महाकुंभ में गूंजेगी अलीगढ़ के शंखनाद की गूंज, 400 शंखों का ऑर्डर, 300 ग्राम से डेढ़ किलो तक वजन
Shankha in Maha Kumbh 2025: 13 जनवरी से शुरू होने वाले भव्य और दिव्य महाकुंभ में इस बार अलीगढ़ के शंखों की भी अहम भूमिका होगी. अलीगढ़ के खास शंखों की न सिर्फ देश बल्कि विदेशों में खूब मांग है.
Aligarh News Today: ताले और तालीम के लिए मशहूर अलीगढ़ अब इन दिनों अपने शंख के लिए भी मशहूर हो चुका है. शंख बनाने वाले शिल्पकार का दावा है कि भारत में वह इकलौते ऐसे शिल्पकार हैं, जो पीतल की सबसे बड़ी शंख बनाते हैं. इन शंखों में से आवाज भी निकलती है.
शिल्पकार की मानें तो आवाज के शंख बनाने के पीछे एक बड़ी कहानी है. इसके लिए उन्होंने कड़ी मेहनत की है, तब जाकर उन्हें आवाज वाली शंख बनाने में महारत हासिल हुई. यही कारण है उत्तर प्रदेश सरकार के द्वारा शिल्पकार को सम्मानित किया गया है. साथ ही शिल्पकार को कई जगह से अवार्ड भी मिल चुके हैं.
दरअसल, अलीगढ़ के पीतल शिल्पकारों की अनूठी कारीगरी ने एक बार फिर अपनी छाप छोड़ी है. महाकुंभ 2025 में अलीगढ़ के शंखों की गूंज सुनाई देगी. शहर के मशहूर शिल्पकार सत्यप्रकाश प्रजापति ने पीतल के ऐसे शंख तैयार किए हैं, जिनसे ध्वनि निकलती है. ये शंख पूरी तरह से हस्तशिल्प से तैयार किए गए हैं और इन पर भगवान के चित्रों की नक्काशी की गई है.
400 शंखों का ऑर्डर
सत्यप्रकाश को महाकुंभ के लिए अब तक 400 शंखों का ऑर्डर मिल चुका है. इन शंखों को तैयार करने की प्रक्रिया एक लंबी साधना जैसी है. सत्यप्रकाश बताते हैं कि पीतल से बजने वाले शंख बनाने का विचार उन्हें वर्ष 2012 में आया था. इसके बाद उन्होंने इस विचार को साकार करने के लिए लगभग पांच साल तक लगातार मेहनत की.
सत्यप्रकाश प्रजापति के मुताबिक, उनके घरों पर कारीगर पीतल के इन अनोखे शंखों पर नक्काशी का काम कर रहे हैं. इन शंखों की खासियत यह है कि यह न सिर्फ बजते हैं बल्कि इनमें धार्मिक भावनाओं को संजोने के लिए भगवान की प्रतिमाओं को भी उकेरा गया है.
कैसे हुई शुरुआत?
सत्यप्रकाश प्रजापति ने अपने इस अनोखे सफर की शुरुआत 2010 में हरियाणा के बहादुरगढ़ स्थित छुठानीधाम से की थी. उस समय, उन्हें वहां के महामंडलेश्वर ब्रह्मस्वरूप महाराज ने अपने गुरु भगतराम जी महाराज की पीतल की मूर्ति बनाने का ऑर्डर दिया था. सत्यप्रकाश अपने 15 कारीगरों के साथ वहां पहुंचे और 15 दिनों में साढ़े तीन फीट ऊंची मूर्ति बनाकर संत को भेंट की.
जब संत ब्रह्मस्वरूप को सत्यप्रकाश प्रजापति ने बिना आवाज वाला पीतल का शंख दिया. इस पर उन्होंने कहा, "इसमें आवाज क्यों नहीं है? अगर चूल्हे की फूंकनी में आवाज आ सकती है, तो शंख में क्यों नहीं?" यह बात सत्यप्रकाश प्रजापति को अंदर घर कर गई. उसी दिन से उन्होंने आवाज वाले शंख बनाने का प्रण ले लिया.
पांच साल की तपस्या
सत्यप्रकाश प्रजापति ने बताया कि उन्होंने शंख बनाने की प्रक्रिया पर दिन-रात काम किया. सबसे पहले उन्होंने शंख का प्रारूप तैयार किया और फिर उसे मिट्टी से ढालने की कोशिश की. यह आसान काम नहीं था. पीतल की संरचना और उसकी गूंज को संतुलित करने में चार साल लग गए. आखिरकार 2015 में उन्होंने बाजार में अपना पहला बजने वाला शंख पेश किया. शुरुआत में इस शंख में कई सुधार किए गए और धीरे-धीरे यह ग्राहकों की पसंद बन गया.
अयोध्या के राम मंदिर में भी बजता है यह शंख जब अयोध्या में श्रीराम मंदिर में प्राण-प्रतिष्ठा का कार्यक्रम हुआ, तो सत्यप्रकाश ने जगद्गुरु नित्य गोपाल दास जी को दो शंख भेंट किए. आज भी ये शंख राम मंदिर के महंत द्वारा बजाए जा रहे हैं. सत्यप्रकाश के बेटे रवि प्रकाश बताते हैं, “यह हमारे पिता की मेहनत और तपस्या का नतीजा है. उन्होंने अपने गुरु की बात को दिल से लिया और इस शंख में आवाज लाने के लिए पांच साल तक लगातार काम किया. यह उनके समर्पण का परिणाम है कि आज यह शंख पूरे देश और विदेश में प्रसिद्ध है.”
कैसे बनते हैं पीतल के शंख?
पीतल के शंख को बनाने की प्रक्रिया काफी जटिल है. सबसे पहले पीतल को पिघलाकर उसके कई हिस्सों को अलग-अलग ढालों में तैयार किया जाता है. इसके बाद इन हिस्सों को वेल्डिंग की मदद से जोड़ा जाता है. शंख की गूंज सुनिश्चित करने के लिए उसकी संरचना में विशेष ध्यान दिया जाता है.
जब शंख तैयार हो जाता है, तो उस पर भगवान के चित्रों की नक्काशी की जाती है. यह काम कारीगरों द्वारा बहुत ही सावधानी और धैर्य के साथ किया जाता है. प्रयागराज महाकुंभ की तैयारी महाकुंभ के लिए सत्यप्रकाश और उनकी टीम दिन-रात काम कर रही है. हर शंख को बहुत सावधानी से बनाया जा रहा है ताकि वह धार्मिक अनुष्ठानों में उपयोग हो सके.
इन शंखों का वजन एक किलो 300 ग्राम से लेकर एक किलो 600 ग्राम तक होता है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान बना चुके इन शंखों की मांग न केवल भारत में बल्कि दक्षिण भारत और अन्य देशों में भी है. सत्यप्रकाश के बनाए शंख दक्षिण भारत के मंदिरों में बजाए जाते हैं. इसके अलावा यह शंख अमेरिका और यूरोप जैसे देशों में भी निर्यात किए जाते हैं.
अलीगढ़ को पहले ही पीतल नगरी के रूप में जाना जाता है, लेकिन सत्यप्रकाश के इस अनोखे प्रयास ने शहर का गौरव और बढ़ा दिया है. उनके बनाए शंख न केवल धार्मिक अनुष्ठानों के लिए महत्वपूर्ण हैं, बल्कि यह भारतीय शिल्प और संस्कृति के प्रतीक भी हैं.
भविष्य की योजना
सत्यप्रकाश प्रजापति की योजना है कि वे अपनी इस कला को नई पीढ़ी तक पहुंचाएं. उनका कहना है, "यह सिर्फ शिल्प नहीं है, यह हमारी संस्कृति और विरासत का हिस्सा है. मैं चाहता हूं कि नई पीढ़ी इसे सीखे और आगे बढ़ाए."
इस तरह अलीगढ़ के सत्यप्रकाश प्रजापति ने अपने समर्पण और मेहनत से न केवल एक अनोखा उत्पाद तैयार किया है बल्कि अलीगढ़ का नाम भी पूरी दुनिया में रोशन किया है. महाकुंभ में इन शंखों की गूंज पूरे देश में अलीगढ़ की पहचान को और मजबूत करेगी.
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