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मौत की मॉकड्रिल चलाने वाले अरिंजय जैन पर डीएम प्रभु एन सिंह की कृपा खड़े कर रही है सवाल, सीएम योगी हैं नाराज 

आगरा मौत की मॉकड्रिल मामले में जिलाधिकारी आगरा प्रभु एन सिंह ने जो रिपोर्ट जारी की है उसमें अरिंजय जैन को पूरी तरह से क्लीन चिट दी है. रिपोर्ट पर अगर नजर डाली जाए तो ये साफ पता चलता है डीएम ने डॉ अरिंजय जैन के समर्थन में एक तरफा रिपोर्ट तैयार करवाई है. 

आगरा: 7 जून 2021 को एबीपी गंगा ने सबसे पहले ये खबर दिखाई थी कि श्री पारस अस्पताल के संचालक अरिंजय जैन ने खुद एक वीडियो में ये कबूल किया है कि 26 अप्रैल को सुबह सात बजे ऑक्सीजन की मारामारी के मद्देनजर 5 मिनट के लिए एक मॉकड्रिल की गई.  मॉकड्रिल को लेकर जो वीडियो सामने आया उसमें 22 मरीजों के छटने की बात डॉ अरिंजय जैन करता हुआ नजर आ रहा है.  वीडियो में अरिंजय जैन ये भी कहता हुआ नजर आ रहा है कितने लोग मरेंगे, कितने लोग जिएंगे इसलिए मैंने ये प्रयोग किया है और  पांच मिनट के भीतर ही 22 लोग नीले पड़ गए. 

डीएम की मंशा पर सवाल 
एबीपी गंगा की तरफ के इस खबर को प्रमुखता से दिखाए जाने के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर इस मामले में जिलाधिकारी ने मुकदमा दर्ज कर अस्पताल को सील कर दिया था. लेकिन, बीती रात जो रिपोर्ट सामने आई है उसने कहीं ना कहीं जिलाधकारी की मंशा पर ही गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं. 

अरिंजय जैन को दी गई क्लीन चिट
जिलाधिकारी आगरा ने जो रिपोर्ट जारी की है उसमें अरिंजय जैन को पूरी तरह से क्लीन चिट दी है. रिपोर्ट पर अगर नजर डाली जाए तो ये साफ पता चलता है जिलाधिकारी ने डॉ अरिंजय जैन के समर्थन में एक तरफा रिपोर्ट तैयार करवाई है. जिसमें भले ही 16 मरीजों की मौत को स्वीकार किया जा रहा है लेकिन फिर भी डॉक्टर को क्लीन चिट दी जा रही है. ऐसे में कई सवाल खड़े हो रहे हैं जो कही ना कहीं ये बताते हैं जिला अधिकारी प्रभु एन सिंह ने एड़ी चोटी का जोर लगाकर अरिंजय जैन को बचाने का प्रयास किया. 

श्री पारस अस्पताल पर डीए प्रभु एन सिंह की कृपा कई सवाल खड़े कर रही है. आप भी जानें कि ये सवाल क्या है. 

पहला सवाल ये है कि एबीपी गंगा पर खबर चलने के एक घंटे के भीतर ही डीएम ने बिना जांच किए ऑक्सीजन की कमी ना होने का बयान कैसे दे दिया?

दूसरा सवाल ये है कि डीएम के मुताबिक 26 को 4 और 27 को 3 लोगों की मौत हुई हैं. बाद में रिपोर्ट में भी 16 मौतों का जिक्र है. लेकिन, जांच रिपोर्ट में पीड़ितों के बयानों को कोई अहमियत नहीं दी गई?  

तीसरा सवाल ये है कि वीडियो में 96 मरीजों के भर्ती होने का जिक्र है, तो क्यों 96 मरीजों का डेटा सार्वजनिक नहीं किया गया? 

चौथा सवाल ये है कि 26 और 27 अप्रैल के दरम्यान अस्पताल की CCTV फुटेज प्रशासन के पास है. आखिर उसे क्यों नहीं सार्वजनिक किया जा रहा है?

सवाल ये भी है कि पीड़ितों के बयान, उनकी WhatsApp चैट और सीएम हेल्पलाइन पर मांगी गई मदद और मीडिया में दिए गए बयानों का क्यों संज्ञान नहीं लिया गया? 

छठा सवाल है ये है कि जब पारस अस्पताल डेडिकेटेड कोविड हॉस्पिटल था तो उसमें दूसरी बीमारियों से ग्रसित मरीजों को क्यों भर्ती किया गया. दूसरी अन्य बीमारियों से मौत की बात कही जा रही है जबकि परिजन चिल्ला-चिल्लाकर कह रहे थे कि उन्होंने मरीज को  कोविड या पोस्ट कोविड ट्रीटमेंट के लिए अस्पताल में भर्ती कराया था?

सवाल ये भी है कि अरिंजय जैन का वीडियो में किया गया कबूलनामा है कि 5 मिनट ऑक्सीजन रोकी तो ये पूछा जा सकता है कि किस अधिकार से ऑक्सीजन की सप्लाई रोकी गई. क्या सीएमओ से परमिशन ली गई थी या डीएम से?

आठवां सवाल ये है कि अगर ऑक्सीजन की कमी नहीं थी तो तमाम अस्पतालों ने ऑक्सीजन खत्म हो गई है, इसके नोटिस बोर्ड क्यों लगाए थे?

सवाल ये भी है कि क्यों जिलाधिकारी रात में लोअर टी शर्ट में ऑक्सीजन कैप्सूल रिसीव करने पहुंचे थे?

दसवां सवाल ये है कि क्या अपनी गर्दन बचाने के चक्कर में 22 लोगों की मौत की एकतरफा रिपोर्ट बनाई गई है? 

सवाल ये भी है कि मामले की लीपापोती करने के लिए ही क्या चुपचाप बिना मीडिया को जानकारी दिए ACS स्वास्थ्य अमित मोहन प्रसाद आगरा आए थे?

बारहवां सवाल ये है कि जब ADA ने आवासीय भवन में संचालित हो रहे पारस अस्पताल को नोटिस जारी किया तो जिलाधिकारी प्रभु एन सिंह की "संजय दृष्टि" पीड़ितों के जख्मों पर नमक क्यों छिड़क रही है?

पिछले साल अस्पताल को लेकर 11 जिलों के डीएम को चिट्ठी लिखने वाले जिलाधिकारी अपनी गर्दन फंसते ही बचाव की मुद्रा में है. ये सवाल अपने आप में गंभीर है.

CBI जांच की मांग 
इस पूरे मामले में दी गई क्लीन चिट पर पीड़ितों का कहना है कि वो इस मामले मैं CBI जांच चाहते हैं और मामले को लेकर हाईकोर्ट तक जाएंगे. वहीं, बढ़ते आक्रोश के मद्देनजर आगरा के जनप्रतिनिधियों ने सीएम योगी आदित्यनाथ से मिलकर पूरे मामले से अवगत कराने की बात कही है. 

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