Aligarh News Today: अलीगढ़ में मौजूद धरोहर इतिहास के पन्नों में दर्ज है और अपनी अलग पहचान बनाए हुए हैं. हर पुरानी इमारत के पीछे कोई न कोई कहानी छुपी है. ऐसी ही एक कहानी अलीगढ़ की एएमयू जामा मस्जिद की है. एएमयू की जामा मस्जिद एक ऐतिहासिक जामा मस्जिद है, जो कि एएमयू के संस्थापक सर सैयद अहमद ने बनवाई थी. इस मस्जिद का मकसद एएमयू में पढ़ने वाले छात्रों के लिए नमाज की व्यवस्था कराना था.
इस मस्जिद में तकरीबन 20 से 25000 लोग नमाज अदा कर सकते हैं और इस मस्जिद की खासियत यह है कि मस्जिद के गेट के ऊपर पत्थर पर जो आयत लिखी है वो कुरान की आयतें है. जो आयतें ताजमहल पर लिखी हुई हैं, उसी कारीगर ने दिल्ली की एक मस्जिद में भी ताजमहल की कला आकर्ति के आधार पर लिखा था, लेकिन अंग्रेजों ने उस मस्जिद को शहीद कर दिया.
ताजमहल का एहसास करती है अलीगढ़ की ये मस्जिद
इसके बाद अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के संस्थापक सर सैयद अहमद खा ने उस मस्जिद के शहीद हिस्से को जिस पर कुरान की आयत लिखी हुई थी, उसे 102 रुपये में खरीद लिया था. एएमयू की यह जामा मस्जिद दिल्ली की जामा मस्जिद की तर्ज पर बनी थी. क्योंकि सर सेयद अहमद खा दिल्ली के रहने वाले थे, इसलिए उन्होंने इस मस्जिद को बनाने के लिए अच्छे से अच्छे कारीगरों को बुलवाया. इस मस्जिद को ताजमहल को बनाने वाले कारीगर से बनाये हुए उस पत्थर को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की मस्जिद में लगाने के बाद यह मस्जिद भी ताजमहल का एहसास कराती है.
आज यह मस्जिद अपने आप में 1 तारीखी मस्जिद बनी हुई है और इस मस्जिद में सर सैयद अहमद खान का भी मजार मौजूद है और कई कब्र भी इस मस्जिद में मौजूद हैं जो इतिहास को याद दिलाती है.
क्या कहते है अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के पूर्व पीआरओ?
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के पूर्व पीआरओ प्रो. राहत अबरार ने जानकारी देते हुए बताया कि यह एक आलीशान मस्जिद है. इस मस्जिद का अलग ही इतिहास है. सर सैयद अहमद खान जब इंग्लैंड गए थे तो वहां कॉलेज में चर्च बने थे. उन्होंने कहा कि अलीगढ़ में जो एक मुस्लिम कॉलेज है वहां पढ़ने वाले छात्रों को पांचों वक्त की नमाज पढ़ने के लिए एक मस्जिद बनवाई जाए. क्योंकि सर सैयद अहमद खान दिल्ली के रहने वाले थे. वहीं अंग्रेजों की तरफ से जो मौजूदा मस्जिद है, उसके बराबर में अकबरी मस्जिद को ढहाया गया.
उन्होंने बताया कि जब सर सैयद अहमद खान को पता चला तो उन्होंने उस मस्जिद में लगे पत्थरों को 102 रुपए में खरीद लिया. क्योंकि वह पत्थर कोई आम पत्थर नहीं थे, जिस शख्स की तरफ से ताजमहल बनवाया गया था उसी ने उस पत्थरों पर आएते लिखी थी. तो इसलिए वह पत्थर एएमयू की जामा मस्जिद में लगे हैं. ताजमहल में लगे पत्थर का हिस्सा है, जिस पर आयतें लिखी गई हैं. सर सैयद अहमद खा का इस मस्जिद को बनाने का मकसद यहां पढ़ने वाले मुस्लिम छात्रों को पांचो वक्त की नमाज अदा कराना था.
शिया और सुन्नी यहां मिलकर करते हैं नमाज अदा
पूरे मुल्क में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में यह दूसरी ऐसी जामा मस्जिद है जहां शिया और सुन्नी समुदाय के लोग मिलजुल कर नमाज अदा किया करते हैं. पहली मस्जिद खाना काबा सऊदी अरब में बताई जाती है और दूसरी मस्जिद अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में मौजूद है, जिसकी खास बात यह है कि यहां सिया और सुन्नी दोनों ही तबके के लोग नमाज अदा करते हैं.
1879 में जामा मस्जिद की नींव रखी गई थी, जिसमें सर सैयद अहमद खां ने (1817--1998) योगदान करते हुए 1915 में इस मस्जिद के निर्माण को पूरा कराया. इस मस्जिद को लेकर तमाम तरीके की उपलब्धि इस मस्जिद के नाम पर दर्ज है. मस्जिद में पहले महिलाएं भी नमाज अदा किया करती थीं, लेकिन जब सहूलियत बढ़ती गई तो महिलाएं और छात्राएं अपने आवास और अपने घरों पर नमाज अदा करने लगीं. मस्जिद को लेकर बताया जाता है, इस मस्जिद में लगे फव्वारे भी दिल्ली की जामा मस्जिद और आगरा के ताजमहल में लगे फव्वारे की तर्ज पर बनाए गए हैं. चुनिंदा पत्थर इस मस्जिद में मौजूद हैं जो ताजमहल और दिल्ली की जामा मस्जिद में लगे हुए हैं. यही कारण है यह मस्जिद सातवें अजूबे का एहसास कराती नजर आती है.
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