Didarganj Assembly Seat: आजमगढ़ (Azamgarh) की दीदारगंज सीट साल 2008 में परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई थी. इस सीट पर अब तक दो बार चुनाव हो चुका है. वैसे तो इस सीट पर सपा-बसपा के बीच जोरदार टक्कर देखने को मिलती हैं, लेकिन इस बार इस सीट पर चुनावी घमासान काफी दिलचस्प हो गया है और उसकी वजह है अखिलेश यादव (Akhliesh Yadav) का एक कदम और यहां का सियासी समीकरण. सपा ने इस सीट पर कमलाकांत राजभर (Kamalakant Rajbhar) को मैदान में उतारा है लेकिन उलेमा काउंसिल ने इस सीट पर हुजैफा आमिर को उतार दिया है. मुस्लिम कैंडिडेट की एंट्री से यहां का मुकाबला बेहद मुश्किल नजर आ रहा है.


दीदारगंज विधानसभा का इतिहास


2007 तक दीदारगंज सीट का ज्यादातर हिस्सा सरायमीर सुरक्षित विधानसभा क्षेत्र में आता था. लेकिन परिसीमन के दौरान इस सीट का गठन हुआ और 2012 में पहली बार यहां विधानसभा चुनाव हुआ. इस चुनाव में समाजवादी पार्टी के आदिल शेख विधायक चुने गए. 2017 में समाजवादी पार्टी ने फिर से आदिल शेख को अपना प्रत्याशी बनाया लेकिन बसपा के कद्दावर नेता सुखदेव राजभर ने उन्हें हरा दिया. 2017 में सुखदेव राजभर यहां से विधायक चुने गए लेकिन धीरे-धीरे उनकी दूरी बसपा से होने लगी और वो अखिलेश यादव के करीब आ गए पर उन्होंने समाजवादी पार्टी  नहीं ज्वाइन की. इसी बीच उनकी तबियत खराब रहने लगी. उन्होंने अपनी बीमारी के दौरान अखिलेश यादव को एक मार्मिक पत्र लिखा और कहा कि वो अपने पुत्र कमलाकांत राजभर को उनके हवाले कर रहे हैं. 


सपा ने कमलाकांत राजभर को दिया टिकट

इसके कुछ दिनों बाद सुखदेव राजभर का देहांत हो गया. अखिलेश यादव उनके घर शोक संवेदना प्रकट करने भी पहुंचे थे, तभी से ये अटकल लग रही थी कि दीदारगंज में समाजवादी पार्टी कोई नया चेहरा ला सकती है और हुआ ऐसा ही समाजवादी पार्टी ने 2012 में चुने गए विधायक एवं 2017 में प्रत्याशी रहे आदिल शेख को टिकट न देकर बसपा के कद्दावर नेता सुखदेव राजभर के बेटे कमलाकांत राजभर को प्रत्याशी बनाया. अखिलेश के इस कदम से आदिल सेख समेत पार्टी के कई कार्यकर्ताओं में नाराजगी देखने को मिली. 

 

अखिलेश के इस कदम से नाराज कार्यकर्ता

सपा का मुस्लिम चेहरा कहे जाने वाले अबू आसिम आजमी ने भी आदिल शेख को टिकट देने की काफी वकालत की लेकिन जब बात नहीं बनी तो वो नाराज होकर मुंबई चले गए. उन्होंने सपा के चुनाव प्रचार से दूरी बना ली है. 2 चरणों का मतदान हो जाने के बाद भी वो चुनाव प्रचार में कहीं नहीं दिखे जबकि चुनाव की घोषणा से पहले उन्होंने कई यात्राएं निकाली थीं. आदिल शेख की नाराजगी सपा को भारी पड़ सकती है क्योंकि इस सीट पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं. 

 

मुस्लिम मतदाताओं की निर्णायक भूमिका

दीदार गंज सीट के सियासी समीकरण की बात करें तो इस सीट पर लगभग 341000 मतदाता है, जिसमें 80000 मुस्लिम वोटर्स हैं. इसी को देखते हुए 2008 में बटला हाउस एनकाउंटर के बाद उलेमा काउंसिल सामाजिक संगठन के रूप में अस्तित्व में आई और 2009 के लोकसभा चुनाव में राजनीतिक दल के रूप में परिवर्तित हो गई. उलेमा काउंसिल ने इस सीट से अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय छात्र संघ के सेक्रेटरी रहे हुजैफा आमिर को अपना प्रत्याशी बनाया है, जिससे वो सपा के मुस्लिम वोट बैंक में सेंध लगा सकते हैं. 

 

उलेमा काउंसिल ने बढ़ाई सपा की मुश्किल

भारतीय जनता पार्टी ने यहां से अपने पूर्व प्रत्याशी  कृष्ण मुरारी विश्वकर्मा को प्रत्याशी बनाया है, जबकि बीएसपी से भूपेन्द्र सिंह मुन्ना को मैदान में उतारा गया है. सपा-बसपा और भाजपा तीनों के हिन्दू कैंडिडेट हैं. मुस्लिम बहुल इस इलाके में उलेमा काउंसिल के ओजैफ आमिर की इंट्री ने दीदारगंज विधानसभा सीट  पर चुनाव को रोचक बना दिया है.