Aligarh Muslim University: अलीगढ़ की पहचान पूरे देश भर में ताले और तालीम के नाम से की जाती है. लेकिन अलीगढ़ ऐतिहासिक इमारतो के लिए भी अपनी अलग पहचान बनाए हुए हैं, अलीगढ़ में कई ऐसी ऐतिहासिक इमारतें हैं जो इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं ऐसी ऐतिहासिक इमारत को देखने के बाद लोग मुगल कालीन शासन के दौरान बनाई हुई इमारत को देखने जैसा महसूस करते हैं. वही अलीगढ़ में खास तौर पर ताले बनते हैं और शिक्षा के जगत में अपनी अलख जगाने वाला अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय भी विश्व विख्यात है.


 वहीं अगर बात ऐतिहासिक इमारत को सहेज कर रखने की कही जाए एएमयू एक अलग इतिहास बनाता हुआ नजर आ रहा है. लेकिन कुछ इमारतें ऐसी हैं जो अपना इतिहास खुद दर्शाती है. उन्हीं में से एक ऐतिहासिक गेट भीकमपुर गेट भी है. यही भीकमपुर गेट सैकड़ों साल का इतिहास समेटे हुए है. एएमयू के मुख्य चौराहे के पास बने इस गेट को आम तौर पर लोग महज इसे एक गेट के नाम से जानते है, लेकिन इस गेट को ज्यादातर लोग बन्द रहने के कारण पहचानते है.इसके बराबर में मौजूद फेज़ गेट के खुले होने के कारण इस गेट के बन्द होने की भरपाई होती है, इसी वजह से यह भीकमपुर गेट ज्यादातर बंद रहता है.


उम्दा किस्म की ईंटों से बना है भीकमपुर गेट
 ऐतिहासिक गेट भीकमपुर गेट काफी उम्दा किस्म के पत्थर से बना हुआ है. इस गेट का बाहर हिस्सा सफेद नायाब पत्थर का बना हुआ है जो कि देखने मे आज भी नए लगते है. जबकि गेट के पीछे का हिस्सा लाल रंग की उम्दा किस्म की ईंटों का बना है.एक ईंट काफी वजन की बताई जाती है. समय-समय पर अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय इसका सौंदर्यीकरण करता रहता है और इसके रखरखाव के लिए बाकायदा इसकी समय-समय पर मरम्मत भी की जाती है. जिसके चलते यह गेट आज भी मुगलकाल की समय की बनी हुई ऐतिहासिक इमारतों की याद दिलाता है,


1803 में इस गेट की हुई थी निलामी
 इस गेट का इतिहास भी काफी बड़ा है,दरअसल अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के आर्किटेक्चर डिपार्टमेंट के प्रो. एम फरहान फ़ाज़ली बताते हैं कि मुगलकालीन इस गेट को अंग्रेजों ने आगरा किला में 1803 में निलाम किया था. जिसे भीमकपुर थाना गभाना के नवाब दाऊद खा के द्वारा इसे खरीदा गया था. जिसके बाद उन्होंने 1835 में भीमकपुर स्टेट में इस गेट को लगवा दिया.उसके बाद 1961 में नवाब दाऊद खान के वंशज अबू सबूर खान शेरवानी ने इसे अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को गिफ्ट में दे दिया. इस गेट में मुगल कला की झलक साफ दिखाई देती है, साथ ही इसमें छतरी भी बनी हुई है. 


सेल्फी लेने के लिए लोगों की रहती है भीड़
प्रोफेसर फाजली के अनुसार गेट को टुकड़ों में ही आगरा से भीमपुर और भीमपुर से एएमयू में लगाया गया था. जिस दिन से यह गेट अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में लगाया गया. उस दिन से आज तक यह गेट अपने आप में एक इतिहास सहित कर बैठे हुए हैं. इस गेट को कई लोग बंद होने के नाम से पहचानते हैं तो इस गेट को कई लोग इस गेट के ऊपर बनी मुगलकालीन कला आकृति के नाम से पहचानते हैं. इसके करीब से होकर गुजरने वाले सभी लोग उसको अपने कैमरे में कैद करते हुए नजर आते हैं खास तौर पर इस गेट पर लोग सेल्फी लेने के लिए कतार लगाते हैं.


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