Aligarh News: गाजियाबाद में हाल ही में हुई एक सुनवाई के दौरान जज और वकीलों के बीच बहस के बाद पुलिस द्वारा की गई लाठी चार्ज ने कई जिलों में विरोध प्रदर्शन को जन्म दिया है. इस घटना ने अलीगढ़ में भी गहरा असर डाला है, जहां वकीलों ने सड़कों पर उतरकर अपनी नाराजगी व्यक्त की. उन्होंने एकत्रित होकर बड़ी कार्रवाई की मांग की, जिसमें जज का तबादला और लाठी चार्ज में घायल हुए अधिवक्ताओं को मुआवजा देने की मांग शामिल है. अलीगढ़ के वकील इस घटना से इतने आहत हैं कि उन्होंने यह निर्णय लिया है कि जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं होती, वे दीपावली का त्योहार नहीं मनाएंगे. 


इस संबंध में, अधिवक्ताओं ने जिला न्यायालय के बाहर एक बड़ा प्रदर्शन आयोजित किया. उन्होंने एकजुट होकर अपनी आवाज उठाई और प्रशासन से मांग की कि अधिवक्ताओं के साथ हो रहे अन्याय और उत्पीड़न को रोका जाए. वकीलों का कहना है कि पिछले कुछ समय से उन्हें लगातार पुलिस और न्यायालयों द्वारा प्रताड़ित किया जा रहा है.


जज के तबादले की मांग
उनका मानना है कि उनकी मेहनत और ईमानदारी के बावजूद उन्हें न्याय नहीं मिल रहा है. लाठी चार्ज की घटना ने उनकी धैर्य की सीमा को पार कर दिया है. अब वे इस अन्याय के खिलाफ खड़े होने का संकल्प ले चुके हैं.प्रदर्शन के दौरान, वकीलों ने अपने हाथों में तख्तियां पकड़ी हुई थीं, जिन पर नारे लिखे थे. “जज का तबादला हो”, “पुलिस की लाठी चार्ज का विरोध”, “अधिवक्ताओं को न्याय दो” जैसे नारों से पूरी जगह गूंज उठी. उनकी एकजुटता ने यह स्पष्ट कर दिया कि वे इस मामले में किसी भी प्रकार का समझौता नहीं करने वाले हैं.


अधिवक्ताओं ने यह भी कहा कि पुलिस का रवैया उनके साथ बेहद नकारात्मक है. वे यह मानते हैं कि वकीलों की सुरक्षा सुनिश्चित करना सरकार की जिम्मेदारी है. अगर पुलिस ऐसे ही बर्बरता का प्रदर्शन करती रही, तो वे अपनी आवाज उठाने से पीछे नहीं हटेंगे. उनके लिए यह मुद्दा केवल लाठी चार्ज का नहीं है, बल्कि यह उनके अधिकारों और सम्मान का भी है.


मांगे पूरी होने तक नहीं मनाएंगे उत्सव
पूरे मामले पर जानकारी देते हुए रक्षपाल सिंह राघव वरिष्ठ अधिवक्ता ने बताया अलीगढ़ के वकीलों ने अपने प्रदर्शन के दौरान यह स्पष्ट किया कि दीपावली का त्यौहार मनाने का उनका कोई मन नहीं है. उन्होंने कहा कि जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं होतीं, तब तक वे किसी भी प्रकार का उत्सव नहीं मनाएंगे. यह निर्णय उनके लिए बहुत कठिन था, क्योंकि दीपावली का त्यौहार भारतीय संस्कृति में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है. लेकिन उन्होंने इस त्यौहार का त्याग करके एक संदेश देना चाहा कि वे अपने अधिकारों के लिए लड़ने के लिए तैयार हैं.


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