Agra News: आगरा (Agra) में तैनात अपर जिला और सत्र न्यायाधीश ज्ञानेंद्र त्रिपाठी ने एक लेटर मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. अरुण श्रीवास्तव को इस बाबत लिखा है कि महिलाओं के शव का पोस्टमार्टम महिला डॉक्टर और महिला पैरामेडिकल स्टाफ द्वारा ही किया जाए. उनके मुताबिक महिला के आबरू की रक्षा की जानी चाहिए. फिर चाहे मौत से पहले हो या मौत के बाद. जज ज्ञानेंद्र त्रिपाठी ने एक महिला अधिवक्ता प्रमिला शर्मा द्वारा लिखी गई चिट्ठी के क्रम में यह निर्देश मुख्य चिकित्साधिकारी को जारी किए हैं. 


जज ज्ञानेंद्र त्रिपाठी के मुताबिक पोस्टमार्टम के दौरान महिला की बॉडी के सारे कपड़े उतार कर पूरी प्रक्रिया अमल में लाई जाती है. इसलिए यह महिलाओं की आबरू के साथ खिलवाड़ है. जब जीते जी आबरू का ध्यान रखा जाता है तो मरने के बाद भी आबरू का उतना ही ध्यान रखा जाए. उनके मुताबिक सुप्रीम कोर्ट ने भी समय-समय पर माना है कि शव की भी अपनी गरिमा होती है. 


'महिला के शव का लेडी डॉक्टर ही करे पोस्टमॉर्टम'
इसको लेकर सचिव, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण ज्ञानेंद्र त्रिपाठी कहते हैं कि सर्वोच्च न्यायालय ने भी परमानंद कटारा वर्सेस यूनियन ऑफ इंडिया के केस में व्यवस्था दी है जिसमें गरिमापूर्ण जीवन जीने का अधिकार जीवित व्यक्तियों को ही प्राप्त नहीं है बल्कि यह मृत व्यक्तियों के संबंध में भी है. कोरोना काल में भी शवों के साथ अपमानजनक व्यवहार को लेकर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी एक विस्तृत दिशा निर्देश जारी किए थे. ऐसे में किसी व्यक्ति को जीवित रहते या मरने के उपरांत उसके शव का गरिमापूर्ण व्यवहार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मूल अधिकारों की श्रेणी में आता है.


वहीं इस मुद्दे की ओर ध्यानाकर्षित करने वाली अधिवक्ता और समाजसेवी प्रमिला शर्मा कहती हैं कि जिला स्तर पर पर्याप्त महिला स्टाफ रहता है और ऐसे में आसानी से महिला शव के पोस्टमार्टम के लिए महिला डॉक्टर और महिला स्टाफ आसानी से उपलब्ध हो सकता है. इस प्रक्रिया को अमल में लाए जाने से मरने के बाद भी महिला के गरिमा की रक्षा की जा सकेगी. वहीं इसको लेकर मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉक्टर अरुण श्रीवास्तव का कहना है कि जो निर्देश उनको प्राप्त हुए हैं, उसके क्रम में महिला शव का पोस्टमार्टम महिला डॉक्टर और स्टाफ द्वारा आगे से कराया जाए और इसके लिए व्यवस्था बनाई जायेगी.


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