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'BJP वाले राज्यसभा को भी भंग करने की मांग करेंगे, भंग करके तुरंत चुनाव कराइए'- अखिलेश यादव

समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने कहा है कि ‘एक देश-एक चुनाव’ का फैसला सच्चे लोकतंत्र के लिए घातक साबित होगा. ये देश के संघीय ढांचे पर भी एक बड़ी चोट करेगा.

UP News: संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान मंगलवार को लोकसभा में वन नेशन वन इलेक्शन बिल पेश किया जाएगा. इस बिल को पेश किए जाने के पहले समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव ने प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने सोशल मीडिया के जरिए लिखा, 'लोकतंत्र के सभी सच्चे पक्षधरों से अपील'. इसके बाद उन्होंने लिखा, '‘एक देश-एक चुनाव’ के संदर्भ में जन-जागरण के लिए आपसे कुछ ज़रूरी बातें साझा कर रहा हूँ. इन सब बिंदुओं को ध्यान से पढ़िएगा क्योंकि इनका बहुत गहरा संबंध हमारे देश, प्रदेश, समाज, परिवार और हर एक व्यक्ति के वर्तमान और  भविष्य से है.'

अखिलेश यादव ने लिखा, 'लोकतांत्रिक संदर्भों में ‘एक’ शब्द ही अलोकतांत्रिक है. लोकतंत्र बहुलता का पक्षधर होता है. ‘एक’ की भावना में दूसरे के लिए स्थान नहीं होता. जिससे सामाजिक सहनशीलता का हनन होता है. व्यक्तिगत स्तर पर ‘एक’ का भाव, अहंकार को जन्म देता है और सत्ता को तानाशाही बना देता है.' उन्होंने आगे लिखा, '‘एक देश-एक चुनाव’ का फैसला सच्चे लोकतंत्र के लिए घातक साबित होगा. ये देश के संघीय ढांचे पर भी एक बड़ी चोट करेगा. इससे क्षेत्रीय मुद्दों का महत्व खत्म हो जाएगा और जनता उन बड़े दिखावटी मुद्दों के मायाजाल में फंसकर रह जाएगी, जिन तक उनकी पहुंच ही नहीं है.'

व्यवस्था को ही पलटने का षड्यंत्र- सपा
सपा प्रमुख ने आगे लिखा, 'हमारे देश में जब राज्य बनाए गये तो ये माना गया कि एक तरह की भौगोलिक, भाषाई और उप सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के क्षेत्रों को ‘राज्य’ की एक इकाई के रूप में चिन्हित किया जाए. इसके पीछे की सोच ये थी कि ऐसे क्षेत्रों की समस्याएं और अपेक्षाएं एक सी होती हैं, इसीलिए इन्हें एक मानकर नीचे-से-ऊपर की ओर ग्राम, विधानसभा, लोकसभा और राज्यसभा के स्तर तक जन प्रतिनिधि बनाएं जाएं. इसके मूल में स्थानीय से लेकर क्षेत्रीय सरोकार सबसे ऊपर थे. ‘एक देश-एक चुनाव’ का विचार इस लोकतांत्रिक व्यवस्था को ही पलटने का षड्यंत्र है.'

उन्होंने आगे कहा, 'एक तरह से ये संविधान को खत्म करने का एक और षड्यंत्र भी है. इससे राज्यों का महत्व भी घटेगा और राज्यसभा का भी. कल को ये भाजपा वाले राज्यसभा को भी भंग करने की माँग करेंगे और अपनी तानाशाही लाने के लिए नया नारा देंगे ‘एक देश-एक सभा’. जबकि सच्चाई ये है कि हमारे यहाँ राज्य को मूल मानते हुए ही ‘राज्यसभा’ की निरंतरता का सांविधानिक प्रावधान है. लोकसभा तो पांच वर्ष तक की समयावधि के लिए होती है.'

पूर्व सीएम ने लिखा, 'ऐसा होने से लोकतंत्र की जगह एकतंत्रीय व्यवस्था जन्म लेगी, जिससे देश तानाशाही की ओर जाएगा. दिखावटी चुनाव केवल सत्ता पाने का जरिया बनकर रह जाएगा.' उन्होंने कहा, 'अगर भाजपाइयों को  लगता है कि ‘ONE NATION, ONE ELECTION’ अच्छी बात है तो फिर देर किस बात की, केंद्र व सभी राज्यों की सरकारें भंग करके तुरंत चुनाव कराइए. दरअसल ये भी ‘नारी शक्ति वंदन’ की तरह एक जुमला ही है.'

देश की एकता को खंडित कर रहे- अखिलेश यादव
कन्नौज सांसद ने लिखा, 'ये जुमला भाजपा की दो विरोधाभासी बातों से बना है. जिसमें कथनी-करनी का भेद है. भाजपावाले एक तरफ ‘एक देश’ की बात तो करते हैं, पर देश की एकता को खंडित कर रहे हैं, बिना एकता के ‘एक देश’ कहना व्यर्थ है; दूसरी तरफ़ ये जब ‘एक चुनाव’ की बात करते हैं तो उसमें भी विरोधाभास है, दरअसल ये ‘एक को चुनने’ की बात करते हैं. जो लोकतांत्रिक परंपरा के खिलाफ़ है.'

अखिलेश यादव ने आगे लिखा, 'क्या ‘एक देश, एक चुनाव’ का मुद्दा महंगाई, बेरोजगारी, बेकारी, बीमारी से बड़ा मुद्दा है जो भाजपाई इसे उठा रहे हैं. दरअसल भाजपा इन बड़े मुद्दों से ध्यान भटका रही है. जनता सब समझ रही है.' उन्होंने लिखा, 'सच तो ये है कि BJP को सोते-जागते सिर्फ़ चुनाव दिखाई देता है, और ये सोचते हैं कि किस तिकड़म से परिणाम इनके पक्ष में दिखाई दे. ये हर बार जुगाड़ से चुनाव जीतते हैं. इसीलिए चाहते हैं कि एक साथ जुगाड़ करें और सत्ता में बने रहें.'

सपा प्रमुख ने अपने पोस्ट में लिखा, 'अगर ‘वन नेशन, वन नेशन’ सिद्धांत के रूप में है तो कृपया स्पष्ट किया जाए कि प्रधान से लेकर प्रधानमंत्री तक के सभी ग्राम, टाउन, नगर निकायों के चुनाव भी साथ ही होंगे या फिर त्योहारों और मौसम के बहाने सरकार की हार-जीत की व्यवस्था बनाने के लिए अपनी सुविधानुसार?' उन्होंने कहा, 'भाजपा जब बीच में किसी राज्य की चयनित सरकार गिरवाएगी तो क्या पूरे देश के चुनाव फिर से होंगे?'

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पूरे देश में फिर से चुनाव होगा- सपा प्रमुख
उन्होंने कहा, 'किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू होने पर क्या जनता की चुनी सरकार को वापस आने के लिए अगले आम चुनावों तक का इंतजार करना पड़ेगा या फिर पूरे देश में फिर से चुनाव होगा?' आगे कहा, '‘एक देश-एक चुनाव’ को लागू करने के लिए जो सांविधानिक संशोधन करने होंगे उनकी कोई समय सीमा निर्धारित की गयी है या ये भी महिला आरक्षण की तरह भविष्य के ठंडे बस्ते में डालने के लिए उछाला गया एक जुमला भर है?'

अपने पोस्ट में पूर्व सीएम ने लिखा, 'कहीं ‘एक देश-एक चुनाव’ की ये योजना चुनावों का निजीकरण करके परिणाम बदलने की साज़िश तो नहीं है? ऐसी आशंका इसलिए जन्म ले रही है क्योंकि कल को सरकार ये कहेगी कि इतने बड़े स्तर पर चुनाव कराने के लिए उसके पास मानवीय व अन्य ज़रूरी संसाधन ही नहीं हैं, इसीलिए हम चुनाव कराने का काम भी (अपने लोगों को) ठेके पर दे रहे हैं.'

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