नई दिल्ली, एबीपी गंगा। कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन अहोई अष्टमी के व्रत का खास महत्व है। संतान के सुख और आयु वृद्धि की कामना कर माताएं इस दिन व्रत रखती हैं। इस बार अहोई अष्टमी का व्रत 21 अक्टूबर को पड़ रहा है।


व्रत में मां पार्वती की पूजा की जाती है क्योंकि माना जाता है कि माता पार्वती संतान की रक्षा करने वाली हैं। व्रत रखने और उनकी पूजा करने से मां का आशीर्वाद मिलता है। संतान की सलामती से जुड़े इस व्रत का खास महत्व है। इस पूजा में महिलाएं तारों को देखकर व्रत खोलती हैं।


अहोई अष्टमी को कालाष्टमी भी कहते हैं। इस दिन मथुरा के राधा कुंड में लाखों श्रद्धालु स्नान करने के लिए पहुंचते हैं। अहोई अष्टमी का व्रत करवा चौथ के चार दिन बाद और दिवाली से आठ दिन पहले रखा जाता है। इस व्रत में महिलाएं चांदी की अहोई बनाकर उसकी पूजा करती हैं। इसमें चांदी के मनके डाले जाते हैं और हर व्रत में इनकी एक संख्या बढ़ाती जाती है।


पूजा के लिए आठ कोष्ठक की एक पुतली बनाई जाती है तथा उसके बच्चों की आकृतियां बना दी जाती हैं। सायं काल या कहें प्रदोष काल में उसकी पूजा की जाती है। इस बार इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग है। चंद्रमा- पुष्य नक्षत्र योग -साध्य सर्वार्थ सिद्धि योग- शाम 5 बजकर 33 मिनट से अगले दिन 6 बजकर 22 मिनट तक अहोई अष्टमी के दिन चंद्रमा पुष्य नक्षत्र में रहेगा। जो संतान के बहुत ही उत्तम है।


तारों के उदय होने का समय- शाम 6 बजकर 10 मिनट


पूजा मुहूर्त शाम 5 बजकर 46 मिनट से 7 बजकर 2 मिनट तक



इन बातों का रखें ख्याल


अहोई अष्टमी के दिन अहोई माता से पहले गणेश जी की पूजा करें
अहोई अष्टमी के दिन तारों को अर्घ्य देते हैं। तारों के निकलने के बाद ही अपने उपवास को तोड़ें।
अहोई अष्टमी के दिन व्रत कथा सुनते समय 7 तरह के अनाज अपने हाथ में रखें। पूजा के बाद इस अनाज को किसी गाय को खिला दें।
अहोई अष्टमी के दिन पूजा करते समय बच्चों को अपने पास बिठाएं और अहोई माता को भोग लगाने के बाद वो प्रसाद अपने बच्चों को जरूर खिलाएं।