीस मियां चिश्ती कहते है कि ASI की वजह से श्रद्धालु मज़ार की परिक्रमा नहीं कर पा रहे हैं। उनके मुताबिक संतान प्राप्ति के सभी उपाय असफल होने पर अकबर ने सूफी संत शेख सलीम चिश्‍ती से प्रार्थना की। इसके बाद बेटे का जन्म हुआ। खुश और उत्‍साहित अकबर ने यहां अपनी राजधानी बनाने का निश्‍चय किया। लेकिन यहां पानी की बहुत कमी थी इसलिए केवल 15 साल बाद ही राजधानी को दोबारा आगरा ले जाना पड़ा।



कुल मिलाकर भारतीय पुरातत्व विभाग की उपेक्षा से दुनिया में मानवता का संदेश देने वाले एक सूफी संत की दरगाह उपेक्षित पड़ी हुई है और पर्यटन की दृष्टि से भी ये उपेक्षा कई सवाल खड़े करती है