दिल्ली की लड़ाई की तैयारी में जुटे अखिलेश यादव ने लंबे इंतजार के बाद समाजवादी पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की घोषणा कर दी है. सपा ने शिवपाल यादव, स्वामी प्रसाद मौर्य समेत 15 दिग्गजों को राष्ट्रीय महासचिव नियुक्त किया है. सपा संविधान के मुताबिक महासचिव पार्टी के नीतियों को धरातल पर उतारने का काम करते हैं. 


सपा के राष्ट्रीय महासचिव की लिस्ट में जहां एक ओर आजम खान, विशम्भर प्रसाद निषाद जैसे दिग्गज पुराने नेता शामिल हैं. वहीं 6 ऐसे नेताओं को भी पार्टी ने महासचिव बनाया है, जो हाल-फिलहाल में सपा में शामिल हुए थे. इनमें राम अचल राजभर, स्वामी प्रसाद मौर्य, सलीम शेरवानी, हरेंद्र मल्लिक और लालजी वर्मा का नाम प्रमुख हैं.


सपा की इस रणनीति के पीछे 2022 का 'कौशांबी मॉडल' बताया जा रहा है. अखिलेश 2022 के ही रणनीति को अपना कर 2024 में 16 सीटों पर खेल करने स्ट्रैटजी पर काम कर रहे हैं. 


सपा का 'कौशांबी मॉडल' क्या है?
उत्तर प्रदेश के कौशांबी जिले में सिराथू, चायल और मझनपुर विधानसभा सीटें हैं. 2017 के चुनाव में बीजेपी ने यहां एकतरफा जीत हासिल की थी. 2019 में यहां से बसपा के दिग्गज इंद्रजीत सरोज ने सपा का दामन थाम लिया.


अखिलेश यादव ने सरोज को राष्ट्रीय महासचिव की जिम्मेदारी सौंपते हुए जिले की सभी सीटों का प्रभार भी सौंप दिया. अखिलेश की यह रणनीति 2022 में काम कर गई और सपा को कौशांबी की तीनों सीट पर जीत मिली. 


सिराथू से कद्दावर नेता और डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य भी चुनाव हार गए. पहली बार चुनाव लड़ रहीं पल्लवी पटेल ने उन्हें 7,337 वोटों से हराया. विधानसभा में अखिलेश यादव ने कौशांबी मॉडल का जिक्र करते हुए केशव मौर्य पर निशाना भी साधा था. 


6 दलबदलू, जिन्हें सपा ने राष्ट्रीय महासचिव बनाया


1. स्वामी प्रसाद मौर्य- मायावती और योगी सरकार में मंत्री रहे स्वामी प्रसाद मौर्य यूपी चुनाव 2022 से ऐन पहले सपा में शामिल हुए थे. यूपी पॉलिटिक्स में स्वामी प्रसाद की गिनती मौर्य जाति के सबसे बड़े नेताओं में होती है. यूपी में यादव के बाद ओबीसी जाति में मौर्य की आबादी सबसे अधिक है.


मौर्य की बेटी संघमित्रा मौर्य अभी बदायूं से बीजेपी की सांसद हैं. लोकसभा की 3 सीटें बदायूं, कुशीनगर और प्रतापगढ़ सीट पर स्वामी प्रसाद मौर्य का दबदबा है. प्रतापगढ़ जिले के रहने वाले स्वामी प्रसाद कुशीनगर के पडरौना से विधायक रह चुके हैं.


स्वामी प्रसाद मौर्य बसपा में प्रदेश अध्यक्ष और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी भी संभाल चुके हैं. ऐसे में उन्हें विपक्ष की लड़ाई का भी अनुभव है. राजनीतिक विश्लेषकों की माने तो अखिलेश ने इसी वजह से उनके हालिया विवादों को नजरअंदाज कर राष्ट्रीय महासचिव बनाया है. 


2. सलीम शेरवानी- रुहेलखंड पॉलिटिक्स के दिग्गज नेता सलीम शेरवानी को भी अखिलेश यादव ने राष्ट्रीय महासचिव की जिम्मेदारी सौंपी है. 2020 में कांग्रेस से नाता तोड़कर सलीम शेरवानी ने सपा ज्वॉइन किया था. 


शेरवानी राजीव गांधी की सरकार में मंत्री रह चुके हैं. रुहेलखंड के पीलीभीत, शाहजहांपुर और बदायूं लोकसभा सीट पर उनका दबदबा रहा है. 2022 के चुनाव में भी इन इलाकों में सपा कोई करिश्मा नहीं कर पाई. ऐसे में शेरवानी के भरोसे यहां पर 2024 में अखिलेश खेल करने की कोशिश में जुटे हैं.


3. राम अचल राजभर- मायावती की हर सरकार में मंत्री रहने वाले राम अचल राजभर 2022 में साइकिल पर सवार हो गए थे. राजभर बसपा में प्रदेश अध्यक्ष से लेकर राष्ट्रीय महासचिव तक रह चुके हैं और उन्हें एक वक्त में मायावती का काफी करीबी माना जाता था.


ओम प्रकाश राजभर के सपा गठबंधन छोड़ने के बाद राम अचल राजभर का कद बढ़ना तय माना जा रहा था. पूर्वांचल के कई सीटों पर राजभर वोटरों का दबदबा है.


राम अचल राजभर अंबेडकरनगर से आते हैं और अकबरपुर सीट से लगातार छठवीं बार विधायक बने हैं. राजभर का सीधा असर अंबेडकरनगर, घोषी और गाजीपुर सीटों पर है. ये सभी सीटें वर्तमान में बसपा के पास है. 


4. लालजी वर्मा- लालजी वर्मा भी राम अचल राजभर के साथ सपा में शामिल हुए थे. लालजी वर्मा एक वक्त में मायावती के किचन कैबिनेट का हिस्सा थे. राजभर की तरह ही मायावती की हर सरकार में मंत्री रह चुके लालजी वर्मा वर्तमान में कटेहरी से विधायक हैं.


मौर्य कुर्मा बिरादरी से आते हैं, जिसकी आबादी मिर्जापुर, संत कबीर नगर, महाराजगंज जैसे जिलों में सबसे अधिक है. लालजी वर्मा की पकड़ बलरामपुर और अंबेडकरनगर सीटों पर है. ऐसे में उन्हें महासचिव बनाकर अखिलेश ने बड़ा दांव खेला है.


5. इंद्रजीत सरोज- कौशांबी मॉडल के सूत्रधार इंद्रजीत सरोज को फिर से सपा ने महासचिव बनाया है. सरोज कौशांबी के मझनगर से विधायक और विधानसभा में सपा के उप नेता हैं. 


सरोज की गिनती भी एक वक्त में मायावती के करीबी नेताओं में होती थी. 2019 में वे बसपा के टिकट से चुनाव भी लड़े, लेकिन हार गए. बसपा और सपा का गठबंधन टूटा तो इंद्रजीत साइकिल पर सवार हो गए. 


इंद्रजीत सरोज पासी जाति से आते हैं, जिनका दबदबा हरदोई, कौशांबी और मिश्रिख सीटों पर है. तीनों सीट पर वर्तमान में बीजेपी का कब्जा है. 


6. हरेंद्र मलिक- जाट नेता हरेंद्र मलिक 2022 चुनाव से ऐन पहले कांग्रेस छोड़ सपा में शामिल हो गए. मलिक कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी के सलाहकार थे. 


4 बार विधायक और एक बार सासंद रह चुके मलिक पश्चिम यूपी में संगठन को मजबूत करेंगे. मुजफ्फरनगर और शामली की सीट पर मलिक की मजबूत पकड़ मानी जाती है. साथ जाटलैंड में भी राजनीति करने का उनका पुराना अनुभव है. 


हाल ही में खतौली में सपा गठबंधन को बड़ी जीत मिली है. ऐसे में मिशन 2024 में जुटे अखिलेश की नजर भी पश्चिमी यूपी की सीटों पर टिक गई है.