ITI Chai Wala: अलीगढ़ कलेक्टरेट के बाहर आईटीआई चाय वाला बेरोजगारी को आईना दिखा रहा है. ठेले पर चाय बेचकर रोजी रोटी का जुगाड़ कर रहे दीपक की कहानी संघर्ष भरी है. डिग्री होने के बावजूद चाय बेचने पर उसने बेरोजगारी और महंगाई को कारण बताया. ठेले पर चाय बेचने से पहले दीपक कंपनी में नौकरी करता था. 2020 में सादाबाद से आईटीआई इलेक्ट्रीशियन ट्रेड की डिग्री लेने के बाद नौकरी की शुरुआत की. कंपनी महीने का वेतन 9 से 10 हजार रुपये देती थी. 10 हजार में घर का खर्च चलाना काफी मुश्किल हो रहा था. इसलिए नौकरी छोड़कर खुद का रोजगार करने की ठानी. सबसे आसान और कम पूंजी का धंधा चाय वाला लगा. चाय बेचकर कम पूंजी में मुनाफा कमाया जा सकता है.


बेरोजगारी और महंगाई ने बनाया 'चाय वाला'


कुछ कर गुजरने की सोच को आगे बढ़ाते हुए कलेक्ट्रेट के बाहर ठेला पर चाय बेचना शुरू कर दिया. लोग आईटीआई चाय वाला का पोस्टर देखकर खिंचे चले आते हैं और दीपक के हाथ की बनी चाय की चुस्की का मजा लेते हैं. दीपक ने सरकार पर जमकर तंज कसे हैं. उसका कहना है कि हकीकत और विज्ञापन में बहुत अंतर है. दिखाया कुछ और जाता है और हकीकत कुछ अलग होती है. देश प्रदेश में युवाओं के लिए नौकरी का संकट है. उसने सरकार को युवाओं की ओर देखने पर जोर दिया.


आईटीआई होल्डर ठेला लगाने को मजबूर 


सरकार को चाहिए कि ज्यादा से ज्यादा नौकरी का सृजन करे. दीपक के ठेले पर चाय की चुस्की लेने आए ग्राहकों ने बताया कि आईटीआई नाम आकर्षित करता है. आईटीआई चाय वाला के चाय की उन्होंने तारीफ की. दीपक का कहना है कि चाय की बिक्री से आमदनी रोजी रोटी के लिए पर्याप्त हो रही है. परिवार का भरण पोषण ठीक से हो रहा है. दीपक को अब नौकरी से बेहतर चाय बेचने का धंधा लगता है. उसका कहना है कि मालिक बनकर धंधा करने का नुकसान नहीं है.  


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