Aligarh News: अलीगढ़ के जिला कारागार में बंद कैदी अब हुनरबाज बनते हुए नजर आ रहे है. उनके द्वारा अपने हुनर से कड़ी मेहनत के बाद आमदनी की जा रही है. आमदनी के जरिए वह अपना केस खुद के पैसे से लड़ रहे हैं. साथ ही अपने परिवार को बची हुई पूंजी भी भेज रहे हैं. सरकार की महत्वाकांक्षी योजना ओडीओपी योजना के तहत जिला कारागार अलीगढ़ में कैदी कैदियों को योजना का लाभ मिल रहा है. इस योजना के तहत दो दर्जन से ज्यादा कैदियों यह काम कर मुनाफा कमा रहे है.


कारागार में कई कैदी ऐसे भी है. जिन्हें ताले का काम आता है. लेकिन कुछ कैदी ऐसे हैं जो ताले का काम करना चाहते हैं जो कि अब ताले के कारीगरों के साथ सहयोग के रूप में काम करते हुए ताले बनाना सीख रहे हैं. जेल प्रशासन की ओर से एक कमरे में ताले बनाने की फैक्ट्री के सारे उपकरण शिफ्ट किए गए हैं. जिसमें कई मशीन मौजूद है और सभी तरह के वह उपकरण मौजूद हैं. जिससे ताले बनाए जा सकते हैं.उन्ही उपकरणों की मदद से यहां बंद कैदी ताले बनाते हैं और इन तालों को जेल प्रशासन जिस कंपनी से करार हुआ है. उस कंपनी को भेजता है.


क्या कहते है जिला कारागार के अधिकारी
वरिष्ठ जेल अधीक्षक विजेंद्र सिंह यादव से जब बातचीत की गई तो उनके द्वारा बताया गया बेसपा इंटरप्राइजेज के माध्यम से जिला कारागार प्रशासन के द्वारा एक प्रोजेक्ट साइन किया गया है. सामान्य रूप से उत्तर प्रदेश सरकार की मनसा के अनुरूप जिलों में वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट के अंतर्गत योजना रूप में यह चीज की गई है.अलीगढ़ में इस योजना के तहत तालों का निर्माण किया जा रहा है. जिसमें लगभग स्टार्टिंग में वहां पर प्रशिक्षित 14 कारीगरों के साथ अन्य सीखने वाले लगभग कुल 40 लोग मिलकर कार्य कर रहे हैं.


'सजा के साथ कैदियों को हो रही आमदनी'
चार दिन के बाद में यहां से बंदियों के द्वारा निर्मित ताले बेसपा कंपनी को भेजे जाते हैं. मार्केटिंग का कार्य जो है. वह उन्हीं के द्वारा किया जा रहा है. ताले बनाने के बाद कैदियों को अच्छा खासा मुनाफा होता है. साथ ही जो कारीगर हैं. उनको यहां बेहतर लाभ मिल रहा है. सरकार की महत्वाकांक्षी योजना के तहत यह स्कीम जिला कारागार में चलाई जा रही है.जिससे सजा के दौरान ही कैदी मेहनत करते हुए अपने परिवार को चलाने के साथ-साथ अपने खुद का खर्चा बहन कर सकते हैं जो भी उपकरण होते हैं. उसके लिए जेल प्रशासन लगातार उनकी मदद करता है.


क्या बोले ताले का काम कर रहे कैदी
पूरे मामले को लेकर जिला कारागार में सजा काट रहे बंधिया से जब बातचीत की तो उनके द्वारा बताया गया यहां हम ताले का काम कर रहे हैं. ऐसा महसूस होता है जैसे कि अपने घर पर काम कर रहे हैं. दोपहर के समय में जिस तरह से घर में खाने का टाइम होता था. ठीक उसी की तर्ज पर दोपहर में खाना खाने की छूट दी जाती है. दोपहर के बाद शाम में वह अपनी बैरक में चले जाते हैं. उनकी टीम में 14 कारीगर हैं. उसके साथ 26 लोग यहां सीखने वाले हैं. कुल मिलाकर 40 लोग यहां पर आते हैं. लेकिन 14 कारीगरों के द्वारा ताले अच्छे तरीके से बनाए जाते हैं. बाकी लोग अन्य सीख रहे हैं.


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