Aligarh News: देश भर में आजादी का जश्न मनाया जा रहा है,जोर शोर से तैयारी चल रही है. इस दिन को लेकर बड़े गर्व के साथ लोग अपने घरों ऑफिसों पर तिरंगा फहराते हैं और आजादी के जश्न को बड़े ही धूमधाम के साथ मनाते हैं. वहीं दूसरी ओर जिस देश को आजाद करने के लिए वीर सपूतों अपने प्राण बलिदान कर दिए उनका परिवार आज दाने-दाने के लिए मोहताज है. उनकी मदद के लिए न लोग आगे आ रहे और न सरकार ने मदद के लिए हाथ आगे किए हैं.


शहीद दिवस के मौके पर तमाम लोग आते हैं और इनको एक लोई उड़ाने के बाद शहीद नरेश सिंह की याद दिलाकर फिर अकेला छोड आते हैं लेकिन आज तक शहीद नरेश सिंह के परिवार को वह मदद नहीं मिली जो उनके माता-पिता को मिलनी चाहिए थी, जबकि नरेश सिंह की पत्नी को पेट्रोल पंप और आर्थिक मदद सरकार के द्वारा दी जा चुकी है लेकिन माता-पिता का कहना है उनका बेटा उनसे जुदा हो गया लेकिन आज भी उन्हें सरकार के द्वारा जो ₹5000 महीने मिलते हैं वह भी अक्टूबर माह से अब तक नहीं मिले हैं.


सरकार नहीं कर रही है मदद
शहीद के पिता की आंखों में आंसू और तंगी हालत जुबान पर बयान नजर आ रही है जिसको देखने वाला कोई मौजूद नहीं है जिसको लेकर बताया जाता है शहीद के माता-पिता अकेले ही गुजर बसर करते हैं, राजेंद्र सिंह का कहना है उनकी पत्नी और वह खुद घर में अकेले रहते हैं शरीर में इतनी जान नहीं है कुछ काम कर सकें अब तो सिर्फ जान निकलने के समय का इंतजार है. सरकार से कोई उम्मीद नहीं है क्योंकि जब पहले ही कुछ नहीं दिया तो सरकार अब क्या मदद करेगी.


दरअसल शहीद नरेश सिंह का जन्म अलीगढ़ के तहसील इगलास में स्थित गांव छोटी बल्लभ में एक किसान परिवार में हुआ था. इनके पिता श्री राजेन्द्र सिंह के दो पुत्रों में नरेश सिंह छोटे पुत्र थे. इन्हें बचपन से ही खेलकूद का बहुत शौक था. बड़े होने पर इन्होंने सेना में जाने का निर्णय लिया ताकि देश के लिए कुछ करके दिखा सकें लेकिन देश की रक्षा करते हुए जब कारगिल युद्ध के दौरान अपनी चौकियों की रक्षा में कैप्टन सौरभ कालिया के नेतृत्व में सीमा की रक्षा करते हुए चौकी क्षेत्र का दौरा कर रहे तब अन्य साथियों के साथ नरेश सिंह को पाकिस्तानी सेना द्वारा अपहृत कर लिया गया, 12 जून 1999 में शहीद नरेश सिंह का शव उनके घर छोटी बल्लभ में पहुंचा.


पाकिस्तान ने छत-विछत कर भेजा था शव
शहीद के पिता बताते है उस दिन राजवीर सिंह कर्नल के द्वारा उनको सूचना दी गई आपका बेटा अब आपके बीच नही रहा,15 मई 1999 को पाकिस्तानी घुसपैठियों के द्वारा इन जाबांजो को धोखे से हिरासत में लिया,एक महीने के अंतराल के बाद शहीदों के शवों को छत विछत करके हिंदुस्तान को सौंपा था, जिस बेटे का शव गलत तरीके से माता-पिता के पास पहुंचा तो उस परिवार का दिल फट गया लेकिन मौजूदा हालातो कि अगर बात कही जाए आज भी वह पिता और मां अपने बेटे को याद करते हुए सहम उठते है.


शहीद के पिता ने बताया कि सरकार के द्वारा कोई सरकारी सहायता उन्हें उपलब्ध नहीं कराई जाती. राशन भी शहीद के माता-पिता को नहीं मिलता है अधिकारी भी हाथ पर हाथ रखकर बैठे हुए नजर आते हैं. अधिकारियों की उदासीनता के चलते शहीदों के दुख दर्द सरकार तक नहीं पहुंच पा रहा. उन्होंने सिस्टम से सवाल किया है कि क्या ऐसे अधिकारियों पर कार्रवाई होगी जिनके चलते शहीदों के पिता गांव के पड़ोसियों से मांग कर खाने पर मजबूर है. अब देखने वाली बात ये होगी की क्या शहीद के परिवार के लिए सरकार प्रशासन आगे आता है या परिवार इस तरह ही अपनी आगे की जिंदगी काटेगा.


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