Lucknow News: उत्तर प्रदेश में मुस्लिम वोटों (Muslim Vote) को अपनी ओर खींचने में लगी सपा, बसपा अब माफिया अतीक अहमद (Atiq Ahmed) के सहारे इसे अपनी ओर मोड़ने में जुट गए हैं. इसीलिए दोनों दलों ने अपने अपने तरीके से मुस्लिम वोटरों को साधने के लिए उन पर अपना रुख नरम कर रखा है. राजू पाल हत्याकांड के मुख्य गवाह उमेश पाल और उनके दो सरकारी गनर की सरेआम हत्या के मामले में अतीक अहमद के नाबालिग बेटों के बचाव में समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव समाने आए हैं.


सपा के महासचिव राम गोपाल यादव ने कहा कि पुलिस को प्रयागराज की घटना में असली आरोपी नहीं मिल रहे हैं. उन पर दबाव है कि किसी को भी पकड़कर मार डालो. उन्होंने कहा कि अतीक अहमद के पढ़ने वाले दो लड़कों को तो पहले दिन ही पकड़ लिया गया था. आशंका है उनमें से एक की हत्या हो सकती है. उन्होंने कहा कि संविधान जीने देने का मौलिक अधिकार देता है. किसी का जीवन आप ले नहीं सकते. विधि सम्मत तरीके के अलावा कोई और दूसरा रास्ता नहीं है. पुलिस पकड़ ले और फिर एनकाउंटर करे तो यह दंडनीय अपराध है. आज नहीं तो कल दूसरी व्यवस्था बनेगी. जो लोग फर्जी एनकाउंटर कर रहे हैं उन पर हत्या का मुकदमा कायम होगा. उमेश पाल हत्याकांड के दोषियों को कड़ी सजा मिलनी चाहिए. लेकिन जिस तरीके से सरकार काम कर रही है वह नीतियां विध्वंसकारी हैं.


सपा मुस्लिम वोट बैंक को किसी कीमत पर खोना नहीं चाहती
सपा के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि विधानसभा चुनाव में विपक्ष के सबसे बड़े दल के रूप में उभरी समाजवादी पार्टी इस वोट बैंक को किसी कीमत पर खोना नहीं चाहती है. प्रदेश में मुस्लिम वोट बैंक ने ही साइकिल की रफ्तार बढ़ाई है और उसे मजबूत विपक्ष के रूप में खड़ा करने में इस समुदाय का बड़ा योगदान है. 2017 के चुनाव में 24 मुस्लिम विधायक चुने गए थे, जिनमें 17 सपा के टिकट पर चुनाव जीते थे. इस बार मुस्लिम वोट बैंक ने अपनी भागीदार बढ़ाई है और कुल 34 मुस्लिम विधायक चुने गए हैं, जिनमें 31 सपा के खाते में हैं.


उधर बसपा प्रमुख ने भी एनकाउंटर पर सवाल उठाते हुए कहा कि उमेश पाल हत्याकांड के बाद इस संबंध में काफी आपाधापी में अब तक की गई पुलिस कार्रवाई जो जनता के सामने आई है, उससे लोगों में यूपी में कानून के राज के प्रति भारी संदेह है कि क्या सरकार अपनी विफलताओं पर पर्दा डालने के लिए दूसरा 'विकास दूबे काण्ड' करेगी? उन्होंने कहा कि राजू पाल हत्याकांड के गवाह उमेश पाल की दिन दहाड़े हुई हत्या को लेकर यूपी सरकार खासकर कानून व्यवस्था को लेकर काफी तनाव व दबाव में है. पूरा देश देख रहा है कि क्या सरकार कानून के राज पर अमल करेगी या अपराधियों को सड़क पर समाप्त करके अपराध रोकेगी?


बसपा के एक नेता ने बताया कि मायावती पिछले लोकसभा चुनाव की तरह सपा से गठबंधन न होने पर भी दलित-मुस्लिम के मजबूत गठजोड़ के जरिए अकेले ही बेहतर प्रदर्शन कर सकती हैं. मायावती जानती हैं कि सिर्फ दलितों के दम पर बेहतर नतीजे नहीं हासिल किए जा सकते, इसलिए विधानसभा चुनाव में लगे झटके के बाद से ही बसपा प्रमुख मुस्लिम समाज को फिर पार्टी से जोड़ने की कोशिश में जुटी हैं.


विधानसभा चुनाव में बसपा एक सीट पर सिमट कर रह गई
दरअसल, विधानसभा चुनाव में बसपा को एक सीट और 13 प्रतिशत वोट बैंक पर ही सिमट कर रह गई थी. इस बीच साल 2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा के 10 सांसद तब जीते थे जब सपा से गठबंधन था. उससे पहले साल 2014 के लोकसभा चुनाव में तो पार्टी शून्य पर पहुंच गई थी. विधानसभा चुनाव में बसपा के खराब प्रदर्शन के पीछे का एक बड़ा कारण मुस्लिमों का एकतरफा सपा को वोट देना माना गया. मुस्लिमों को 89 टिकट देने के बाद भी उनमें कोई नहीं जीता.


मुस्लिम सियासत को लेकर नए समीकरण बनने लगे हैं
सियासी जानकारों की मानें तो यूपी में मुस्लिम वोटबैंक 2022 के विधानसभा चुनाव में थोक के भाव में सपा को मिला था लेकिन वो सरकार नहीं बना सके. अब वह इसे सहेजने में जुटे हैं इसीलिए वह इस प्रकार के बयान दे रहे. बसपा मुखिया ने भी इस वोट बैंक को अपने पाले में लाने के लिए तरह तरह के जतन कर रही. इसके लिए उन्होंने तमाम मुस्लिम नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल किया. जिससे उन्हें इनका हिमायती माना जाए. पहले पूर्वी उत्तर प्रदेश से शाह आलम उर्फ गुड्डी जमाली और अब पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति में दखल रखने वाले इमरान मसूद को साथ लेकर मायावती एक बार फिर मुस्लिम समाज में बसपा की पैठ बनाने में जुट गईं हैं. लोकसभा चुनाव 2024 की तैयारी शुरू होते ही प्रदेश में मुस्लिम सियासत को लेकर नए समीकरण बनने लगे हैं. ऐसे में विपक्षी दलों को नए सिरे से रणनीति बनाते हुए कैडर वोट बैंक को बचाए रखना होगा. साथ ही नया वोटबैंक जोड़ने की रणनीति अपनानी होगी.


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भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता अवनीश त्यागी कहते हैं कि अपराधियों को राजनीतिक चोला पहनाने का काम सपा बसपा ने किया है. इनको जनता से कोई लेना देना नहीं हैं. यह दोनों पार्टियां माफियाओं के पोषक रहे हैं. इसीलिए इन अपराधियों पर सरकार कार्यवाही कर रही विपक्षी दलों के पेट में दर्द हो रहा है.


अखिलेश अतीक को पसंद नहीं करते हैं- राजनीतिक विश्लेषक
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक योगेश मिश्रा कहते हैं कि सपा और बसपा ने अपराधियों को लेकर इन लोगों ने अपना साम्राज्य खड़ा किया. कोई भी यूपी का बड़ा अपराधी ऐसा नहीं है जो इन दलों में न रहा हो. इन्हें अपराधियों का मोह है. अतीक के लिए मायावती बयान दे रहीं हैं. रामगोपाल पार्टी लाइन से अलग हटकर बयान दे रहे हैं. रामगोपाल जानते हैं कि ऐसे तत्वों को अखिलेश पसंद नहीं करते. अखिलेश का जब शिवपाल से झगड़ा हुआ था तो वो मुख्तार को अपनी पार्टी में शामिल करने को लेकर था. उन्होंने डीपी यादव को बाहर का रास्ता दिखाया था. अखिलेश अतीक को पसंद नहीं करते हैं. बावजूद इसके मायावती और राम गोपाल साथ खड़े रहे. इनकी व्यक्तिगत रुचि है. इसके अलावा अल्पसंख्यक वोट इनके टारगेट में हमेशा ही रहता है.