नए विवादों में घिरी अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी, टीचर्स एसोसिएशन ने नियुक्तियों पर उठाए सवाल
Aligarh Muslim University: यूपी की अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी अब नए विवादों में फंसती हुई दिखाई दे रही है. टीचर्स एसोसिएशन ने यहां नियुक्तियों को लेकर गंभीर सवाल उठाए हैं.

Aligarh Muslim University: यूपी की अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की टीचर एसोसिएशन के द्वारा खुला पत्र लिखने के बाद यहां हो रही नियुक्तियों पर सवाल खड़े हो गए हैं. टीचर्स एसोसिएशन के द्वारा एक खुला पत्र जारी किया है जिसमें उनके द्वारा तमाम विभागों में हो रही नियुक्तियों को अवैध व तानाशाह बताया है. यह पत्र लगातार सोशल मीडिया पर सुर्खियां बना हुआ है. तमाम विवादों के बीच टीचर एसोसिएशनके इस पत्र के बाद AMU को लेकर कई तरह के सवाल उठ रहे हैं कि ये नियुक्तियां किस आधार पर की जा रही है.
इस चिट्टी के सामने आने से अब एएमयू में नया सियासी संग्राम छिड़ गया है. पत्र में लिखा है कि
जो लोग आपातकाल को ढूंढ रहे हैं, उन्हें कहीं और जाने की जरूरत नहीं बस एएमयू की स्थिति देख लीजिए. यहां न केवल 'शाही हुक्म' मिलेंगे, बल्कि हर अहम कुर्सी पर कोई न कोई 'आपातकालीन इंतज़ाम' के तहत बैठा मिलेगा. चयन समितियां और लोकतंत्र इतिहास की किताबों में कैद हो चुके हैं. अब तो सीधे 'आपातकालीन फरमान' की घंटी बजती है.
चिट्ठी में AMU में नियुक्तियों पर उठाए गए हैं सवाल
चिट्ठी में आरोप लगाया गया है कि यूनिवर्सिटी में नियंत्रक, प्रॉक्टर, वित्त अधिकारी, रजिस्ट्रार-हर कोई 'विशेष परिस्थितियों' के नाम पर गद्दी पर विराजमान है. ये यूनिवर्सिटी अब एक 'आपातकाल महल' बन चुकी है, जहां संविधान की जगह सत्ता की सनक चलती है. अब यहां प्रशासन नियमों से नहीं राजा की आज्ञा से चलता है. हर नियुक्ति, हर आदेश, हर योजना-सब कुछ सत्ता की धुन पर तय होता है. अब प्रो-वाइस चांसलर की नियुक्ति भी उसी तानाशाही तमाशे की नई किस्त है. नया कुछ नहीं.
टीचर्स एसोसिएशन ने इस चिट्ठी में प्रो-वाइस चांसलर की नियुक्ति पर भी सवाल उठाए और पूछा कि प्रो-वाइस चांसलर की नियुक्ति अचानक इतनी जरूरी क्यों हो गई? क्या यहां कोई प्रलय आ गई थी या फिर इसके पीछे पुरानी गड़बड़ों को ढकने का कोई खेल चल रहा है. वित्तीय और प्रशासनिक ऑडिट की तलवार सिर पर लटक रही है और पुराने काले कारनामों की परतें खुलने ही वाली हैं. ऐसे में ये नियुक्ति यूनिवर्सिटी को सुधारने के लिए नहीं, बल्कि पुराने कब्रिस्तानों की हिफाज़त के लिए हुई है.
इस चिट्ठी में चेतावनी देते हुए टीचर्स एसोसिएशन ने लिखा कि इतिहास हमें एक पक्का सबक देता है-जब शिक्षा और तर्क की आंधी चलती है, तो फिरौन भी अपनी इमारतों समेत धूल में मिल जाते हैं. इन का भी यहीं हश्र तय है. अंत में इनका ठिकाना इतिहास के कूड़ेदान में ही होगा.
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