Aligarh News: भारत में वैसे तो कई मिठाईयां फेमस है और इन मिठाईयों के दिवाने देश- विदेश में है. अगर आप ब्रज क्षेत्र में आएं है और आपने चमचम नहीं खाई तो इसका मतलब आप ब्रज क्षेत्र में सही से घूमे नहीं होंगे वरना ब्रज क्षेत्र से सटे हुए तहसील इगलास की चमचम का स्वाद आप जरूर चखते,चार अच्छर के शब्दों वाली ये मिठाई बड़े ही जायकेदार होती है,चमचम मिठाई के लोग इतने दीवाने है,चाहें वो देश हो या विदेश सभी जगह के लोग इगलास की इस मिठाई के दीवाने है,यही कारण है,यहां से चमचम विदेशों तक जाती है.
अलीगढ़ में जो लोग इगलास के आसपास रहे और वो कभी विदेश गए तो इस चमचम को साथ ले जाना नहीं भूले,महज दूध और छेना से बनने वाली ये मिठाई इतनी स्वादिष्ट होती है कि जो इसे एक बार चख ले वह दोबारा जरूर खाना चाहेगा, इगलास की 'चमचम' मिठाई ने ही इगलास को नई पहचान दिलाई है.
10 दिन तक खराब नहीं होती ये मिठाई
आम मिठाई की अगर बात की जाए तो ज्यादातर मिठाई दो से चार दिन में ही खराब होने लगती है. लेकिन महज दूध और छैने से तैयार होने वाली चमचम 10 दिन तक अपना स्वाद नहीं खोती और ना खराब होती है.
चमचम बनाने के लिए दूध को फाड़कर पहले छैना तैयार किया जाता है. फिर इसे सीधे चीनी की चासनी में पकाया जाता है. चमचम में घी या रिफाइंड का इस्तेमाल नहीं होता है. यही कारण है कि चमचम खाने से कोई बीमारी भी नहीं होती.
चमचम मिठाई बनाने की शुरुआत
अलीगढ़ जिले के तहसील इगलास के कस्बे में स्थित सराय बाजार के रहने वाले रघुवर दयाल के द्वारा इसका आविष्कार वर्ष 1944 किया था. यहां के प्रसिद्ध हलवाई के नाम से अपनी पहचान रखने वाले स्व. लाला रघुवर दयाल उर्फ रग्घा सेठ उस समय के प्रसिद्ध हलवाई में से एक थे. पुराने समय में मशीन ना होने की वजह से सारा काम हाथ से किया जाता था. उनकी मिठाई इतनी मशहूर हो गई कि आसपास के अन्य हलवाइयों के द्वारा भी चमचम की दुकान खोल ली गई. लेकिन रग्घा सेठ के द्वारा आजतक कोई और ब्रांच नहीं बनाई यही कारण है, रग्घा सेठ आज भी अकेले ही देश भर में चर्चित बने हुए है.
गुलाब जामुन की तरह दिखता है चमचम
चमचम का आकार काले गुलाब जामुन की तरह दिखता है चमचम अगर कोई नहीं जानता हो तो इसे गुलाबजामुन ही समझेंगे. इसका रंग रूप काफी हद तक गुलाब जामुन से मिलता है. आसपास के इलाकों में चमचम का काफी क्रेज है. ये बहुत महंगी भी नहीं होती है. चमचम 220 रुपये से 240 रुपये प्रति किलो के हिसाब से मिलती है. यह मिठाई किसी भी अच्छी मिठाई से स्वाद अच्छा होने के साथ साथ कम कीमत में भी मिलती है,अगर आप किसी भी अच्छी मिठाई की बात कहें तो 300 रुपए प्रति किलो से सस्ती कोई मिठाई नहीं आयेगी लेकिन चमचम आपको आज भी 240 रुपये प्रति किलो में मिल जायेगी.
कब शुरुआत हुई थी चमचम की
दादा ने की शुरुआत अब नाती चला रहे दुकान चमचम बनाने वाले रग्घा सेठ के सुपौत्र यश सिंघल ने बताया कि बाबा ने सन् 1944 एक मिठाई बनाना शुरू किया था, जिसका नाम है चमचम. चमचम की बनाने के लिए सबसे पहले दूध से छेना निकाला जाता है. फिर छेना और सूजी को मिलाकर गोले तैयार किए जाते हैं. फिर इन गोले को चीनी की चासनी में सेका जाता है. जब तक उसके अंदर रस न भर जाए, इससे गोले सुरक हो जाते है. चमचम को बनाने में रिफाइंड का प्रयोग नहीं किया जाता है. जिससे चमचम मिठाई जल्दी खराब नहीं होती है और स्वाद जैसे का तैसा बना रहता है.
चमचम को मिल चुका है जीआई टैग
इगलास की चमचम को मिल चुका है जीआई टैग, जीआई का फुल फॉर्म है जियोग्राफिकल इंडिकेशन यानी भौगोलिक संकेत. यह टैग किसी भी उत्पाद को उसके मूल स्थान, जहां का वह उत्पाद है वहां से जोड़ने का काम करता है. इसके साथ ही उत्पाद की विशेषता बताता है. जीआई टैग उन उत्पादों को दिया जाता है, जो अपने क्षेत्र में विशेष महत्व रखते हैं और सिर्फ उसी क्षेत्र में बनते हैं. चमचम को भी मिठाई में खास पहचान रखने पर जीआई टैग मिल चुका है, जो कि चमचम को भारत में नई पहचान दिलाता है.
कई बड़ी हस्तियां चख चुकी है, इसका स्वाद
इतिहास को बनाए रखने वाली चमचम को लेकर रग्घा सेठ के सुपौत्र यश सिंघल बताते हैं कि पूर्व क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू एक बार यहां से गुजरने के दौरान चमचम लेकर गए थे. इसके बाद माहेश्वरी क्रिएटिव क्लब के अध्यक्ष संजय माहेश्वरी बॉलीवुड तक चमचम को लेकर गए हैं. वहीं, भाभी जी घर पर हैं सीरियल में गुलफाम कली का किरदार निभाने वाली फाल्गुनी व सीरियल के लेखक मनोज संतोष भी चमचम के मुरीद है. जो भी एक बार इस चमचम का स्वाद चख लेता है वो इसका मुरीद हो जाता है.
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