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Aligarh News: 'नाम बदलने की परंपरा पुरानी', इतिहासकार इरफान हबीब ने मुगल गार्डन को लेकर बताई कुछ खास बातें

UP News: इतिहासकार इरफान हबीब (Historian Irfan Habib) ने कहा कि नाम बदलने की परंपरा बहुत पुरानी है. शहरों के नाम बदलते रहे हैं, लेकिन खासतौर से यह मुग़ल जमाने में ज्यादा शुरू हुआ है.

Aligarh News: मुगल गार्डन (Mughal Garden) को अब अमृत उद्यान के नाम से जाना जाएगा. किसी भी जगह का नाम बदलने की परंपरा नई नहीं है बल्कि मुगल काल के पहले से यह प्रथा चलती आ रही है. प्रख्यात इतिहासकार इरफान हबीब ने मुगल गार्डन के इतिहास को दोहराते हुए कहा कि मुगलों ने यहां बहुत से बाग लगाए और उन्होंने एक खास तरीके से कुछ पौधे भी लगाए और फूलों का भी अरेंजमेंट किया, जब अंग्रेज यहां आए तो उन्होंने ताजमहल के बाग भी देखें और उसको मुगल गार्डन कहना शुरू किया. अमृत उद्यान को लेकर उन्होंने कहा कि इसकी मुझे जानकारी नहीं है, क्योंकि पीएम मोदी और अमित शाह दोनों मुगलों को बुरा भला कह चुके हैं. वह चाहते थे कि मुगल शब्द ना रहे.

इतिहासकार इरफान हबीब ने कहा कि नाम बदलने की परंपरा बहुत पुरानी है. शहरों के नाम बदलते रहे हैं, लेकिन खासतौर से यह मुग़ल जमाने में ज्यादा शुरू हुआ है. जैसे आगरा का नाम, अकबर ने तो आगरा को अपनी राजधानी बनाई.जहांगीर ने भी नाम नहीं बदला लेकिन अकबर के पोते शाहजहां ने उसका नाम अकबराबाद कर दिया, लेकिन आमतौर से आगरा ही लोग कहते हैं. यही प्रयाग का हुआ उस जमाने में पयाग कहलाता था हिंदी में, इसका नाम अकबर ने इलाहाभास किया. फिर शाहजहां ने इलाहाबाद कर दिया तो ऐसे ही शहरों के नाम बदलते रहे हैं.

इतिहास को लेकर बताई ये बातें
इतिहासकार इरफान हबीब ने कहा कि इतिहास को बिल्कुल तोड़ मरोड़ कर बदल दिया गया है. मुगल कोई बाहर के थोड़ी थे. हिंदुस्तान के थे और हिंदुस्तानी थे. तो कहीं बाहर दौलत नहीं जा रही थी.यह सब बेकार की बातें हैं. अब जैसे अहोम को कहते हैं कि हिंदुस्तानी हैं मुगल बाहर के थे, अहोम भी बाहर से आए थे. वह थाईलैंड से थे तो वह भी विदेशी थे जितने मुगल थे. तो यह बिल्कुल ही इतिहास को तोड़ मरोड़ कर बता रहे हैं.

इतिहासकार इरफान हबीब ने कहा कि मुगल अंग्रेजों की तरह नहीं थे, वह यहीं पैदा हुए और कोई रुपया बाहर भी नहीं गया. कोई बाहर के आदमी नहीं आते थे. पहला गवर्नर जो अफगानिस्तान का अकबर ने मुकर्रर किया वह राजा मानसिंह थे. तो ऐसी हुकूमत जो मिली-जुली थी उसको बाहर का कहना बिल्कुल ही गलत है. यह जो मुगलों के खिलाफ उन्होंने बताया है.वह अपने आप को मुगल नहीं कहते थे हिंदुस्तानी उनको मुगल कहते थे.तो उन्होंने कभी अपने आपको मुगल नहीं कहा.इनको मुगल इसलिए कहा जाता है कि जो भी बाहर से आते थे सेंट्रल एशिया से उनको मुगल कहते थे.बाबर बाहर से आया था लेकिन वह यही का हो गया और यही मरा.कोई बाहर वो रुपया नहीं भेजता था.किसी तरह से मुगल गवर्नमेंट को बाहर की गवर्नमेंट कहना बेवकूफी है।

केरल के राज्यपाल को लेकर कही ये बात
हिंदू राष्ट्र की परिकल्पना को लेकर उन्होंने कहा ये लोग आज से ऐसा नहीं कह रहे हैं बल्कि 1938 से ही कह रहे हैं. जब अवर नेशन डिफाइन लिखी गई तो उसमें यह लिखा था कि मुसलमान लोग भारत के सिटीजन नहीं हो सकते. यह तो हमेशा से कहते आये हैं, यह कोई नई बात नहीं है. मैं तो अपने आप को हिंदुस्तानी मानता हूं. 

केरल के राज्यपाल के बयान पर इरफान हबीब ने कहा अगर मान भी लें कि सरकार हिंदू राष्ट्र की तरफ जा रही है तो उसमें कहां दिक्कत है. क्योंकि 1947 में जब बंटवारा हुआ था तब वह धर्म के नाम पर हुआ था. मुस्लिम राष्ट्र के नाम पर पाकिस्तान बना और हिंदुओं को हिंदुस्तान दे दिया गया. हालांकि काफी मुस्लिम लोगों ने हिंदुस्तान को कबूल किया. कोई दुनिया में इस वक्त किसी धर्म का नहीं होना चाहिए. चाहे सऊदी अरब हो या भारत हो, धर्म से क्या मतलब है जब लोकतंत्र होता है तो हर कोई वोटर होता है. हर कोई नागरिक होता है. धर्म बीच में कहां आ गया. देखिए पाकिस्तान तो जरूर धर्म के नाम पर बना था लेकिन जब हिंदुस्तान से पाकिस्तान अलग हुआ तो आरएसएस कहीं तस्वीर में नहीं था. 

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