पुत्र की दीर्घायु और उसके कल्याण के लिये माताएं अहोई अष्टमी का व्रत रखती हैं। निर्जला व्रत रहकर चंद्रमा और तारामंडल के दर्शन करने के बाद माताएं अपना व्रत खोलती हैं। कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष अष्टमी को अहोई माता का व्रत रखा जाता है। इस दिन अहोई माता की पूजा की जाती है। अहोई व्रत रखकर माताएं अपनी संतान की रक्षा और दीर्घायु के लिए प्रार्थना करती हैं। जिन लोगों को संतान सुख प्राप्त नहीं है उनके लिए यह व्रत विशेष रूप से फलदायी है। अहोई के दिन विशेष उपाय करने से संतान की उन्नति और कल्याण का मार्ग प्रशस्त्र होगा।


इस बार अहोई अष्टमी के दिन चंद्रमा पुण्य नक्षत्र में रहेगा। इस दिन साध्य योग और सर्वाथ सिद्धि योग बन रहा है। इस कारण अहोई अष्टमी की पूजा का समय और भी ज्यादा विशेष बन रहा है। 21 अक्तूबर को शाम पांच बजकर 42 मिनट से शाम छह बजकर 59 मिनट तक पूजा का शुभ मुहुर्त रहेगा। इस मुहुर्त में माताएं अहोई अष्टमी की पूजा करें। इसके साथ ही इस दिन अभिजीत मुहुर्त और अमृत काल मुहुर्त होने के कारण पूजा का शुभ फल प्राप्त होगा।


पूजन के लिए दीवार पर अहोई माता की तस्वीर बनाई जाती है। फिर रोली, चावल और दूध से पूजन किया जाता है। इसके बाद कलश में जल भरकर माताएं अहोई अष्टमी कथा सुनती हैं। इसके बाद रात में तारों को अर्घ्य देकर संतान की लंबी उम्र और सुखदायी जीवन की कामना करने के बाद अन्न ग्रहण करती हैं।